वोट चोरी के खिलाफ सबसे बड़ी रैली, कांग्रेस नेताओं ने जारी किया वीडियो

दिल्ली की सियासी फिज़ा  इन सवालों से भरी हुई है और वजह है राहुल गांधी की वह निर्णायक लड़ाई, जिसे कांग्रेस अब “अंतिम और सबसे बड़ी लड़ाई” के तौर पर पेश कर रही है।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: दिल्ली की सियासी फिज़ा  इन सवालों से भरी हुई है और वजह है राहुल गांधी की वह निर्णायक लड़ाई, जिसे कांग्रेस अब “अंतिम और सबसे बड़ी लड़ाई” के तौर पर पेश कर रही है।

पिछले कई महीनों से वोट चोरी के आरोपों को लेकर जो चिंगारी सुलग रही थी, वह अब एक बड़े जनांदोलन का रूप लेने को तैयार है। रविवार को रामलीला मैदान में होने वाली महारैली को महज़ एक राजनीतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि चुनाव आयोग और केंद्र सरकार के खिलाफ सीधी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या राहुल गाँधी की वोट चोरी के खिलाफ ये लड़ाई एक क्रांतिकारी आंदोलन के रूप में साबित हो सकता है? और क्या इस आंदोलन के बाद चुनाव आयोग में एक बड़ा बदलाव आएगा?

लंबे समय से राहुल गांधी वोट चोरी का पर्दाफाश करते हुए मोदी और ज्ञानेश कुमार की मिलीभगत का खुलासा करते हुए आ रहे हैं। उनका कहना है कि आयोग सत्ता के दबाव में काम कर रहा है और लोकतंत्र की सबसे पवित्र प्रक्रिया, यानी वोट, के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। वोट चोरी का यह आरोप केवल एक नारा नहीं, बल्कि कांग्रेस के अनुसार देश के लोकतांत्रिक ढांचे पर सीधा हमला है। राहुल गांधी बार-बार कह चुके हैं कि अगर वोट ही सुरक्षित नहीं है, तो चुनाव का क्या मतलब और लोकतंत्र का क्या भविष्य।

यही वजह है कि कांग्रेस अब इस मुद्दे को निर्णायक मोड़ पर ले जाना चाहती है।अब तक कांग्रेस और विपक्ष ने इस मुद्दे पर जो लड़ाई लड़ी, उसे खुद पार्टी छोटे स्तर की लड़ाई मानती है। यात्राएं निकाली गईं, बयान दिए गए, संसद के भीतर और बाहर सवाल उठाए गए, लेकिन राहुल गांधी के मुताबिक असली लड़ाई अब शुरू होने जा रही है। जब स्वयं नेता प्रतिपक्ष मैदान में उतरते हैं, जब लाखों लोगों को दिल्ली बुलाया जाता है, तब संदेश साफ होता है कि यह सिर्फ राजनीतिक विरोध नहीं, बल्कि सत्ता और सिस्टम को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश है। रामलीला मैदान की महारैली को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है। कांग्रेस नेता भूपेश बघेल ने लोगों से इस महारैली में जुड़ने की अपील भी की।

कांग्रेस का आरोप है कि केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था को भी अपने नियंत्रण में ले लिया है। ज्ञानेश कुमार पर सीधा निशाना साधते हुए कहा जा रहा है कि वो आयोग के मुखिया की तरह नहीं, बल्कि सरकार के प्रवक्ता की तरह व्यवहार कर रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि जब भी वोट चोरी या चुनावी गड़बड़ियों पर सवाल उठाए जाते हैं, आयोग तथ्यों के साथ जवाब देने के बजाय गोलमोल बयान देता है या फिर आरोप लगाने वालों पर ही सवाल खड़े करता है। यही रवैया इस संस्था की साख को लगातार कमजोर कर रहा है।

राहुल गांधी ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोट चोरी के मुद्दे पर यात्रा भी निकाली थी। उस यात्रा का असर सीमित रहा, यह बात कांग्रेस भी स्वीकार करती है। लेकिन पार्टी का मानना है कि इसका मतलब यह नहीं कि मुद्दा कमजोर है, बल्कि यह कि लड़ाई को और बड़े स्तर पर ले जाने की जरूरत है। दिल्ली की महारैली इसी रणनीति का हिस्सा है। कांग्रेस का दावा है कि इस रैली के जरिए देश के कोने-कोने में यह संदेश जाएगा कि वोट चोरी केवल किसी एक राज्य या एक चुनाव की समस्या नहीं, बल्कि पूरे देश के लोकतंत्र पर मंडराता खतरा है।

रामलीला मैदान में होने वाली इस महारैली में एक लाख से ज्यादा कार्यकर्ताओं के शामिल होने का अनुमान है। देश के अलग-अलग राज्यों से कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता दिल्ली पहुंचेंगे। राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे इस मंच से सीधे चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को चुनौती देंगे। पार्टी का कहना है कि यह आवाज सिर्फ नेताओं की नहीं होगी, बल्कि उन करोड़ों नागरिकों की होगी, जिनका भरोसा लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर डगमगा रहा है। दिल्ली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव और पार्टी के कई वरिष्ठ नेता खुद रामलीला मैदान पहुंचे और तैयारियों का जायजा लिया। उन्होंने साफ कहा कि वोट चोरी के खिलाफ कांग्रेस की आवाज लगातार उठती रही है और यह महारैली उस आवाज को और मजबूत करेगी।

देवेंद्र यादव ने यह भी दावा किया कि कांग्रेस ने वोट चोरी के खिलाफ पूरे देश से पांच करोड़ लोगों के हस्ताक्षर जुटाए हैं। यह आंकड़ा अपने आप में बड़ा दावा है और अगर सही है, तो यह दिखाता है कि पार्टी इस मुद्दे को जन आंदोलन का रूप देना चाहती है। इस पूरे घटनाक्रम में एक अहम बात यह भी है कि इस महारैली में इंडिया गठबंधन के अन्य घटक दलों को आमंत्रित नहीं किया गया है।

देवेंद्र यादव ने साफ किया कि यह रैली अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की ओर से आयोजित की जा रही है। इसके राजनीतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं। एक तरफ कांग्रेस यह दिखाना चाहती है कि वह अकेले भी चुनाव आयोग और केंद्र सरकार से टकराने का दम रखती है, वहीं दूसरी तरफ यह संदेश भी जाता है कि राहुल गांधी इस मुद्दे पर नेतृत्व अपने हाथ में लेना चाहते हैं।

चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल इसलिए भी गंभीर हैं क्योंकि यह संस्था लोकतंत्र की रीढ़ मानी जाती है। अगर इसी संस्था पर पक्षपात के आरोप लगने लगें, तो आम जनता का भरोसा टूटना तय है। कांग्रेस का कहना है कि ज्ञानेश कुमार के नेतृत्व में आयोग ने बार-बार ऐसे फैसले किए हैं, जो सत्ताधारी दल के पक्ष में जाते दिखते हैं। चाहे वह चुनावी शिकायतों पर कार्रवाई का मामला हो या फिर विपक्ष के आरोपों को नजरअंदाज करने का रवैया, हर जगह आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हुए हैं।

मोदी सरकार पर भी कांग्रेस का हमला उतना ही तीखा है। पार्टी का आरोप है कि सरकार लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर रही है, ताकि सत्ता पर उसकी पकड़ बनी रहे। मीडिया से लेकर जांच एजेंसियों तक, हर जगह सरकार के हस्तक्षेप की बात कही जाती है। और अब चुनाव आयोग भी इसी सूची में शामिल हो गया है। कांग्रेस इसे लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक संकेत मानती है और इसी खतरे के खिलाफ वह लोगों को सड़कों पर उतारना चाहती है। राहुल गांधी की यह महारैली सिर्फ एक दिन का कार्यक्रम नहीं मानी जा रही। कांग्रेस इसे एक बड़े अभियान की शुरुआत के तौर पर पेश कर रही है। पार्टी का दावा है कि दिल्ली के बाद यह आवाज और तेज होगी, और देश के हर हिस्से में वोट चोरी के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया जाएगा।

सवाल यह है कि क्या यह आंदोलन सचमुच जनांदोलन का रूप ले पाएगा या फिर यह भी बाकी राजनीतिक अभियानों की तरह कुछ समय बाद ठंडा पड़ जाएगा। फिलहाल इतना तय है कि दिल्ली की इस महारैली ने चुनाव आयोग और केंद्र सरकार की बेचैनी बढ़ा दी है। ज्ञानेश कुमार की भूमिका पर जिस तरह से सीधे सवाल उठाए जा रहे हैं, उससे उनकी कुर्सी पर दबाव साफ नजर आता है। कांग्रेस खुले तौर पर यह संकेत दे रही है कि अगर लोकतंत्र को बचाने के लिए सड़क पर उतरना पड़ा, तो वह पीछे नहीं हटेगी। अब देखना यह है कि जनता इस आह्वान पर कितना साथ देती है और क्या यह लड़ाई वाकई भारतीय राजनीति में किसी बड़े बदलाव की शुरुआत साबित होती है या नहीं।

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