फिल्म उद्योग में मीटू मामलों को लेकर कोर्ट ने केरल को फटकार लगाई, कहा- चुप रहना कोई विकल्प नहीं
नई दिल्ली। केरल उच्च न्यायालय ने मंगलवार को राज्य सरकार पर न्यायमूर्ति हेमा समिति की रिपोर्ट के आधार पर निष्क्रियता और मामले दर्ज न करने के लिए कड़ी फटकार लगाई, जिसने मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं के यौन शोषण को उजागर किया था। न्यायमूर्ति ए.के. जयशंकरन नांबियार और न्यायमूर्ति सी.एस. सुधा की एक विशेष पीठ ने सरकार द्वारा गठित एसआईटी को कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, हालांकि इसने मीडिया को चुप कराने से इनकार कर दिया।
यह देखते हुए कि रिपोर्ट 2019 में ही सरकार को सौंप दी गई थी, अदालत ने कहा, हम मुख्य रूप से राज्य की निष्क्रियता से चिंतित हैं, जिसमें एफआईआर दर्ज न करना भी शामिल है… आपने 4 साल में रिपोर्ट को दबाए रखने के अलावा कुछ नहीं किया है।
अदालत ने आगे कहा कि सरकार के लिए चुप्पी कोई विकल्प नहीं है और इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रह और भेदभाव को बदलना होगा।
उच्च न्यायालय ने आगे कहा, समाज में महिलाओं के सामने आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए आप क्या कर रहे हैं? सिर्फ़ फि़ल्म उद्योग ही नहीं। स्थिति खऱाब है और वह भी हमारे जैसे राज्य में। हमारे राज्य में महिलाओं की आबादी ज़्यादा है। यह हमारे लिए अल्पसंख्यक मुद्दा नहीं है… एसआईटी को इस सब पर गौर करना चाहिए।
केरल सरकार ने 2017 में जस्टिस हेमा समिति का गठन किया था। 19 अगस्त, 2024 को सार्वजनिक की गई रिपोर्ट में मलयालम फि़ल्म उद्योग में महिलाओं के उत्पीडऩ और शोषण के मामलों का खुलासा किया गया है।
रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद, कई अभिनेताओं और निर्देशकों के ख़िलाफ़ यौन उत्पीडऩ और शोषण के कई आरोप लगे हैं। पिनाराई विजयन के नेतृत्व वाली सरकार ने मामलों की जाँच के लिए सात सदस्यीय एसआईटी का गठन किया।