भागवत के बयान पर कोहराम, डैमेज कंट्रोल जुटा संघ, संतों के निशाने पर आरएसएस प्रमुख
लखनऊ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत के द्वारा पंडितों और जाति-संप्रदाय को लेकर दिए गए उस बयान को लेकर विवाद और भी ज्यादा बढ़ गया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भगवान ने हमेशा बोला है कि मेरे लिए सभी एक है। उनमें कोई जाति-वर्ण नहीं हैं, लेकिन पंडितों ने श्रेणी बनाई, वह गलत था। मोहन भागवत के बयान पर जहां पंडित समाज अपनी नाराजगी जता रहा है तो वहीं संघ इससे उपजे विवाद को शांत करने के लिए सफाई पेश करता नजर आ रहा है। अयोध्या स्थित राम मंदिर के पुजारी महंत सत्येंद्र दास ने मोहन भागवत के बयान को सिरे से खारिज करते हुए उन्हें झूठा तक करार दे दिया है।
रामलला मंदिर के पुजारी महंत सत्येंद्र दास के अनुसार मोहन भागवत झूठ बोल रहे हैं। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि चातुर्वण्र्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश:। इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कह रहे हैं कि चारों वर्णों की सृष्टि मैंने की है। उनके जैसे गुण एवं कर्म हैं, उसी प्रकार से उनकी जाति का विभाजन हुआ है। महंत सत्येंद्रदास जी ऋग्वेद की ऋचा ‘ब्राह्मण: अस्य मुखम् आसीत् बाहू राजन्य: कृत: ऊरू तत्-अस्य यत्-वैश्य: पद्भ्याम् शूद्र: अजायत:’ का उदाहरण देते हुए कहते हैं इससे पता चलता है कि जाति-व्यवस्था का विभाजन आज से नहीं बल्कि शुरू से चला आ रहा है।
महंत सत्येंद्र दास कहते हैं कि वर्तमान समय की बात करें तो संविधान में भी लिखा है कि ब्राह्मण का बेटा ब्राह्मण, ठाकुर का बेटा ठाकुर, वैश्य का बेटा वैश्य और शूद्र का बेटा शूद्र ही रहेगा। इसमें ब्राह्मण ने कब विभाजन किया। लोगों को जात-पात में विभाजन तो राजनीतिक पार्टियों करती हैं। ये राजनीतिक दल सत्ता को पाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। सत्ता को पाने के लिए ये किसी भी धर्म, किसी भी पुस्तक, किसी भी व्यक्ति या फिर किसी भी जाति का अपमान कर सकते हैं। गलतबयानी करने वालों के लिए महंत सत्येंद्र दास कहते हैं कि ऐसे लोगों को रामलला सद्बुद्धि दे, ताकि वे ऐसी भाषा बोलें जो सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय हो।
अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री और पंच दशनाम जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक महंत हरि गिरि के अनुसार वर्ण की व्यवस्था आज से नहीं बल्कि रामायण काल से पहले से चली आ रही है। हमारा शरीर भी चार वर्णों में बंटा हुआ है। जिसमें सिर को ब्राह्मण, भुजाओं को क्षत्रिय, पेट को वैश्य और पैरों को शूद्र का दर्जा दिया गया है, लेकिन ऐसा करने पर शरीर के किसी भी हिस्से का कोई महत्व कम नहीं हो जाता है। महंत हरिगिरि कहते हैं कि अपनी-अपनी राजनीति के हिसाब से लोग किसी भी चीज का समर्थन या विरोध कर सकते हैं, लेकिन उन्हें यह बात समझनी होगी कि किसी भी व्यक्ति का सम्मान उसका पैर छूकर किया जाता है न कि सिर छूकर, इसलिए समाज में किसी जाति या वर्ण व्यवस्था का महत्व कम नहीं है।