सरकार का षड्यंत्र, खतरें में लोकतंत्र!

  • पक्ष-विपक्ष कर रहा एक-दूसरे पर लगातार प्रहार
  • चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार समिति से भारत के मुख्य न्यायाधीश को क्यों हटाया?

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग पर अभूतपूर्व हमले हो रहे हैं। नेताओं की भाषा ऐसी हो गई है जिससे लोकतंत्र का सौंर्दय तो धूमिल हो ही रहा है वहीं बयानों से ऐसा लग रहा है जैसे उसकी शवयात्रा निकाली जा रही हो।
सांसद पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त को मुस्लिम आयुक्त कह कर संबोधित कर रहे हैं, वहीं विदेश की धरती से महाराष्ट्र चुनाव में 36 लाख वोटर्स के जुडऩे का मुद्दा तूल पकड़ रहा हो तो सवाल उठना लाजमी है कि क्या लोकतंत्र खतरें में हैं। जैसा कि विपक्ष कह रहा है। क्या हम अब संस्थाओं की पहचान उनके काम से नहीं बल्कि धर्म से तय करेंगे? जैसा कि लोकतंत्र के प्रहरी सांसद बता रहे हैं।

मशीन नहीं, मर्जी से आ रहे हैं नतीजे!

चुनाव आयोग हमेशा से लोकतंत्र का वो स्तंभ रहा है जिस पर हारने वाला भी भरोसा करता था। लेकिन हाल के वर्षों में जब-जब चुनाव होते हैं ईवीएम की पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न लगते हैं। विपक्ष कहता है कि मशीन नहीं, मर्जी से नतीजे आते हैं। सत्ता पक्ष कहता है कि विपक्ष हार रहा है तो ऐसी बात करता है। राहुल गांधी जब बोस्टन यूनिवर्सिटी से ये सवाल करते हैं कि क्या भारत में निष्पक्ष चुनाव हो रहे हैं तो सिर्फ एक सवाल नहीं उठता एक पूरी व्यवस्था का आइना सामने आता है। बीजेपी कहती है कि राहुल देश को बदनाम कर रहे हैं।

राहुल गांधी को और भारी शब्द इस्तेमाल करने चाहिए थे : राशिद अल्वी

कांग्रेस नेता राशिद अल्वी खुलकर मैदान में है। उन्होंने भी राहुल गांधी का समर्थन यह कहते हुए किया है कि राहुल गांधी ने बहुत ही हल्के शब्दों का इस्तेमाल किया। उन्हें और भारी शब्द इस्तेमाल करना चाहिए थे। राशिद अल्वी ने सरकार से पूछा है कि मौजूदा सरकार ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार समिति से भारत के मुख्य न्यायाधीश को क्यों हटाया? अब, शीर्ष अधिकारी की नियुक्ति प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और एक कैबिनेट मंत्री द्वारा की जाती है। यह स्पष्ट रूप से चुनाव आयुक्त को सरकार के हाथों का खिलौना बनाता है। उन्होंने कहा है कि हम कैसे कह सकते हैं कि चुनाव आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करा रहा है हमने देखा है कि महाराष्ट्र और हरियाणा में क्या हुआ। स्वतंत्र संवैधानिक संगठन होने के नाते ईमानदारी से चुनाव कराना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है। मैं प्रधानमंत्री से पूछना चाहता हूं जब पूरा विपक्ष बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग कर रहा है, तो सरकार ऐसा करने को तैयार क्यों नहीं है।

चुनाव आयोग को अनियमितताओं का जवाब देना चाहिए : उदितराज

अगर सत्ता और विपक्ष इसी तरह एक-दूसरे की नीयत पर सवाल उठाते रहेंगे और संवैधानिक संस्थाएं चुप रहेंगी तो जनता का भरोसा टूटेगा। जब जनता ही निष्पक्षता पर शक करने लगेगी तब लोकतंत्र का सबसे बड़ा संकट जन्म लेगा। कांग्रेस नेता उदित राज ने राहुल गांधी के बयान का समर्थन करते हुए कहा है कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है और चुनाव आयोग को मतदाता सूची में हुई अनियमितताओं का जवाब देना चाहिए। उदित राज के मुताबिक सच्चाई यह है कि महाराष्ट्र में महज पांच महीने में 36 लाख मतदाता मतदाता सूची में जुड़ गए। आमतौर पर इतने मतदाता पांच साल में भी नहीं जुड़ते। उदित राज ने कहा है कि दुनिया भर की अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भारत में लोकतंत्र के कमजोर होने की बात कह रही हैं। उन्होंने राहुल गांधी के बयान को संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए सही करार दिया। उन्होंने कहा, राहुल गांधी ने जो कहा, वह बिल्कुल सही है। वे संविधान और लोकतंत्र के हित में बोल रहे हैं। भारत में क्या हो रहा है यह दुनिया जानती है।

सांसद बोले- मुस्लिम कमिश्नर

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने न्यायपालिका के बाद संवैधानिक संस्थाओं पर भी प्रश्नचिन्ह लगाने का काम किया है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी को उन्होंने मुस्लिम कमिश्नर बताया न कि इलेक्शन कमीशनर। उनके इस आरोप का कुरैशी ने जवाब दिया है और कहा है कि व्यक्ति को उसके काम से याद किया जाना चाहिए न कि उसक धर्मिक पहचान से। दुबे के इस बयान का देश की राजनीति में व्यापक असर हुआ है।

चुनाव आयोग जनता की उम्मीदों का मंदिर

सवाल उठना लाजमी है कि क्या हम सिर्फ एक राष्ट्र बना रहे हैं, या एक ऐसा राष्ट्र बना रहे हैं जिसमें हर नागरिक की आवाज़ सुनी जाए चुनाव आयोग सिर्फ एक दफ्तर नहीं बल्कि यह जनता की उम्मीदों का मंदिर है। अगर वहां भी राजनीति घुस जाए तो फिर लोकतंत्र कहां बचेगा। अगर आज सवाल पूछने वालों को देशद्रोही कहा जाएगा और जवाब देने वालों को महिमामंडित किया जाएगा तो हमे यह याद रखना चाहिए कि इतिहास गूंगा नहीं होता वह गवाह भी होता है और न्यायाधीश भी। आप यकीन जनयिे कि भारत का लोकतंत्र अभी जिन्दा है लेकिन विपक्ष के मुताबिक उसे वेंटिलेटर पर डालने की तैयारियां चल रही है।अअब भी वक्त है सत्ता और विपक्ष दोनों आत्ममंथन करें। चुनाव आयोग अपनी गरिमा लौटाए और जनता वह सवाल पूछना बंद न करे। क्योंकि सवाल नहीं होंगे तो जवाब सिर्फ सत्ता के इशारे पर आएंगे।

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