लोकतंत्र का सबसे कारगर हथियार पोस्टर
राजनैतिक दलों का संचार का प्रमुख साधन
- जनता तक अपनी बात पहुंचाने का माध्यम
- विपक्ष के घेरने में भी होता है प्रयोग
- पोस्टर छपवाने के हैं नियम
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। चुनावी प्रक्रिया में भाषण, पोस्टर, रैली व नुक्कड़ सभाएं बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। ये सियासी दलों के वो हथियार हैं जिससे वो अपनी बात जनता तक पहुंचाते हैं। लेकिन आजकल कुछ सालों से ये हथियार राजनैतिक दलों का अपने विपक्षियों को घेरने का माध्यम बन गए। वैसे लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह जायज है कि किसी की सत्ता को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया जाये या किसी राजनीतिक दल अथवा नेता के खिलाफ पोस्टरबाजी की जाये। लेकिन यह जायज नहीं है कि पोस्टर लगाने वाला उसमें अपना नाम ही नहीं लिखे।
दिल्ली की सडक़ों पर जो पोस्टर लगाये गये उसके चलते दिल्ली पुलिस ने सौ से ज्यादा एफआईआर कीं तो विपक्ष ने बखेड़ा खड़ा कर इसे तानाशाही करार दे दिया है। लेकिन पोस्टर लगाने के खिलाफ एफआईआर का विरोध करने वालों को सोचना चाहिए कि अनाम पोस्टर लगाने वाला अलगाववादी या आतंकवादी भी तो हो सकता है। आज देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ पोस्टर लगा है। यदि इस पर कार्रवाई नहीं हुई तो ऐसे तत्वों का हौसला बढ़ेगा और कल को किसी और के खिलाफ भी ऐसे पोस्टर लगाये जा सकते हैं। हालांकि बीजेपी भी पोस्टरवार में उतरी। वैसे, हम आपको याद दिला दें कि ऐसे ही पोस्टर तब भी सामने आये थे जब कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भारत वैक्सीन मैत्री अभियान के तहत अन्य देशों को भी कोरोना रोधी वैक्सीन मुहैया करा रहा था। तब दिल्ली में प्रधानमंत्री के खिलाफ अमर्यादित बातें कहते हुए पोस्टर लगाये गये थे। उस समय भी और इस समय भी, दोनों ही बार इसके पीछे आम आदमी पार्टी का हाथ माना गया।
पोस्टर छपवाने का जो नियम है उसके तहत उसे छपवाने वाले का नाम और पोस्टर को छापने वाली प्रिंटिंग प्रेस का पूरा पता भी उसमें होना चाहिए। लेकिन दिल्ली में लगे पोस्टरों में इस नियम की अनदेखी की गयी। ऐसे में दिल्ली पुलिस यदि एफआईआर कर रही है तो उसमें क्या गलत है? बहरहाल, जी-20 की अध्यक्षता कर रहे भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली इस समय अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों का केंद्र बनी हुई है। ऐसे में सरकार के साथ ही सभी राजनीतिक दलों और जनता का प्रयास रहना चाहिए कि देश के विभिन्न भागों में हो रही जी20 की बैठकों के लिए जो विदेशी मेहमान दिल्ली आ रहे हैं या दिल्ली के रास्ते अन्य शहरों की ओर जा रहे हैं वह भारत की एक सशक्त और संपन्न देश की छवि अपने मन में लेकर जायें। देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ पोस्टरबाजी से अच्छा संदेश नहीं जाता। यदि सरकार की किसी नीति के प्रति विरोध करना है तो लोकतंत्र में उसके लिए जो स्वीकार्य तरीके हैं उनका उपयोग किया जाना चाहिए। राजनीति इस्तेमाल में लिए जाने वाला एक बहुत ही आम शब्द है फिर चाहे हम राजनीतिक दलों के संदर्भ में बात करें या किसी व्यापक ढांचे में इसकी बात करें। हम अक्सर विचारधाराओं और विचार प्रक्रियाओं को कायम रखते हुए राजनीति पर भाषण देने वाले राजनीतिक नेताओं का निरीक्षण करते हैं। लेकिन राजनीतिक नेताओं, छात्रों और शिक्षकों के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता के समूहों को भी यह विषय उनके असाइनमेंट या नौकरी में भाषण के हिस्से के रूप में संबोधित करने के लिए दिया जाता है। आप इन भाषणों को पढ़ें और प्रभावी भाषण तैयार करें।
भाषण व राजनीति में घना संबंध
आज के भाषण राजनीति से ज्यादा प्रभावित होते हैं क्योंकि यह हमेशा से एक चर्चित विषय रहा है चाहे आप किसी भी देश से संबंध रखते हो। राजनीति इतना आकर्षक विषय है कि हर किसी को कुछ न कुछ इस पर कहना। भाषण सामूहिक शक्ति का गठन, उसे व्यवस्थित, प्रसारित और विभिन्न सामाजिक संरचनाओं में उपयोग किया जाता है। यह विशिष्ट सामाजिक प्रक्रियाओं और संरचनाओं में निहित है। यह स्थिति उस समाज में होती है जहाँ असतत आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था होती है। सामाजिक दृष्टिकोण से राजनीति का अध्ययन सामाजिक संरचनाओं के भीतर राजनीतिक व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करने के बारे में होगा। यह पूरे सामाजिक ताने-बाने के संबंध में राजनीतिक रिश्तों की खोज के बारे में भी है जिसकी यह जड़ है। राजनीति सत्ता के बारे में है और यह तब उजागर होती है जब सत्ता में मतभेद होता है। वास्तव में राजनीति की अवधारणा मुख्य रूप से इस बिंदु पर जोर देती है कि प्रत्येक सामाजिक आधार में शक्ति संरचना शामिल होती है न कि केवल एक जगह जहां सत्ता के संदर्भ में सामाजिक भूमिकाएं आधिकारिक तौर पर बनाई जाती हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि सामाजिक जीवन के हर पहलू में शक्ति संरचनाएं शामिल हैं और इस प्रकार राजनीति को ‘राजनीतिक नेताओं’ का एकछत्र राज नहीं माना जा सकता। इसकी बजाए कोई भी प्रक्रिया जिसमें दूसरों पर शक्ति, नियंत्रण या समाज में मजबूती शामिल है वह आदर्श रूप से राजनीति है।
पोस्टर होते हैं मुद्दे का माध्यम
चुनाव जीतने के सबसे प्रमुख कारण में से एक होता है मुद्दा। अगर आप चुनाव मे आम जनता के मूद्दे नहीं उठा रहे हो तो आप बात है कि उनका मत आपकी ओर नहीं आएगा । इसलिए चुनाव जितने के लिए मुद्घें ही सबसे महत्वपूर्ण है । जो आप के क्षेत्र कि जनता चाहती हैं अगर आप उन्हीं मुद्दों पर बात करते हो तो जनता को लगेगा आप उनके हित कि बात कर रहे हो ओर उनका मत आपकी ओर आएगा । क्षेत्र कि जनता कि एक समिति बनानी पड़ेगी , अब आप उन से पूछिए कि आप जनता के क्या क्या मुद्दे है । और आप उन समिति के सदस्यों को आम जनता के बीच जाने की बोलो , कि आप आम जनता के बीच जाओ ओर उनकी समस्या पूछो फिर आप उन्हीं समस्याओं को अपना मुद्दा बनाओ जिससे आप को चुनाव में काफी हद तक फायदा होगा ।
राजनीति राजनेताओं की गुलाम नहीं
दूसरे शब्दों में राजनीति सिर्फ राजनेताओं के लिए ही सीमित नहीं है बल्कि इससे भी कहीं अधिक है। राजनीति को एक दिमागी खेल के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है जहां समाज के प्रमुख वर्ग समाज के कमजोर वर्गों या हाशिए पर बैठे लोगों पर शासन करने की कोशिश करते हैं। हम अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुन सकते हैं कि वे राजनीतिक खेल खेल रहे हैं। राजनीति या राजनीतिक खेल खेलने से तात्पर्य किसी के लक्ष्य को समझने के लिए जोड़-तोड़, धूर्तता और गलत तरीकों का इस्तेमाल करना होगा। ज्यादातर नकारात्मक अर्थ इससे जुड़े होते हैं और इसमें सभी के लिए अच्छा सोचे बिना स्वार्थी हित शामिल हैं।राजनीति तब तक ही अच्छी है जब तक यह सभी के सामान्य हितों की रक्षा करें और यदि ऐसा नहीं है तो इसे कम से कम दूसरों के हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। लेकिन शायद ही कभी ऐसा होता है और अक्सर लोग दूसरों को अपने वश में करने और शीर्ष पर खुद को स्थापित करने के लिए भेज चाल का हिस्सा बन जाते है। राजनीति सीखने की बजाए मुझे लगता है कि लोगों को नैतिक मूल्यों और गरिमा को सीखना चाहिए ताकि वे खुद के जीवन को स्थिरता से जी सकें तो दुनिया वास्तव में सभी के लिए शांतिपूर्ण आश्रय बन सकती है। भले ही आप किसी भी क्षेत्र से हो मानव संबंधों को महत्व देना और मानव जाति को पोषित करने के लिए सभी छोटे हितों से ऊपर उठना महत्वपूर्ण है।
विपक्ष की कमी और अपनी खूबियां रखना जरूरी
अपना प्रचार तो करना ही है लेकिन उसके साथ- साथ विपक्ष का भी प्रचार करना होता हैं , आप को अपनी खुबिया , अपने मुद्दे जनता के समक्ष रखने है उसके साथ ही आप को विपक्ष कि कमियों को भी गिनवाना है । आप को अपने ओर विपक्ष के काम गिनवाने है , आप को आपने मुद्दे और विपक्ष के मुद्दे दोनों जनता के सामने बताने है ओर जनता को इस बात का भरोसा दिलाना है कि हमारे मुद्दे और कार्य दोनों विपक्ष से अच्छे हैं । लेकिन आप को ये सब आचार संहिता का पालन करते हुए ही करना है ।
चुनाव प्रचार में आचार संहिता का पालन जरूरी
चुनाव में शांति बनाए रखने के लिए आचार संहिता लागू कि जाती है । इस लिए हमे प्रचार आचार संहिता का पालन करते हुए ही करना चाहिए । आचार संहिता के कहीं सारे नियम होते हैं उनका पालन करना अनिवार्य है, अगर आप आचार संहिता के नियमों का पालन नहीं करते है तो आप के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है ओर आप को चुनाव से बाहर तक निकला जा सकता हैं। इस लिए चुनाव प्रचार करने से पहले आचार संहिता के नियमों को पूरा पड़े और अपने चुनाव प्रचार में उन नियमों का पालन करें ।
ऑनलाइन प्रचार : आज के दौर में ग्रामीण क्षेत्रों में भी लगभग हर युवक के पास स्मार्ट फोन है , लगभग हर युवक व्हाट्सएप ऐप या फेसबुक का उपयोग करता है , तो आप ऑनलाईन अपने विचारो को अपने क्षेत्र कि जनता तक पहुता सकते हैं । आप व्हाट्सएप ऐप पर एक गुरूप बना सकते हैं जिससे आप अपने चुनाव का प्रचार कर सके , इसके अलावा आप फेसबुक पर अपने चुनाव प्रचार का एक पेज बना सकते हैं उससे भी आपके चुनाव प्रचार में फायदा मिलेगा।
ऑफलाइन प्रचार : अभी हमने ऑनलाइन प्रचार के बारे में जाना अब हम ऑफ़लाइन प्रचार के बारे में बात करेंगे । ऑफलाइन प्रचार ऑनलाइन प्रचार के मुकाबले ज्यादा फायदे मंद होता हैं । ऑफलाइन प्रचार आप बैनर लगाकर , स्टीकर लगाकर या सीधे जनता से मिलकर कर सकते हैं । जिससे आप जनता के बीच जाओगे तो उनको भी अच्छा लगेगा कि हमारा नेता हमारे गर तक आया है , इसके अलावा आप सीधे उससे बात कर सकते हैं और उन्हें अपनी और आकर्षित कर सकते हैं ।