नवरात्रि इन प्राचीन देवी माता मंदिरों के करें दर्शन

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
3 अक्तूबर 2024 से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है, जिसका समापन 11 अक्तूबर को नवमी तिथि पर होगा। नौ दिवसीय नवरात्रि का पर्व माता दुर्गा की अराधना का पर्व है। मान्यता है कि नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा धरती पर आती हैं। इस मौके पर नौ दिवसीय विशेष पूजा का आयोजन होता है। देवी माता मंदिरों में भव्य अनुष्ठान होते हैं। इस दौरान अगर आप माता दुर्गा के स्वरूपों के दर्शन करना चाहते हैं तो प्रसिद्ध देवी माता मंदिरों की ओर जा सकते हैं। उत्तर प्रदेश में कई प्रसिद्ध और प्राचीन देवी माता मंदिर हैं। इसके अलावा पूरे देश में 52 शक्तिपीठ हैं, जिसमें से कुछ उत्तर प्रदेश में स्थित हैं। शक्तिपीठ उस पवित्र स्थान को कहते हैं, जहां माता सती के अंग गिरे थे। उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं और देवी भक्त हैं तो शारदीय नवरात्रि के मौके पर प्राचीन दुर्गा माता मंदिरों और शक्तिपीठों के दर्शन के लिए जा सकते हैं।

देवीपाटन शक्तिपीठ, बलरामपुर

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में देवीपाटन शक्तिपीठ है। माना जाता है कि यहां माता सती का बायां स्कन्ध गिरा था। कुछ लोगों का कहना है कि यहां माता सती का पाटन वस्त्र गिरा था। इस शक्तिपीठ में एक अखंड ज्योति जल रही है। मान्यता है कि त्रेता युग से लगातार यहां अखंड ज्योति जल रही है। एक मान्यता यह भी है कि भगवती सीता ने इस स्थल पर पाताल प्रवेश किया था। इस कारण पहले यह पातालेश्वरी कहलाया और बाद में यह पाटेश्वरी हो गया लेकिन सती प्रकरण ही अधिक प्रमाणिक है और शक्ति के आराधना स्थल होने के कारण यह शक्तिपीठ प्रसिद्ध है।

विंध्याचल माता मंदिर, मिर्जापुर

वाराणसी के निकटतम जिले मिर्जापुर में देवी का प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है। विंध्याचल माता मंदिर के नाम से मशहूर इस स्थान को 51 शक्तिपीठों में प्रमुख माना जाता है। हालांकि यहां माता सती के शरीर को कोई अंग नहीं गिरा है। लेकिन मान्यता है कि देवी मां इस स्थान पर सशरीर निवास करती हैं। विंध्याचल, वाराणसी से लगभग 70 किमी की दूरी पर मौजूद है। ऐसा कहा जाता है कि देवी ने महिषासुर राक्षस का वध करने के बाद विध्यांचल को रहने के लिए चुना था। विध्यांचल के मंदिरों में हजारों भक्तों की भीड़ देखी जा सकती है और ये संख्या नवरात्रों के दिनों में तो और बढ़ जाती है।

विशालाक्षी शक्तिपीठ, वाराणसी

भगवान शिव की प्रिय नगरी बनारस के मणिकर्णिका घाट पर अलौकिक शक्तिपीठ है, जहां माता सती की मणिकर्णिका गिरी थी। यहां माता के विशालाक्षी और मणिकर्णी स्वरूप की पूजा होती है। विशाल नेत्रों वाली मां विशालाक्षी का यह स्थान मां सती के 51 शक्ति पीठों में से भी एक है। इनका महत्व कांची की मां (कृपा दृष्टा) कामाक्षी और मदुरै की (मत्स्य नेत्री) मीनाक्षी के समान है। स्कंद पुराण कथा के अनुसार जब ऋ षि व्यास को वाराणसी में कोई भी भोजन अर्पण नहीं कर रहा था, तब विशालाक्षी एक गृहिणी की भूमिका में प्रकट हुईं और ऋ षि व्यास को भोजन दिया। विशालाक्षी की भूमिका बिलकुल अन्नपूर्णा के समान थी।

तरकुलहा माता मंदिर, गोरखपुर

गोरखपुर जिले में माता का एक चमत्कारी मंदिर है, जिसे तरकुलहा मंदिर के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब कोई अंग्रेज मां के मंदिर के पास से गुजरता था तो क्रांतिकारी बंधू सिंह उसका सिर काटकर देवी मां को समर्पित करता था। अंग्रेजों ने बंधू सिंह को पकडक़र सार्वजनिक फांसी दी लेकिन हर बार फांसी का फंदा टूट जाता था। यह 6 बार हुआ जिसपर जल्लाद ने बंधू सिंह से गिड़गिड़ाते हुए कहा कि अगर उन्हें फांसी नहीं दी तो अंग्रेज जल्लाद को मार देंगे। इस पर बंधू सिंह ने माता से प्रार्थना की और 7वीं बार में उन्हें फांसी हो गई।

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