देशभर में रक्षा विभाग की इतने एकड़ जमीन पर अतिक्रमण और अवैध कब्जा, केंद्र ने SC को सौंपी रिपोर्ट

केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि देश में 75,629 एकड़ डेफिंस की जमीन में से 2,024 एकड़ जमीन पर वर्तमान में व्यक्तियों ने अतिक्रमण कर रखा है.

4पीएम न्यूज नेटवर्क: केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी कि देशभर में रक्षा विभाग की जमीन पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण और अवैध कब्जा किया गया है।

सरकार की ओर से दाखिल स्टेट्स रिपोर्ट के अनुसार, देश में रक्षा मंत्रालय के पास किल 75,629 एकड़ जमीन है, जिसमें से 2,024 एकड़ भूमि पर व्यक्तियों द्वारा अतिक्रमण किया गया है।केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि देश में 75,629 एकड़ डेफिंस की जमीन में से 2,024 एकड़ जमीन पर वर्तमान में व्यक्तियों ने अतिक्रमण कर रखा है. साथ ही 1,575 एकड़ भूमि उन लोगों के अनधिकृत कब्जे में है, जिन्होंने कृषि के मकसद से जमीन को लीज पर लिया था.

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच को अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल कर दी गई है. अतिक्रमण हटाने के लिए कार्रवाई की जा रही है. केंद्र सरकार ने कहा कि अतिक्रमण हटाने के लिए उठाए गए कदमों की निगरानी के लिए एक नई समिति गठित की गई है, जिसके बाद अदालत ने नई स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल करने के लिए दो महीने का समय दिया है.

819 एकड़ जमीन पर स्कूल-पार्क
रक्षा मंत्रालय की ओर से दाखिल स्टेट्स रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 819 एकड़ जमीन राज्य और केंद्र सरकार के विभागों या उनके उपक्रमों के कब्जे में विभिन्न सार्वजनिक-इस्तेमाल के मकसद के लिए है. जैसे कि सड़कें बनाना, स्कूल, सार्वजनिक पार्क और बस स्टैंड का निर्माण करना, इसके अलावा प्रशासनिक कारण भी हैं.

2024 एकड़ जमीन पर कब्जा
हलफनामे में कहा गया है कि लगभग 75,629 एकड़ रक्षा भूमि डिफेंस एस्टेट्स संगठन  के प्रशासनिक दायरे में आती है. यह जमीन मुख्य रूप से क्लास A-2, B-3, B-4 और C कैटेगरी की है. इसमें से लगभग 52,899 एकड़ जमीन कैंटोनमेंट (छावनी) क्षेत्रों के अंदर है, जबकि 22,730 एकड़ जमीन कैंटोनमेंट के बाहर मौजूद है. इनमें से करीब 2,024 एकड़ जमीन पर लोगों ने अवैध कब्जा किया हुआ है.

साथ ही हलफनामें में कहा गया कि 1,575 एकड़ जमीन पूर्व कृषि पट्टेदारों के अनाधिकृत कब्जे में है, जिनके खिलाफ संबंधित डीईओ की ओर से बेदखली की कार्यवाही शुरू की गई है. यह हलफनामा एनजीओ कॉमन कॉज की ओर से 2014 में दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) में दायर किया गया था, जिसमें देश भर में रक्षा भूमि पर कथित अतिक्रमण की जांच की मांग की गई थी.

कैसे हटाया जाएगा अतिक्रमण?
हलफनामे में कहा गया है, अतिक्रमण हटाने के प्रयासों को बढ़ाने के लिए, रक्षा संपदा महानिदेशालय (डीजीडीई) ने डीजीडीई की ओर से आंतरिक रूप से विकसित उपरोक्त रियल-टाइम रिकॉर्ड प्रबंधन (आरटीआरएम) प्रणाली के तहत एक अतिक्रमण मॉड्यूल का संचालन किया है. यह डिजिटल उपकरण रक्षा संपदा अधिकारियों (डीईओ) और छावनी बोर्डों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) को अतिक्रमण के मामलों की सीधे और पारदर्शी तरीके से नामित संपदा अधिकारियों को रिपोर्ट करने में सक्षम बनाता है.

हलफनामे में कहा गया है कब्जा हटाने की कोशिशों को और मजबूत करने के लिए, डायरेक्टरेट जनरल डिफेंस एस्टेट्स (DGDE) ने एक ‘एन्क्रोचमेंट मॉड्यूल’ शुरू किया है। यह मॉड्यूल रियल-टाइम रिकॉर्ड मैनेजमेंट (RTRM) सिस्टम का हिस्सा है, जिसे DGDE ने खुद ही तैयार किया है.

यह डिजिटल टूल डिफेंस एस्टेट्स ऑफिसरों (DEOs) और कैंटोनमेंट बोर्डों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (CEOs) को कब्जे के मामलों की जानकारी सीधे और पारदर्शी तरीके से तय किए गए एस्टेट ऑफिसरों तक भेजने में मदद करता है. भूमि के अतिक्रमण से आगे बचने के लिए उठाए जा रहे कदम को लेकर मंत्रालय ने कहा कि रक्षा संपदा संगठन की ओर से लैंड को सुरक्षित रखने के लिए बाउंड्री बढ़ाना और फेंसिंग करना शामिल है.

10 सालों में कितना अतिक्रमण हटाया
पिछले 10 सालों में डिफेंस एस्टेट्स संगठन (DEO) के प्रबंधन में आने वाली लगभग 1,715 एकड़ रक्षा भूमि से कब्जा हटाया गया है. यह कार्रवाई डिफेंस एस्टेट्स विभाग के सीईओ (CEO) और डीयो (DEO) ने की. मंत्रालय ने बताया कि सिर्फ इस साल ही, CoE सर्वे जैसी तकनीकी सुविधाओं और स्थानीय प्रशासन के बेहतर सहयोग की मदद से लगभग 220 एकड़ रक्षा भूमि से अवैध कब्जा हटाया गया है.

7 मई को, सुप्रीम कोर्ट ने निजी संस्थाओं को रक्षा भूमि के आवंटन में अनियमितताओं की ओर इशारा किया और एक जांच दल गठित करने पर विचार किया. छावनी क्षेत्रों का नाम लिए बिना, अदालत ने बताया कि उनमें से कुछ में एकड़ों में फैले खुले स्थान वाले आलीशान बंगले और एक विशाल शॉपिंग कॉम्प्लेक्स हैं, जो रक्षा संपदा अधिकारियों की मिलीभगत से बनाए गए थे. 2014 में, शीर्ष अदालत देश भर में रक्षा भूमि के कथित अतिक्रमण और दुरुपयोग की सीबीआई जांच की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हुई थी.

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