घोसी उपचुनाव: एनडीए के लिए बजी खतरे की घंटी, विपक्षी गठबंधन में बढ़ा सपा का कद

लखनऊ। घोसी सीट के उपचुनाव के नतीजे ने विपक्षी गठबंधन इंडिया को बड़ी ताकत दी है। वहीं, भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को आत्ममंथन के लिए विवश किया है। भले ही नतीजा सिर्फ एक सीट का हो, लेकिन इसकी चर्चा लोकसभा चुनाव तक रहेगी। इंडिया के गठन के बाद यूपी में हुए पहले चुनाव में विपक्षी दलों ने पूरी ताकत लगाई। सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह को कांग्रेस, रालोद, आप और अपना दल कमेरावादी ने भी समर्थन दिया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सुधाकर सिंह की बड़े अंतर से जीत ने न सिर्फ सपा को ऊर्जा दी है, बल्कि विपक्षी गठबंधन को मजबूती दे सकता है। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अब इंडिया के घटक दल अपने गठबंधन को मजबूत करने के लिए सीटों के बंटवारे में अडिय़ल रुख के बजाय समझौतावादी रास्ता अपनाएंगे। इतना ही नहीं जो छोटे विपक्षी दल अब तक इंडिया में शामिल होने से बच रहे थे, वह भी गठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं।
घोसी उपचुनाव से भविष्य की राजनीति का अंदाजा सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के एक्स (पूर्व नाम ट्विटर) पर दिए बयान से लगाया जा सकता है। अखिलेश ने कहा कि घोसी ने सिर्फ सपा का नहीं, बल्कि इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी को जिताया है। अब यही आने वाले कल का भी परिणाम होगा। यूपी एक बार फिर देश में सत्ता के परिवर्तन का अगुआ बनेगा। उन्होंने कहा कि भारत ने इंडिया को जिताने की शुरुआत कर दी है और यह देश के भविष्य की जीत है। अखिलेश के बयान से साफ है कि लोकसभा चुनाव में इंडिया फिर एनडीए को हराने के लिए पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरेगा। जानकारों का मानना है कि उपचुनाव के नतीजों से लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में अपना दल, सुभासपा और निषाद पार्टी की भागीदारी पर भी असर पड़ेगा। यदि उपचुनाव भाजपा जीतती तो राजभर और निषाद मजबूती से मोलभाव कर पाते।
घोसी के नतीजे बताते हैं कि सपा ने भाजपा के परंपरागत ठाकुर, भूमिहार, वैश्य के साथ राजभर, निषाद और कुर्मी मतदाताओं में अच्छी खासी सेंध लगाई है। वहीं सपा का परंपरागत यादव और मुस्लिम वोटबैंक तो उसके साथ मजबूती से खड़ा रहा। स्वार उपचुनाव में मिली हार के बाद माना जा रहा था कि मुस्लिम वोट सपा से खिसक रहा है, लेकिन घोसी में मिली जीत ने सपा के साथ मजबूती से होने की बात फिर साबित की है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि घोसी उपचुनाव के नतीजे पूरे लोकसभा चुनाव की नतीजों पर असर डालेंगे यह कहना उचित नहीं हैं। लेकिन यूपी में इसका असर होगा। खासतौर पर पूर्वांचल की सीटों पर भाजपा को सोचना पड़ेगा। भाजपा के लिए यह संदेश भी है कि वह इतना ताकतवर न माने कि राजनीति में वैसा ही होगा, जैसा वह चाहेगी।
उपचुनाव में सपा ने भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान के खिलाफ अवसरवादी और बाहरी होने का मुद्दा उठाया था। सपा ने मतदाताओं को बताया कि 16 महीने पहले चुनाव जीतने के लिए दारा सिंह भाजपा छोडक़र सपा में आए थे। चुनाव जीतने के बाद अब मंत्री बनने के लिए फिर भाजपा में चले गए हैं। इसे दारा की हार की बड़ी वजह मानी जा रही है। आजमगढ़ के मूल निवासी दारा सिंह 2017 में मऊ की मधुबन सीट से चुनाव लड़े थे। तब वे बसपा छोडक़र भाजपा में आए थे। जब 2022 का चुनाव आया तो वे भाजपा छोड़ सपा में चले गए और मऊ की घोसी सीट से चुनाव लड़े और जीते। उपचुनाव में दारा फिर घोसी से चुनाव लड़े, लेकिन इस बार वे सपा की जगह भाजपा से थे।

भाजपा की हार के कारण
– दलित वोट उम्मीद के हिसाब से न मिलना। बड़ी तादाद में क्षत्रिय सजातीय उम्मीदवार के साथ चले गए।
– साढ़े छह साल में चौथे विधानसभा चुनाव से राजनीतिक अस्थिरता का माहौल।
– एनडीए के सहयोगी दलों का सजातीय वोट बैंक में पकड़ साबित न कर पाना।
– रामपुर और आजमगढ़ उपचुनाव जैसा माहौल का न बन पाना।

सपा की जीत के कारण
– सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का खुद उप चुनाव के मैदान में उतरना और सुधाकर सिंह का स्थानीय होना।
– मुस्लिम-यादव फैक्टर का मजबूत होना।
– बसपा के मैदान में न होने से दलित मतदाताओं के बीच पैठ बढ़ाने में कामयाबी
– स्थानीय मुद्दों का सपा के पक्ष में होना।
काम नहीं आए जातीय समीकरण
घोसी में करीब 55 हजार राजभर, 19 हजार निषाद और 14 हजार कुर्मी मतदाता हैं। भाजपा ने सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद की सभाएं, रैलियां और बैठकें कराईं। लेकिन चुनाव आंकड़े बता रहे हैं कि कुर्मी, राजभर और निषाद मतदाताओं ने स्थानीय उम्मीदवार को महत्व देते हुए मतदान किया है। यही नहीं करीब 8 हजार ब्राह्मण और तकरीबन 15 हजार क्षत्रिय भी सपा की ओर चले गए।

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