यूपी में लग सकता है मोदी को झटका
- घोसी चुनाव नतीजों ने छुड़ाये पसीने
- 80 लोस सभा सीटों पर बिगड़ेगा खेला
- मोदी के तीसरी बार पीएम बनने के सपने पर लग सकता है ब्रेक
- ठाकुर और दलित मतदाताओं के सपा में जाने से भाजपा में हडक़ंप
- पीडीए के साथ जुड़े ठाकुर
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। घोसी उपचुनाव के नतीजे क्या भाजपा के लिए खतरा साबित हो सकते हैं। ऐसी चर्चा सियासत की गलियारों से लेकर आम लोगों के बीच हो रही है। दरअसल, घोसी विधान सभा सीट पर सपा के प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने भाजपा के दारा सिंह चौहान को 40 हजार से ज्यादा मतों से हरा दिया। जो आंकड़े आ आए हैं उससे तो ऐसा लग रहा है कि सपा के प्रत्याशी को सारी जातियों के वोट मिले हैं। सपा ने घोसी में ठाकुर को टिकट दिया था। सुधाकर सिंह को ठाकुरों समेत ऊंची जातियों का भी जमकर वोट मिला है। साथ ही उन्हें सपा के परंपरागत वोट पिछड़ा, मुस्लिम व यादव के वोट भी खूब मिलें है। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह रही इस बार दलित वोट भी ढेरों की तादाद में सपा की झोली में आए हैं। घोसी सीट के उपचुनाव के नतीजे ने विपक्षी गठबंधन इंडिया को बड़ी ताकत दी है। वहीं, भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को आत्ममंथन के लिए विवश किया है। अगर यही ट्रैंड लोकसभा चुनाव 2024 में कायम रहा तो मोदी के लिए आगामी चुनाव में यूपी से झटका लग सकता है साथ ही उनका तीसरी बार पीएम बनने का सपना भी सपना ही रह सकता है। भले ही नतीजा सिर्फ एक सीट का हो, लेकिन इसकी चर्चा लोकसभा चुनाव तक रहेगी। जून में इंडिया गठबंधन की घोषणा के बाद यूपी में यह पहला चुनाव था। खास बात यह है कि लोकसभा चुनाव से पहले यह आखिरी उपचुनाव भी था। अब देश और प्रदेश सीधे लोकसभा चुनाव में ही जाएगा। जून 2022 में आजमगढ़ और रामपुर में हुए लोकसभा उप चुनाव में भाजपा ने सपा को करारी शिकस्त दी थी। ये दोनों ही क्षेत्र समाजवादियों के किले माने जाते थे। उसके बाद दिसंबर 2022 में विधानसभा उप चुनाव में रामपुर विधानसभा सीट भी सपा के हाथ से चली गई। यह सीट सपा नेता आजम खां को हेट स्पीच मामले में सजा होने से खाली हुई थी। उपचुनाव में यह सीट भाजपा प्रत्याशी आकाश सक्सेना को मिली। पहली बार यहां से कोई गैर मुस्लिम प्रत्याशी जीता। पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के प्रयोग, इंडिया के समर्थन और अखिलेश यादव के परिवार की एकजुटता ने घोसी में सपा की जीत की राह आसान कर दी। आजमगढ़ और रामपुर का गढ़ ढहने के बाद घोसी की इस जीत ने जहां समाजवादियों का मनोबल बढ़ाया है, वहीं इंडिया के घटक दलों को मजबूती के साथ ऐसे ही आगे बढऩे का संदेश भी दिया है। बसपा की चुनाव से दूरी, भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह के दलबदल से नाराजगी और पीडीए के नारे के बीच सपा का क्षत्रिय प्रत्याशी उतारना भी उसके लिए मुफीद साबित हुआ।
यूपी से निकलेगा देश का भविष्य : अखिलेश
घोसी उपचुनाव से भविष्य की राजनीति का अंदाजा सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के एक्स (पूर्व नाम ट्विटर) पर दिए बयान से लगाया जा सकता है। अखिलेश ने कहा कि घोसी ने सिर्फ सपा का नहीं, बल्कि इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी को जिताया है। अब यही आने वाले कल का भी परिणाम होगा। यूपी एक बार फिर देश में सत्ता के परिवर्तन का अगुआ बनेगा। उन्होंने कहा कि भारत ने इंडिया को जिताने की शुरुआत कर दी है और यह देश के भविष्य की जीत है। अखिलेश के बयान से साफ है कि लोकसभा चुनाव में इंडिया फिर एनडीए को हराने के लिए पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरेगा।
भाजपा के वोट बैंक में सेंध
घोसी के नतीजे बताते हैं कि सपा ने भाजपा के परंपरागत ठाकुर, भूमिहार, वैश्य के साथ राजभर, निषाद और कुर्मी मतदाताओं में अच्छी खासी सेंध लगाई है। वहीं सपा का परंपरागत यादव और मुस्लिम वोटबैंक तो उसके साथ मजबूती से खड़ा रहा। स्वार उपचुनाव में मिली हार के बाद माना जा रहा था कि मुस्लिम वोट सपा से खिसक रहा है, लेकिन घोसी में मिली जीत ने सपा के साथ मजबूती से होने की बात फिर साबित की है।
खतौली में हारी थी भाजपा
रामपुर के साथ ही खतौली विधानसभा सीट पर उपचुनाव में सपा-रालोद गठबंधन के प्रत्याशी मदन भैया की जीत ने सपा को मरहम लगाने का काम भी किया, क्योंकि पहले यह सीट भाजपा के पास थी। सपा नेता आजम खां के बेटे अब्दुल्ला आजम की सदस्यता रद्द होने से रामपुर की स्वार सीट पर इसी साल मई में उपचुनाव हुए। इसमें सपा ने हिंदू कार्ड खेलते हुए अनुराधा चौहान को अपना प्रत्याशी बनाया, लेकिन भाजपा गठबंधन के तहत अपना दल (एस) के मुस्लिम प्रत्याशी शफीक अहमद अंसारी जीते। यानी, सपा का यह किला भी ढह गया।
पूर्वांचल के लिए भाजपा को सोचना पड़ेगा
राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि घोसी उपचुनाव के नतीजे पूरे लोकसभा चुनाव की नतीजों पर असर डालेंगे यह कहना उचित नहीं हैं। लेकिन यूपी में इसका असर होगा। खासतौर पर पूर्वांचल की सीटों पर भाजपा को सोचना पड़ेगा। भाजपा के लिए यह संदेश भी है कि वह इतना ताकतवर न माने कि राजनीति में वैसा ही होगा, जैसा वह चाहेगी। भाजपा को इसबार दलित वोट उम्मीद के हिसाब से न मिले। बड़ी तादाद में क्षत्रिय सजातीय उम्मीदवार के साथ चले गए। एनडीए के सहयोगी दलों का सजातीय वोट बैंक में पकड़ साबित न कर पाना व रामपुर और आजमगढ़ उपचुनाव जैसा माहौल का न बन पाना भी भाजपा केलिए नुकसान देह साबित हुआ।
काम नहीं आई निषाद व राजभर की रणनीति
घोसी में करीब 55 हजार राजभर, 19 हजार निषाद और 14 हजार कुर्मी मतदाता हैं। भाजपा ने सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद की सभाएं, रैलियां और बैठकें कराईं। लेकिन चुनाव आंकड़े बता रहे हैं कि कुर्मी, राजभर और निषाद मतदाताओं ने स्थानीय उम्मीदवार को महत्व देते हुए मतदान किया है। यही नहीं करीब 8 हजार ब्राह्मण और तकरीबन 15 हजार क्षत्रिय भी सपा की ओर चले गए।
कारगर रणनीति ने दिलाई कामयाबी
आजमगढ़ और रामपुर के उपचुनाव में प्रचार के लिए अखिलेश नहीं गए थे, लेकिन घोसी उप चुनाव में न सिर्फ उन्होंने सभा की, बल्कि परिवार के लोग भी क्षेत्र में डटे रहे। पार्टी के प्रमुख महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव कई दिनों तक वहां डेरा डाले रहे, वहीं महासचिव शिवपाल सिंह यादव भी मतदान के दिन तक आसपास ही जमे रहे। पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव के अलावा पूर्व मंत्री रामगोविंद चौधरी, पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष राजपाल कश्यप, पूर्व एमएलसी उदयवीर और महिला प्रकोष्ठ की राष्टï्रीय अध्यक्ष जूही सिंह समेत सभी प्रमुख नेताओं ने घर-घर संपर्क किया। सपा की रणनीति रही कि आसपास के जिलों के नेताओं को उनके सजातीय मतदाताओं के बीच उतारा जाए, जिसने भी सफलता दिलाने में काफी मदद की। सपा ने विशेष रणनीति के तहत मतदाताओं को बूथ तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया। मतदाता सूची पर भी शुरू से ही नजर रखी।