सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने की तैयारी में सरकार, INDIA ने खेल कर दिया!
सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त दो हजार चौबीस को अनुसूचित जाति... और अनुसूचित जनजाति यानी एससी और एसटी के आरक्षण को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया....
4पीएम न्यूज नेटवर्कः सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त दो हजार चौबीस को अनुसूचित जाति… और अनुसूचित जनजाति यानी एससी और एसटी के आरक्षण को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया…. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकार इन दोनों ही समुदायों के आरक्षण के भीतर अलग से वर्गीकरण कर सकती है…. कोर्ट ने कहा कि राज्यों के पास इन कैटेगरी की वंचित जातियों के उत्थान के लिए एससी… और एसटी में उप-वर्गीकरण करने की शक्तियां हैं… वहीं फैसला सुनाते हुए जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि राज्यों को एससी…. और एसटी वर्ग में क्रीमी लेयर की पहचान करना चाहिए… तथा उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए…. वहीं सुनवाई कर रहे पीठ के दूसरे जज जस्टिस विक्रम नाथ ने भी इस फैसले का समर्थन किया… और कहा कि ओबीसी वर्ग में जिस तरह से क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू होता है…. उसी तरह से एससी/एसटी कैटेगरी में भी लागू होना चाहिए…. हालांकि एक न्यायाधीश ने इसका विरोध किया…. बता दें कि सात जजों के बेंच के 6 जजों ने आरक्षण में उपवर्गीकरण के पक्ष में फैसला सुनाया… वहीं आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जमकर विरोध होना शुरू हो गया… और विपक्षी दल सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं दिख रहें है…. और कोटे में कोटा को लेकर सरकार पर भी जमकर हमलावर है… इस बीच सबसे बड़ा सवाल उठता है कि आरक्षण में वर्गीकरण किस आधार पर किया जाएगा… और इस प्रावधान से किसको फायदा मिलेगा… और किसको मुकसान उठाना पड़ेगा…
आपको बता दें कि आरक्षण के दृष्टिकोण से क्रीमी लेयर शब्द का प्रयोग अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी वर्ग के तहत उन सदस्यों की पहचान करने के लिए किया जाता है…. जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से अन्य ओबीसी वर्ग के लोगों की तुलना में काफी संपन्न हैं…. ओबीसी वर्ग में ही क्रीमी लेयर के तहत आने वाले लोगों को सरकार की शैक्षिक, रोजगार और अन्य योजनाओं के लिए पात्र नहीं माना जाता है…. बता दें कि साल उन्नीस सौ इकहत्तर में क्रीमी लेयर शब्द का इस्तेमाल सत्तानाथन आयोग द्वारा लाया गया था….. उस दौरान आयोग ने निर्देश देते हुए कहा था… कि क्रीमी लेयर के तहत आने वाले लोगों को सिविल सेवा परीक्षा में आरक्षण के दायरे से बाहर रखना चाहिए…. वर्तमान में ओबीसी वर्ग के तहत क्रीमी लेयर के कुल आय सालाना 8 लाख रुपये निर्धारित की गई है…. हालांकि समय-समय पर यह बदलती रहती है…. इंदिरा साहनी मामले में साल उन्नीस सौ बाननबे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण को जारी रखने के बाद ओबीसी वर्ग में क्रीमी लेयर के लिए मापदंड को निर्धारित करने के लिए एक समिति बनाई गई थी…. इस समिति का नेतृत्व रिटायर्ड जज आरएन प्रसाद कर रहे थे…. इस समिति ने 8 सितंबर उन्नीस सौ तिरानबे को सुझाव देते हुए कहा कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने कुछ आय, रैंक और स्थिति वाले लोगों की अलग-अलग श्रेणियों को लिस्ट किया है…. जिनके बच्चे ओबीसी वर्ग के आरक्षण के पात्र नहीं होंगे…. वहीं साल उन्नीस सौ इकहत्तर में सत्तानाथन समिति ने आय के आधार पर ओबीसी वर्ग में क्रीमी लेयर की पहचान निर्धारित की…. इस दौरान पिछड़े वर्ग के क्रीमी लेयरों के माता-पिता के सभी स्त्रोतों से आय एक लाख रुपये प्रतिवर्ष निर्धारित की गई…. और साल दो हजार चौदह में इसे संसोधित करके दो लाख पचाह हजार कर दिया गया…. वहीं साल दो हजार आठ में यह चार लाख पचास हजार रुपये प्रतिवर्ष था…. साल दो हजार तेरह में इसे 6 लाख रुपये प्रतिवर्ष और फिर साल दो हजार सत्रह में इसे 8 लाख रुपये प्रतिवर्ष निर्धारित किया गया…. कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने निर्धारित किया कि हर 3 साल में आय की सीमा में संशोधन किया जाएगा….
वहीं कोर्ट के फ़ैसले का समर्थन के साथ बहुत विरोध भी हुआ है…. कोर्ट के फ़ैसले के समर्थकों का कहना है कि इससे पिछड़ी जातियों और जनजातियों को फ़ायदा होगा…. इस फ़ैसले के समर्थकों में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन, आंध्र प्रदेश के एन चंद्रबाबू नायडू, बिहार के नीतीश कुमार और भारतीय जनता पार्टी के कई नेता शामिल हैं…. बता दें कि आलोचकों का कहना है कि ये आरक्षण के मूल सिद्धांतों के ख़िलाफ़ जाता है… और इससे दलित और आदिवासी में राजनीतिक फूट पैदा होगी…. वहीं एक अहम मुद्दा अब ये भी है कि इस वर्गीकरण को लागू कैसे किया जाएगा…. कोर्ट ने कहा है कि ये आंकड़ों के आधार पर होगा पर इस पर ज़्यादा विवरण नहीं दिया…. पहले आरक्षण के कई मुद्दों पर कोर्ट ने आरक्षण की कुछ नीतियां खारिज की हैं…. जैसे ओबीसी रिजर्वेशन में उप-वर्गीकरण, स्थानीय निकाय चुनाव में औबीसी रिजर्वेशन… और सरकारी नौकरी में पदोन्नति में आरक्षण…. अभी अनुसूचित जाति को पंद्रह फीसदी आरक्षण मिलता है और अनुसूचित जनजाति को सात दशमलव पांच फीसदी… और इनकी सूची राष्ट्रपति बनाते हैं…. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के छह जजों ने कहा है कि इस लिस्ट में राज्य सरकार सिर्फ़ उप-वर्गीकरण कर सकती है…. और कुछ सीटों को एक अनुसूचित जाति या जनजाति के लिए अंकित कर सकती है…. कोर्ट का ये मानना था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एक समान नहीं हैं…. उनका कहना था कि कुछ जातियां बाक़ी से ज़्यादा पिछड़ी हुई हैं…. जिसको लेकर चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कुछ रिसर्च का उदाहरण दिया…. जैसे कुछ अनुसूचित जातियां जैसे गरोड़ा, दलितों में पुजारी की तरह माने जाते हैं…. जिनका अस्तित्व कुछ अनुसूचित जातियों से ऊपर देखा जाता है….
बता दें कि चंद्रचूड़ ने लिखा कि गुजरात के एक अध्ययन में ये पाया गया कि कुछ अनुसूचित जातियां आपस में छुआछूत करती हैं…. और एक दूसरे के हाथ से बना खाना या पानी नहीं लेते…. कुछ जनजातियों को दलितों के मंदिर में आने नहीं दिया जाता था…. और उन्होंने लिखा कि आंध्र प्रदेश की माला जाति, जो बुनाई का काम करती है, और मढ़िगा जाति, जो चमड़े का काम करती है, उन दोनों में बहुत असमानता है…. मढ़िगा जाति को माला जाति के मुक़ाबले नीचे स्तर का माना जाता है…. इससे उनके पढ़ाई, नौकरी और राजनीतिक गतिविधियों पर भी फ़र्क़ पड़ता है…. वहीं जस्टिस बीआर गवई ने जस्टिस उषा मेहरा कमेटी की रिपोर्ट को तलब करते हुए कहा कि आंध्र प्रदेश में साठ अनुसूचित जातियों में से केवल 4 से 5 को ही आरक्षण का लाभ मिल रहा था… बता दें कि इन सभी आंकडों का हवाला देते हुए, कोर्ट ने उप-वर्गीकरण की अनुमति दी…. वहीं आरक्षण में वर्गीकरण के कोर्ट के फैसले को लेकर विपक्ष लगातार केंद्र की मोदी सरकार पर हमलावर है… इसी कड़ी में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अंदर उप-वर्गीकरण और ‘क्रीमी लेयर’ संबंधी उच्चतम न्यायालय के फैसले के प्रति विरोध जताते हुए कहा कि सरकार को यह निर्णय आते ही इसे संसद के माध्यम से निरस्त करना चाहिए था…. और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी पर आरक्षण खत्म करने के प्रयास का आरोप … और यह भी कहा कि किसी को क्रीमी लेयर के फैसले को मान्यता नहीं देना चाहिए…. तथा जब तक छुआछूत है…. तब तक आरक्षण रहना चाहिए…
आपको बता दें कि मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि आज सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपकर सरकारी नौकरी और आरक्षण खत्म किया जा रहा है…. एक तरफ देश में लाखों सरकारी नौकरियां हैं…. जिनमें भर्तियां नहीं की जा रही हैं…. दूसरी तरफ आप क्रीमी लेयर लाकर दलित समाज को कुचल रहे हैं… मैं इसका विरोध करता हूं… कांग्रेस अध्यक्ष के अनुसार एसटी-एसटी का ये जो मुद्दा उठा है…. उसमें दलितों-वंचितों के बारे में नहीं सोचा गया…और उन्होंने कहा कि जब तक इस देश में छुआछूत है,…. तब तक आरक्षण रहना चाहिए और रहेगा…. उसके लिए हम लड़ते रहेंगे…. मेरी अपील है कि सभी मिलकर इस क्रीमी लेयर के फैसले को मान्यता न दें…. कर्नाटक में आज भी ऐसे कुछ गांव हैं… जहां लोगों को अंदर आने नहीं दिया जाता… जब तक देश में ऐसी चीजें चल रही हैं…. आप आरक्षण खत्म नहीं कर सकते…. वहीं खरगे ने कहा कि हर राज्य में एससी-एसटी की सूची अलग होती है…. इसलिए इस सूची से किसको कितना फायदा होता और किसको नुकसान होता है…. इस विषय में हम बारीकी से सोचकर आगे कदम बढ़ाएंगे….. इस मुद्दे पर राहुल गांधी जी भी सोच रहे हैं… और उन्होंने कई बुद्धिजीवियों को बुलाकर इस विषय में चर्चा भी की है…. हम दलितों-वंचितों की हिफाजत के लिए जो भी कर सकते हैं, वह करेंगे… और उन्होंने कहा कि आज आरक्षण होते हुए भी उच्च न्यायालयों में दलित समाज के लोग नहीं हैं…. उच्चतम न्यायालय में भी नाम मात्र के लोग हैं…. वहीं, अफसरों के बड़े पदों पर भी कोई नहीं है…. खरगे ने सवाल किया कि इतना सारा बैकलॉग होने के बावजूद क्रीमी लेयर कैसे लागू किया जा सकता है…
वहीं इन सबके बीच महाराष्ट्र में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं… और चुनावों से पहले मराठा आरक्षण का मुद्दा सियासी दलों के लिए गले की फांस बन गया है…. कुनबी प्रमाण पत्र जारी करने और फूलप्रूफ मराठा आरक्षण की मांग को लेकर मनोज जरांगे ने आंदोलन छेड़ रखा है…. वहीं, मराठा आरक्षण समर्थक अब नेताओं के काफिले और उनकी रैलियों को भी टार्गेट करने लगे हैं…. दो दिन पहले ही सोलापुर में मराठा आरक्षण समर्थकों ने मराठा क्षत्रप शरद पवार का काफिला रोक कर…. इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करने की मांग की थी… पवार ने आरक्षण की मांग के समर्थन की बात कही… और तब जाकर उनका काफिला आगे बढ़ सका लेकिन रैली में भी उन्हें काले झंडे दिखाए गए… और मनोज जरांगे के समर्थन में नारे लगाए गए…. बता दें कि इन सब घटनाक्रमों के एक दिन बाद ही इसे लेकर शरद पवार का बड़ा बयान आया है…. शरद पवार ने आरक्षण को लेकर 50 फीसदी की लिमिट हटाने की मांग करते हुए कहा कि केंद्र सरकार इसे लेकर बिल लाती है.. तो महाराष्ट्र की सभी पार्टियां इसका समर्थन करेंगी…. शरद पवार ने ये भी कहा कि मोदी सरकार अगर मराठा आरक्षण का प्रावधान करती है… तो हम इसका भी समर्थन करेंगे… औऱ उन्होंने शिंदे सरकार से इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग करते हुए यह सलाह भी दे डाली कि मनोज जरांगे… और छगन भुजबल जैसे मराठा और ओबीसी नेताओं को साथ बैठाकर भी सरकार को हल तलाशना चाहिए…. पवार ने ये भी जोड़ा कि जब आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से अधिक हो जाती है… तो सुप्रीम कोर्ट की 50 फीसदी वाली लिमिट लागू हो जाती है… इस मामले में केंद्र सरकार ही कुछ कर सकती है…
हालांकि, जब बिहार में जाति आधारित गणना के बाद पैंसठ फीसदी आरक्षण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग को दिया, तब पटना हाई कोर्ट ने उसे ख़ारिज कर दिया…. और कोर्ट ने कहा कि सिर्फ़ इन समुदायों की जनसंख्या के आधार अपर राज्य ने आरक्षण पारित कर दिया…. कोर्ट के मुताबिक़ इनकी सरकारी नौकरियों में पर्याप्त हिस्सेदारी थी…. तो आने वाले दिनों में जब राज्य उप-वर्गीकरण करेंगे… और उसे कोर्ट में चुनौती मिलेगी…. तो इसपर और स्पष्टता आएगी कि इस उप-वर्गीकरण को कैसे लागू किया जाए… सब साफ हो जाएगा…