मोदी के खिलाफ जोशी की सुप्रीम कोर्ट एंट्री, ड्रीम प्रोजेक्ट पर मंडराया खतरा!

मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है... बीजेपी के वरिष्ठ नेता और मार्गदर्शक मंडल के सदस्य मुरली मनोहर जोशी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड के पहाड़ों को बचाने के लिए.. खुद बीजेपी के दिग्गज नेता मैदान में उतर आए.. जी हां पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी.. और पूर्व केंद्रीय मंत्री कर्ण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई को एक ऐसा पत्र लिखा है.. जो न सिर्फ पर्यावरण की रक्षा की गुहार है.. बल्कि बीजेपी के अंदरूनी कलह को भी उजागर कर रहा है.. बता दें कि यह पत्र 2021 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर पुनर्विचार की मांग करता है.. जिसमें चार धाम प्रोजेक्ट के तहत सड़कों को 12 मीटर चौड़ा करने की इजाजत दी गई थी.. जोशी और सिंह का कहना है कि इस फैसले ने हिमालय को भूस्खलन और बाढ़ की चपेट में धकेल दिया है.. 57 बड़े-बड़े नामों ने इस पत्र का समर्थन किया है.. जिसमें इतिहासकार रामचंद्र गुहा से लेकर आरएसएस के पूर्व विचारक केएन गोविंदाचार्य तक शामिल हैं..

आपको बता दें कि यह खबर सिर्फ पर्यावरण की नहीं.. बल्कि राजनीति की भी है.. बीजेपी के ये वरिष्ठ नेता खुलेआम मोदी सरकार के ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ पर सवाल उठा रहे हैं.. जिसे रक्षा जरूरत बताकर शुरू किया गया था.. गुजरात से जोशी की वापसी की अटकलें भी जोर पकड़ रही हैं.. क्योंकि उनका गृह राज्य होने के बावजूद वे केंद्र की नीतियों के खिलाफ बोल रहे हैं.. जिससे बीजेपी की हलक सूखी हुई है.. क्या यह बगावत का संकेत है.. बता दें कि इस बगावत से गुजरात लॉबी में हड़कंप मचा है..

वहीं सबसे पहले हम चार धाम प्रोजेक्ट पर बात करेंगे.. बता दें कि यह उत्तराखंड सरकार का एक बड़ा प्लान है… जो 2018 में शुरू हुआ.. चार धाम यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ.. और केदारनाथ.. ये हिंदू धर्म के पवित्र तीर्थस्थल हैं.. हर साल लाखों श्रद्धालु इन्हें पैदल या जीप से जाते हैं, लेकिन सड़कें तंग और खराब हैं.. प्रोजेक्ट का मकसद था सड़कों को चौड़ा करके यात्रा आसान बनाना.. कुल 900 किलोमीटर सड़कें.. जिनमें से 250 किलोमीटर पहाड़ी इलाकों में थी.. जो करीब 8500 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट था.. केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय राजमार्ग का दर्जा दिया.. ताकि फंडिंग आसानी से हो..

मोदी जी ने खुद 2018 में इसका उद्घाटन किया.. उनका कहना था कि यह तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए है.. और रक्षा जरूरत भी पूरी करेगा.. क्योंकि ये इलाके चीन बॉर्डर के करीब हैं.. तो सेना के वाहनों के लिए चौड़ी सड़कें जरूरी बताई गईं.. सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि इससे पर्यटन बढ़ेगा, रोजगार आएगा.. लेकिन शुरू से ही पर्यावरणविद चिल्ला रहे थे कि हिमालय को मत काटो.. हिमालय तो दुनिया का सबसे युवा और नाजुक पर्वत है.. यह टेक्टॉनिक प्लेट्स के टकराव से बना है.. जो लगातार हिलता रहता है.. यहां की मिट्टी ढीली है, जंगल घने, नदियां तेज है.. सड़क चौड़ी करने से पहाड़ कटेंगे, पेड़ गिरेंगे, और बाढ़-भूस्खलन का खतरा बढ़ेगा..

आपको बता दें कि प्रोजेक्ट की शुरुआत में ही विवाद हुआ.. 2018 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने रोक लगाई.. फिर सुप्रीम कोर्ट में केस गया.. सरकार ने दावा किया कि सड़कें सिर्फ 10 मीटर चौड़ी होंगी.. पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा.. लेकिन 2020 में सड़क मंत्रालय का एक सर्कुलर आया.. जिसमें 12 मीटर तक चौड़ी करने की छूट दी गई.. पर्यावरणविदों ने कहा, यह नियम तोड़ना है.. फिर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया.. प्रोजेक्ट चलेगा.. लेकिन पर्यावरण की निगरानी होगी.. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि रक्षा हित सर्वोपरि है.. लेकिन अब, चार साल बाद, वही फैसला मुसीबत बन गया है..

2021 का वो फैसला चार धाम प्रोजेक्ट का टर्निंग पॉइंट था.. सुप्रीम कोर्ट ने 29 जुलाई को फैसला सुनाया.. केस हिमालय नंदा देवी अभियान बनाम सड़क मंत्रालय था.. पर्यावरणविदों ने कहा था कि 12 मीटर चौड़ी सड़कें हिमालय की पारिस्थितिकी बर्बाद करेंगी.. लेकिन कोर्ट ने सरकार की बात मानी.. सरकार ने बताया कि चीन के साथ तनाव है.. ब्रह्मपुत्र घाटी में सड़कें जरूरी है.. कोर्ट ने कहा कि एक हाई पावर्ड कमिटी बनेगी.. जो पर्यावरण की देखभाल करेगी.. लेकिन चौड़ाई 12 मीटर ही रहनी थी..

इस फैसले के बाद काम तेज हुआ.. 2022-23 तक 70% सड़कें बन चुकीं.. लेकिन जल्द ही समस्याएं सामने आईं.. एक रिपोर्ट के मुताबिक इस प्रोजेक्ट से 25 लाख पेड़ कटे.. जंगल कम हुए, तो मिट्टी का कटाव बढ़ा.. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि हिमालय में सड़कें बनाने से भूस्खलन 30% बढ़ जाते हैं.. फिर भी, सरकार ने कहा कि सब कंट्रोल में है.. लेकिन 2023 में पहली बड़ी घटना हुई.. ऋषिकेश-बद्रीनाथ हाईवे पर भूस्खलन से 50 मीटर सड़क धंस गई.. दो लोग मारे गए..

वहीं अब जून 2025 में ‘चार धाम हाईवे कंस्ट्रक्शन एंड द सर्ज इन लैंडस्लाइड फ्रीक्वेंसी’ एक अध्ययन आया.. इसमें कहा गया कि 2021 के बाद भूस्खलन की संख्या दोगुनी हो गई.. 811 जोन जहां खतरा है.. अगस्त 2025 में धराली में फ्लैश फ्लड आया.. जो चार धाम रोड का हिस्सा था.. 10 लोग मरे दर्जनों लापता हो गए.. विशेषज्ञों ने कहा कि यह प्रोजेक्ट की वजह से हुआ.. मोदी सरकार ने इसे ‘प्राकृतिक आपदा’ बताया.. लेकिन आंकड़े झूठ नहीं बोलते..

आपको बता दें कि हिमालय को ‘तीसरा ध्रुव’ कहते हैं.. लेकिन चार धाम प्रोजेक्ट ने इसे आंसू की नदी बना दिया.. सरल शब्दों में समझिए पहाड़ काटने से जड़ें कमजोर हो जाती हैं… बारिश हो तो मिट्टी बह जाती है.. 2021 से 2025 तक, उत्तराखंड में 500 से ज्यादा भूस्खलन हुए.. 2024 में केदारनाथ यात्रा के दौरान 20 जगह सड़कें बंद हो गई.. 2025 में जनवरी से सितंबर तक 200 घटनाएं हुई.. एक रिपोर्ट कहती है, प्रोजेक्ट से ‘सिंकिंग जोन’ बने.. जिससे जगहें धीरे-धीरे धंस रही हैं..

5.5 मीटर की सिंगल लेन पर्यावरण के लिए ठीक थी.. लेकिन 12 मीटर डबल लेन ने पहाड़ों को चीर दिया.. रॉक ब्लास्टिंग से कंपन होता है.. जो टेक्टॉनिक जोन को जगाता है.. सड़कें बनीं, लेकिन पानी निकासी की ठीक व्यवस्था नहीं.. नदियां सड़कों के नीचे बह रही हैं.. तो बाढ़ आती है.. एक अध्ययन में पाया गया कि प्रोजेक्ट से 40% वन क्षेत्र कम हुआ.. पेड़ न होने से मिट्टी पकड़ नहीं पाती…

आपको बता दें कि इस प्रोजेक्ट से उत्तराखंड के लोग सबसे ज्यादा पीड़ित है.. ऋषिकेश से गंगोत्री तक के गांवों में घर टूटे.. जिसको लेकर किसान कहते हैं कि फसलें बर्बाद हो रही हैं.. पर्यटन प्रभावित हुआ.. केदारनाथ यात्रा 20% घटी.. जिससे अरबों रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ.. वैज्ञानिक हिमांशु थापर कहते हैं कि यह जलवायु परिवर्तन से जुड़ा है.. ग्लेशियर पिघल रहे हैं, तो खतरा दोगुना हो गया है.. 2025 के फ्लैश फ्लड में 100 करोड़ का नुकसान हुआ.. सरकार ने राहत दी.. लेकिन रोकथाम पर ध्यान क्यों नहीं दिया..

जिसको लेकर 26 सितंबर 2025 को पत्र भेजा गया.. जोशी और सिंह दोनों बीजेपी के पुराने सिपाही है.. उन्होंने पत्र में कहा कि 2021 का फैसला वापस लो.. 2020 का सर्कुलर रद्द करो.. जो 12 मीटर चौड़ाई की इजाजत देता है.. और चौड़ाई 5.5 मीटर रखो.. पर्यावरण बचाओ.. और उन्होंने कहा कि यह इलाका भूकंप के लिए अतिशंवेदनशील है.. और डबल लेन से तबाही न्योता दे रहे हो..

जिसपर बीजेपी के ही 57 लोगों ने हस्ताक्षर किए.. रामचंद्र गुहा  की किताबें गांधी और हिमालय पर हैं.. केएन गोविंदाचार्य आरएसएस के पूर्व प्रचारक, जो पर्यावरण के हिमायती है… शेखर पाठक पद्मश्री इतिहासकार, वैज्ञानिक, पूर्व सांसद, सामाजिक कार्यकर्ता है.. एक पूर्व IAS अधिकारी ने कहा कि यह पत्र इतिहास रचेगा.. पत्र में जून 2025 के अध्ययन का जिक्र है.. जो 811 लैंडस्लाइड जोन बताता है..

यह पत्र सिर्फ पर्यावरण का नहीं, राजनीति का बम है.. जोशी बीजेपी के फाउंडर मेंबर है.. 2014 में अमित शाह ने उन्हें हाशिए पर धकेला.. अब वे खुलकर बोल रहे है.. कर्ण सिंह कांग्रेसी बैकग्राउंड के है.. लेकिन बीजेपी से जुड़े है.. दोनों का पत्र मोदी के ‘विकास मॉडल’ पर तीर है.. चार धाम तो मोदी का गुजरात मॉडल की तर्ज पर ड्रीम प्रोजेक्ट था..

बता दें कि वे गुजरात में लौटकर लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं.. बीजेपी की गुजरात यूनिट हिल गई.. एक नेता ने कहा कि यह पार्टी के लिए खतरा है.. अमित शाह चुप, लेकिन इंटरनल मीटिंग हो रही है.. विपक्ष हंस रहा है.. कांग्रेस ने कहा कि मोदी जी, अपने ही बोल रहे हैं.. क्या यह 2029 चुनाव से पहले बगावत है.. जोशी ने पहले भी राम मंदिर पर सवाल उठाए.. वहीं अब पर्यावरण को लेकर सवाल उठा रहे हैं.. बीजेपी की हलक सूख गई है.. और ड्रीम प्रोजेक्ट खतरे में है.. अगर SC ने फैसला बदला तो 5000 करोड़ का काम रुकेगा..

वहीं वैज्ञानिक चिल्ला रहे… डॉ. रवि चोपड़ा प्रोजेक्ट कमिटी में थे.. उन्होंने इस्तीफा दे दिया.. और कहा कि 12 मीटर की सड़क बनाना गलत है.. एक अध्ययन कहता है कि सड़कें बनाने से लैंडस्लाइड 200% बढ़े… मंग्रोव इंडिया ने कहा कि फ्लैश फ्लड प्रोजेक्ट की देन है.. आरएसएस के गोविंदाचार्य ने कहा कि हिंदू धर्म प्रकृति पूजा है, इसे बचाओ.. जिसको लेकर गुहा ने लिखा, हिमालय हमारा फेफड़ा है..

 

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