जस्टिस वर्मा की याचिका खारिज, आशीष मिश्रा के खिलाफ जांच के आदेश

- खीरी हिंसा मामले में अभियुक्त है गृह राज्य मंत्री का बेटा
- गवाह को धमकाने के मामले में कोर्ट सख्त, यूपी सरकार को दिये जांच के आदेश
- कानून के शिकंजे में जज, पूछताछ गिरफ्तारी और चार्जशीट की पूरी संभावना
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज दो महत्वपूर्ण मामलों में सख्त रूख अपनाते हुए अलग-अलग निर्णय दिये। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा को बड़ा झटका देते हुए उनकी याचिका को सुनवाई योग्य नहीं मानते हुए खारिज कर दिया है।
वही लखीमपुर-खीरी हिंसा मामले में आरोपी आशीष मिश्रा उर्फ मोनू के खिलाफ गवाह को प्रभावित करने के आरोपों की जांच के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस को निर्देश दिया है। यह मामला किसान आंदोलन के दौरान हुई हिंसा से जुड़ा है, जिसमें पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा पर गंभीर आरोप लगे हैं। दावा किया गया कि आशीष ने गवाह को गवाही न देने के लिए धमकी दी।
खीरी हिंसा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतकर्ता की ओर से एफआईआर दर्ज न करने पर पुलिस पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि अगर शिकायतकर्ता पुलिस के सामने आने में हिचकिचा रहा है, तो पुलिस को खुद जांच के लिए अधिकारी भेजना चाहिए। कोर्ट ने लखनऊ के पुलिस अधीक्षक से इस मामले में हलफनामा दाखिल करने का भी आदेश दिया है। साथ ही, निचली अदालत को निर्देश दिया गया कि वह 20 अगस्त, 2025 तक जितने हो सके उतने गवाहों की गवाही पूरी करे।
जमानत रद्द करने की अपील
इस मामले में वकील प्रशांत भूषण ने आशीष मिश्रा की जमानत रद््द करने की मांग की, जिसमें उन्होंने गवाह को धमकाने का आरोप लगाया। भूषण का कहना था कि गवाहों पर दबाव बनाया जा रहा है। वहीं, आशीष मिश्रा के वकील ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इन आरोपों के कोई सबूत नहीं हैं और बार-बार बिना आधार के ऐसी शिकायतें की जा रही हैं। लखीमपुर-खीरी हिंसा 3 अक्टूबर, 2021 को हुई थी, जब किसानों के प्रदर्शन के दौरान चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी। आरोप है कि आशीष मिश्रा के काफिले की गाड़ी ने किसानों को कुचला था। इसके बाद गुस्साए किसानों ने कुछ लोगों की पिटाई कर दी थी, जिसमें एक पत्रकार की भी जान चली गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने पहले आशीष को जमानत दी थी, लेकिन अब गवाहों को प्रभावित करने के आरोपों के बाद मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच का आदेश दिया है। पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई होगी।
पूर्व न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा को बड़ा झटका
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा को बड़ा झटका दिया। कोर्ट ने उनकी याचिका को सुनवाई योग्य नहीं मानते हुए खारिज कर दिया है। जस्टिस वर्मा ने अपने आवास से जला हुआ कैश मिलने के मामले में गठित जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य करार देने की मांग को लेकर याचिका दाखिल की थी। इसके साथ ही उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की ओर से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पद से हटाने के लिए भेजी गई सिफारिश को भी चुनौती दी थी।
नहीं करना चाहिए था वीडियो अपलोड
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्वीकार किया कि वीडियो अपलोड करना एक सही फैसला नहीं था, लेकिन इस पर कोई कानूनी निर्णय नहीं लिया गया, क्योंकि इस कदम को समय रहते चुनौती नहीं दी गई थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि वीडियो अपलोड करने की आवश्यकता नहीं थी, लेकिन चूंकि उस समय इस मुद्दे को उठाया नहीं गया, इसलिए अब इस पर विचार नहीं किया जा सकता। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में नकदी बरामदगी की जांच और मई में जस्टिस वर्मा के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की मांग वाली नेदुमपारा की याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं हुआ
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपांकर दत्ता ने स्पष्ट किया कि अदालत ने यह माना है कि इस पूरी प्रक्रिया से याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा कि चीफ जस्टिस और जांच कमेटी ने फोटो और वीडियो अपलोड करने समेत प्रक्रिया के सभी पहलुओं का पूरी ईमानदारी से पालन किया था।




