जेएनयू में लाल सलाम, न्यूयार्क सिटी में नेहरू जिंदाबाद

  • एबीवीपी सभी सीटों पर दूसरे नम्बर पर
  • डीयू चुनाव से लिया सबक यूनाइटेड लेफ्ट के बैनर तले लड़ा चुनाव
  • न्यूयार्क सिटी के मेयर चुनाव में जीते मेयर ममदानी ने जवाहर लाल नेहरू की स्पीच से बनाया माहौल
  • जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में मुह की खानी पड़ी एबीवीपी को, लेफ्ट को क्लीन स्विप
  • अध्यक्ष पद पर अदिति मिश्रा, उपाध्यक्ष पद पर के गोपिका, महासचिव पद पर सुनील यादव और संयुक्त सचिव पद पर दानिश अली ने जीत हासिल की है

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। तो क्या समय का पहिया घूम रहा है। प्रतीत कुछ ऐसा ही हो रहा है। न्यूयार्क में मेयर पद पर जोहरान ममदानी की जीत और जेएनयू की चारों सीटों पर लेफ्ट को मिली क्लीन स्वीप को इस संदर्भ से देखा जा सकता है। न्यूयार्क सिटी का मेयर अमेरिका में ताकत के हिसाब से नम्बर दो की पोजिशन रखता है। वहां के मेयर चुनाव में सीधे प्रेसीडेंट ट्रंप को चुनौती देकर चुनाव जीतना आसान काम नहीं था। ठीक वैसे ही जेएनयू चुनाव में भी सरकार से लोहा लेकर वहां जीत हासिल करना भी आसान नही था। वह भी तब जब कुछ दिन पहले ही डीयू चुनाव में लेफ्ट समेत सभी विपक्षी छात्र संगठनों को एबीवीपी ने चुनावों में रौंद दिया था। दोनो जगह के परिणाम यह बताने के लिए काफी है कि समय लौट रहा है।

सीएम रेखा गुप्ता का प्रयास भी नहीं जीता सका एबीवीपी को

संगठित रूप से सरकारी तंत्र, विश्वविद्यालय प्रशासन का अंधा सपोर्ट और राजनीतिक फंडिंग के साथ सीएम रेखा गुप्ता का भरसक प्रयास भी जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी कि किस्मत को नहीं बदल सका और उसे हार का समाना करना पड़ा। एक बार फिर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की लाल दीवारों को झुकाने की कोशिश नाकाम साबित हुई और वहां लाल सलाम का जलवा कायम रहा। जेएनयू सिर्फ एक यूनिवर्सिटी नहीं है यह भारत के राजनीतिक मानस का रिफ्लेक्शन है। जहां दिल्ली विश्वविद्यालय का माहौल ब्रांडिंग और नेरेटिव पर आधारित होता जा रहा है वहीं जेएनयू अब भी विचार और विरोध की राजनीति को जिंदा रखे हुए है। छात्र राजनीति को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है मगर यहीं से राष्ट्रीय राजनीति की जड़ें निकलती हैं। कौन भूल सकता है कि जेएनयू ने कन्हैया कुमार, उमर खालिद, शेहला रशीद और दिलीप यादव जैसे नेताओं को जन्म दिया है। यह नेता किसी भी पालिटिक्ल पार्टी के सामने सत्ता की सच्चाई उघाडऩे का दम रखते हैं।

यूनाइटेड लेफ्ट ने एकता में शक्ति के सूत्र को बखूबी साधा

इस चुनाव में यूनाइटेड लेफ्ट ने एकता में शक्ति के सूत्र को बखूबी साधा। आइसा एसएफआई, एआईएसएफ, और डीएसएफ एक मंच पर आए और छात्रों ने इसे दिल से स्वीकारा किया। परिणाम यह हुआ कि एबीवीपी हर सीट पर दूसरे नंबर पर सिमट कर रह गयी।। जेएनयू छात्रसंघ चुनाव 2025 में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, संयुक्त सचिव और महासचिव चारों सीटों पर लेफ्ट यूनाइटेड ने कब्जा जमा लिया है। अध्यक्ष पद पर अदिति मिश्रा, उपाध्यक्ष पद पर के गोपिका, महासचिव पद पर सुनील यादव और संयुक्त सचिव पद पर दानिश अली ने जीत हासिल की है। ये चारों लेफ्ट यूनाइटेड के उम्मीदवार हैं। सभी चारों सीटों पर दूसरे नंबर पर एबीवीपी के उम्मीदवार रहे।

संयोग या इत्तेफाक

न्यूयॉर्क के वोटर ने ममदानी को इसलिए नहीं चुना कि वह मुस्लिम हैं या प्रवासी। उन्होंने इसलिए चुना क्योंकि उन्होंने उस शहर में किराया चुकाने वाले मजदूर, टैक्सी चलाने वाले आप्रवासी और ग्रॉसरी में खड़े उस शख्स की आवाज को मंच पर लाया जिसे कोई सुनना नहीं चाहता था। जेएनयू में भी यही आवाज लाल झंडे के नीचे गूंजी वही सवाल, वही असंतोष, वही भूख, वही बेरोजगारी की पीड़ा। यह संयोग नहीं कि दोनों जगहों पर जीतने वाला वर्ग विचारधारा से जुड़ा है न कि प्रचार मशीन से। और हारने वाला भी वही है जो सत्ता को स्थायी समझ बैठा था। ममदानी की राजनीति इंकलाब जिंदाबाद नहीं कहती लेकिन उसके भीतर वही इंकलाब जिंदा है। जेएनयू में जब कोई छात्र हाथ उठाकर कहता है कि हम सवाल पूछेंगे तो यह उसी लोकतांत्रिक परंपरा की गूंज है जिसने न्यूयॉर्क में ममदानी को गढ़ा।

काउंटिग के दौरान झड़पे हुयी

जेएनयू कैंपस में वोट काउंटिंग के दौरान तनाव वाली स्थिति देखने को मिली। लेफ्ट यूनिटी के कुछ सदस्यों के बीच हल्की सी झड़प हो गई जो काउंटिंग वाले एरिया के पास हुई। डीयू के नतीजों के बाद एबीवीपी ने समझा था कि जेएनयू में जीत सिर्फ प्रचार से मिल जाएगी। लेकिन जेएनयू कोई चुनावी मैदान नहीं यह विचारों का कुरुक्षेत्र निकला और एबीवीपी के प्रचार तंत्र की हवा निकाल दी। जब डीयू चुनाव में एबीवीपी जीती थी तो सत्ता के गलियारों में जश्न मनाया गया था। कहा गया था कि अब जेएनयू अगला स्टेशन है।

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