लिंगायत समुदाय ने खोला BJP के खिलाफ मोर्चा, भाजपा की हार हुई तय !

बेंगलुरु। हर एक बीतते दिन के साथ राजनीतिक दलों के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही हैं। क्योंकि लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तारीख करीब आ रही है। 19 अप्रैल को पहले चरण का मतदान होने के बाद देश में लोकसभा चुनावों का आगाज पूरी तरह से हो जाएगा। जिसके बाद सात चरणों में देश के अंदर आम चुनाव होने हैं। और 4 जून को लोकसभा चुनावों का परिणाम भी आ जाएगा। लेकिन इससे पहले ही देश का सियासी माहौल अभी से ही गर्माया हुआ है। और सियासत अपने चरम पर बनी हुई है। होनी भी चाहिए। यही वजह है कि सभी राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से जनता को लुभाना चाह रहे हैं और उनके वोट लेना चाह रहे हैं। देश की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी इस बार 400 पार का लक्ष्य लेकर चल रही है।

भाजपा की इच्छा है कि वो 370 से अधिक सीटें जीतकर एनडीए के 400 लोकसभा सांसदों को लेकर लगातार तीसरी बार देश की सत्ता पर राज करे। लेकिन भाजपा के लिए ये लक्ष्य पाना इतना आसान नहीं है। क्योंकि इस लक्ष्य के करीब पहुंचने तक के लिए पार्टी को एक लंबा रास्ता तय करना पड़ेगा। जो काफी मुश्किल प्रतीत होता है। क्योंकि इस बार विपक्ष भी एकजुट होकर भाजपा का मुकाबला कर रहा है। दूसरी वजह ये है कि अपने इस लक्ष्य के करीब पहुंचने के लिए भी भाजपा को साउथ में अच्छा प्रदर्शन करना होगा। जो कि बीजेपी के लिए काफी मुश्किल है। क्योंकि साउथ में अभी भी भाजपा को अपने दम पर खड़ा होना बाकी है। दक्षिण भारत में पार्टी सिर्फ कर्नाटक में ही खड़ी है। लेकिन इस बार कर्नाटक में भी 2019 वाला प्रदर्शन दोहरापाना काफी मुश्किल है। उसकी प्रमुख वजह ये है कि कर्नाटक में इस बार एक तो कांग्रेस की सत्ता है। और कांग्रेस काफी ज्यादा मेहनत भी कर रही है।

तो वहीं दूसरी ओर भाजपा के अंदर ही अंतरकलह मची हुई है। और पार्टी में बगावत भी जोरों से जारी है। एक ओर पार्टी के अंदर मची बगावत अभी कम हो नहीं पाई है। कि अब कर्नाटक में भाजपा का कोर वोट बैंक माना जाने वाला लिंगायत समुदाय भी इस बार पार्टी के खिलाफ नजर आ रहा है। क्योंकि लिंगायत समुदाय के संत लगातार भाजपा के प्रत्याशी और मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री प्रह्लाद जोशी का विरोध कर रहे हैं। लिंगायत समुदाय की ओर से बीजेपी से प्रत्याशी बदलने के लिए भी अल्टीमेटम दिया गया था। लेकिन भाजपा ने ऐसा नहीं किया। नतीजन अब लिंगायत समुदाय के संत दिंग्लेश्वर महास्वामी ने भाजपा प्रत्याशी व केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। जाहिर है कि दिंग्लेश्वर महास्वामी के इस फैसले से कर्नाटक में भाजपा की मुश्किलें और भी बढ़ने वाली हैं।

लिंगायत समुदाय के बड़े संत जगद्गुरु फकीरा दिंग्लेश्वर महास्वामी के निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा करने के बाद से पूरे प्रदेश की सियासत गरमा गई है। तो वहीं भाजपा के खेमे में भी खलबली मच गई है। लिंगायत समुदाय कर्नाटक की राजनीति में काफी अहम भूमिका निभाता है। तो वहीं इस समुदाय का झुकाव अक्सर भाजपा की तरफ ही रहता है। हालांकि, इस बार के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी लिंगायत समुदाय का उतना समर्थन भाजपा को नहीं मिला था। जो विधानसभा में बीजेपी की हार का एक प्रमुख कारण भी रहा। दरअसल, कर्नाटक की राजनीति में दशकों से लिंगायत समुदाय का काफी दबदबा रहा है।

चुनावों के दौरान इस समाज की भूमिका काफी अहम मानी जाती है। लंबे समय से लिंगायत समुदाय भाजपा के लिए वोट बैंक भी रहा है। ऐसे में अब लोकसभा चुनावों से ठीक पहले लिंगायत समुदाय का ही भाजपा के खिलाफ चुनाव में उतर जाना पार्टी के लिए कई मुश्किलें खड़ी कर सकता है। आगामी चुनाव में दिंग्लेश्वर महास्वामी के चुनावी मैदान में उतरने से राजनीतिक स्थिति में बड़ा उलटफेर होने जा रहा है। इससे बीजेपी की मुश्किलें बढ़ गई हैं। साथ ही राज्य में लिंगायत बहुल सीटें भी प्रभावित हो सकती हैं। जो पार्टी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। कर्नाटक की धारवाड़ लोकसभा सीट से दिंग्लेश्वर महास्वामी चुनावी मैदान में हैं।

अपने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान करने का कारण बताते हुए दिंग्लेश्वर महास्वामी ने बताया कि उनका उद्देश्य क्षेत्र में पारंपरिक राजनीतिक दलों के प्रभुत्व को खत्म करके मतदाताओं को विक्लप देना है। वहीं, उनके चुनाव लड़ने का निर्णय राज्य की सियासत में गहरा प्रभाव डाल सकता है। वह बीजेपी और कांग्रेस की राजनीति से कोसो दूर कर्नाटक में एक वैकल्पिक मंच तैयार करने के रूप में उभर रहे हैं। दिंग्लेश्वर महास्वामी ने निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा करते हुए कहा कि मैं धारवाड़ लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने जा रहा हूं। इस सीट पर दोनों राष्ट्रीय दलों ने अपने-अपने प्रत्याशी को उतारा है। इसके अलावा उन्होंने बीजेपी की टिकट वितरण नीतियों पर नाराजगी और पार्टी की उपस्थिति में लिंगायत समुदाय के समर्थन पर भी अपनी बात रखी है। दिंग्लेश्वर महास्वामी ने कहा कि राज्य में लिंगायत समुदाय ने ही भाजपा को स्थापित और विकसित किया है।

भाजपा में टिकट वितरण समाजिक न्याय के विरुद्ध होता है। इतना ही नहीं, बल्कि लिंगायत समुदाय के संत ने यह भी कहा कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक से लिंगायत समाज के नौ वीरशैव नेता संसद गए थे। मगर इसके बावजूद उन्हें कोई मंत्री पद नहीं सौंपा गया था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने भी लिंगायत समुदाय को कभी अहमियत नहीं दी है। दिंग्लेश्वर महास्वामी ने केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी पर भी जमकर निशाना साधा। उन्होंने केंद्रीय मंत्री के जरिए राजनीति के दिग्गजों पर लिंगायत समुदाय की आवश्यकता की पूर्ती से किनारा करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी हमारे समुदाय को रौंद रहे हैं। उनका धारवाड़ लोकसभा क्षेत्र में योगदान अभी भी संदिग्ध है।

जाहिर है कि लिंगायत समुदाय इससे पहले ही प्रह्लाद जोशी को लेकर अपनी नाराजगी जता चुका था। लिंगायत समुदाय लगातार ये कह रहा था कि प्रह्लाद जोशी को प्रत्याशी के रूप में पार्टी हटाए। प्रमुख लिंगायत संत ने इससे पहले कहा था कि धर्म को लेकर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए और राजनीति में धर्म होना चाहिए। लोगों की इच्छा के मुताबिक मैं चुनाव के बाद भी जारी रखूंगा। जाहिर है कि इससे पहले दिंग्लेश्वर  स्वामी का कहना है कि वीरशैव लिंगायत धर्म गिरावट पर है। सामाजिक उप-संप्रदाय प्रभावित होते हैं, तो समाज के नेताओं को चोट लगने पर मठ प्रमुखों को बोलना चाहिए। उत्तर भारत में साधु संन्यासी राजनीति करते हैं। दक्षिण भारत में नहीं करते। हमें भी चुनाव में खड़ा होना चाहिए या नहीं, इस बारे में चर्चा हुई और अनिवार्य रूप से मठ प्रमुखों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया।

बहुसंख्यक लिंगायत नेता दमन का शिकार हुए हैं। महिला प्रतिनिधियों को अपमानित किया गया है। प्रल्हाद जोशी से वीरशैव लिंगायत नेताओं के साथ अन्याय हुआ है, लिंगायतों के जरिए निर्वाचित हुए हैं। इसके चलते लिंगायत नेता की आवश्यकता को लेकर यह निर्णय लिया गया है। चुनाव आने पर मात्र पर उन्हें हमारे समाज पर प्यार क्यों आता है। उन्हें सत्ता का घमंड चढ़ा हुआ है। इसके बाद धारवाड़ क्षेत्र के कुछ संतों, विशेषकर लिंगायत समुदाय के लोगों ने 27 मार्च को डिंगलेश्वर स्वामी के नेतृत्व में हुबली में मुलाकात की थी और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से पार्टी के धारवाड़ लोकसभा उम्मीदवार प्रह्लाद जोशी को बदलने के लिए कहा था। उन्होंने पार्टी को फैसला लेने के लिए 31 मार्च तक का समय दिया था।

वहीं इस बीच स्वामी के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि दिंग्लेश्वर स्वामी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं है। वह जो भी कहते हैं वह मेरे लिए आशीर्वाद है। संत ने वहीं कांग्रेस सरकार पर सत्ता में आने के बाद लिंगायतों की उपेक्षा करने और समुदाय के योग्य नेताओं को उपयुक्त पद नहीं देने का भी आरोप लगाया। उन्होंने दोनों भाजपा और कांग्रेस पर धारवाड़ निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को धोखा देने का आरोप लगाया।

जाहिर है कि लिंगायत संत के द्वारा भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान करने के बाद अब प्रदेश में बीजेपी के लिए मुश्किलें और भी बढ़ गई हैं। एक तो वैसे ही पार्टी प्रदेश में अंदरूनी कलह और बगावत का सामना कर रही है। वहीं अब लिंगायत समुदाय जो कभी भाजपा का कोर वोट बैंक माना जाता था। उसके द्वारा बीजेपी के खिलाफ उतरना मोदी व बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी करता है। यही वजह है कि आए दिन अबकी बार 400 पार का लक्ष्य लिए बैठी भाजपा के लिए कर्नाटक में मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। उल्टा इस लक्ष्य को पाने की भाजपा की उम्मीदें दिन पर दिन कम होती जा रही हैं। वहीं दूसरी ओर लिंगायत समुदाय और मठों की नाराजगी ने बीजेपी की नीदें और भी उड़ा रखी हैं।

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