झूठे दलित उत्पीड़न केस पर वकील को 10 साल की सजा, लखनऊ कोर्ट की सख्त टिप्पणी
अदालत ने अपने फैसले में तीखी टिप्पणी करते हुए कहा चतुर शिकारी जल्दी जाल में फंसता है। यह टिप्पणी न्यायाधीश ने उस वकील के चरित्र और उसके गलत इरादों को ध्यान में रखते हुए दी, जिसने कानून के दुरूपयोग का प्रयास किया।

4पीएम न्यूज नेटवर्कः लखनऊ की एक अदालत ने एक वकील को झूठा दलित उत्पीड़न मामला दर्ज कराने के आरोप में 10 साल की कठोर कैद और ₹2.5 लाख का जुर्माना सुनाया है। कोर्ट ने यह सजा जमीन विवाद में पड़ोसी को फंसाने की साजिश रचने पर दी। अदालत ने अपने फैसले में तीखी टिप्पणी करते हुए कहा चतुर शिकारी जल्दी जाल में फंसता है। यह टिप्पणी न्यायाधीश ने उस वकील के चरित्र और उसके गलत इरादों को ध्यान में रखते हुए दी, जिसने कानून के दुरूपयोग का प्रयास किया।
कोर्ट परिसर में एंट्री पर भी पाबंदी
अदालत ने वकील को सिर्फ सजा और जुर्माने तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि उसके खिलाफ अदालत परिसर में प्रवेश पर भी रोक लगा दी है। यह आदेश यह दर्शाता है कि न्यायपालिका अब कानून के दुरुपयोग को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं करेगी, भले ही आरोपी स्वयं एक अधिवक्ता ही क्यों न हो।
पड़ोसी को फंसाने की थी साजिश
मामला एक निजी जमीन विवाद से जुड़ा हुआ था, जिसमें आरोपी वकील ने अपने पड़ोसी को झूठे SC/ST एक्ट के तहत फंसाने की कोशिश की थी। जांच में जब यह सामने आया कि मामला पूरी तरह से झूठा और पूर्वनियोजित था, तब कोर्ट ने इसे गंभीर अपराध मानते हुए सख्त सजा सुनाई।
कानून का गलत इस्तेमाल अब नहीं बर्दाश्त
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला एक नजीर बनेगा और कानून का दुरुपयोग करने वालों के लिए चेतावनी साबित होगा, खासकर उन पेशेवरों के लिए जो खुद न्याय व्यवस्था का हिस्सा होते हुए भी उसका अपमान करते हैं।
आपको बता दें,कि एससी-एसटी कोर्ट में विशेष लोक अभियोजक अरविंद मिश्रा के मुताबिक वकील लाखन सिंह का पड़ोस में रहने वाले सुनील दुबे के साथ ज़मीन विवाद चल रहा था. चूंकि सभी सबूत सुनील दुबे के पक्ष में थे, इसलिए वकील ने उन्हें शिकस्त देने के लिए एससी-एसटी एक्ट में फंसाने का फैसला किया. इसी क्रम में वकील लाखन ने 15 फरवरी 2014 को कोर्ट सुनील दुबे के खिलाफ इस्थगासा दाखिल करते हुए विकास नगर थाने में हत्या का प्रयास, धमकी देना, तोड़फोड़ और गालीगलौज के साथ एससी-एसटी एक्ट के विभिन्न धाराओं में केस दर्ज करा दिया.