मौलाना मदनी का बड़ा बयान, कहा- मदरसे सिर्फ़ शिक्षा के केंद्र नहीं हैं..,
मौलाना मदनी ने कहा कि ये मदरसे सिर्फ़ शिक्षा के केंद्र नहीं हैं, इनका मक़सद सिर्फ़ पढ़ाना-लिखाना नहीं बल्कि देश और कौम की सेवा के लिए नई नस्लों की सोच और तालीम को तैयार करना भी रहा है.

4पीएम न्यूज नेटवर्कः जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी का कहना है कि मदरसे मुसलमानों की पहचान हैं और हम अपनी इस पहचान को मिटने नहीं देंगे. अखिल भारतीय मदरसा सुरक्षा सम्मेलन में मदनी ने कहा कि मदरसों से ही देश को गुलामी से आजाद कराने की पहली आवाज उठी थी लेकिन साजिश के तहत अब इसे मिटाने की कोशिश की जा रही है.
मदरसे हमारी दुनिया नहीं, धर्म हैं, ये हमारी पहचान हैं और हम अपनी इस पहचान को मिटने नहीं देंगे’… कहना है जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी. रविवार रात आजमगढ़ के कस्बा सरायमीर में आयोजित ‘अखिल भारतीय मदरसा सुरक्षा सम्मेलन’ में बोलते हुए मदनी ने कहा कि मदरसों से ही देश को गुलामी से आजाद कराने की पहली आवाज उठी थी. उन्होंने कहा कि यह कोई सामान्य सम्मेलन नहीं है, बल्कि वर्तमान हालात में मदरसों की हिफाजत को सुनिश्चित करने के लिए गंभीर मंथन और आगे की रणनीति तय करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है.
मौलाना मदनी ने कहा कि ये मदरसे सिर्फ़ शिक्षा के केंद्र नहीं हैं, इनका मक़सद सिर्फ़ पढ़ाना-लिखाना नहीं बल्कि देश और कौम की सेवा के लिए नई नस्लों की सोच और तालीम को तैयार करना भी रहा है. उन्होंने कहा कि आज जिन मदरसों को गैरकानूनी कहकर ज़बरदस्ती बंद किया जा रहा है, ये वही मदरसे हैं जहां से सबसे पहले अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ आवाज उठी थी.
मदरसे उठी आजादी की आवाज’
मदनी ने इतिहास का ज़िक्र करते हुए कहा कि जब 1803 में पूरा भारत अंग्रेजों के कब्जे में चला गया था, तब दिल्ली से मशहूर धार्मिक और रूहानी हस्ती हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी रह. ने मदरसा रहीमिया से एक टूटी चटाई पर बैठकर ऐलान किया कि देश गुलाम हो चुका है, इसलिए गुलामी से आज़ादी के लिए संघर्ष करना एक धार्मिक कर्तव्य है. उन्होंने कहा कि इस ऐलान के बाद उनके मदरसे को नेस्तनाबूद कर दिया गया और उन पर जुल्म किए गए.
मौलाना मदनी ने कहा कि 1857 की क्रांति, जिसे अंग्रेजों ने गदर कहा, उसी का नतीजा था कि सिर्फ़ दिल्ली में 32,000 उलेमाओं को शहीद कर दिया गया. उन्होंने कहा कि हमारे बड़ों की डेढ़ सौ साल की कुर्बानियों के बाद यह देश आजाद हुआ. मदनी ने कहा कि दारुल उलूम देवबंद की स्थापना भी इसी मकसद से की गई थी कि वहां से देश की आज़ादी के लिए नए सपूतों को तैयार किए जाएं. उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि आज इतिहास से अनजान लोग उन्हीं मदरसों को आतंकवाद का अड्डा बता रहे हैं, ये आरोप भी लगाया जाता है कि वहां कट्टरपंथ की तालीम दी जाती है.
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड, असम और हरियाणा तक मदरसों और मस्जिदों के खिलाफ कार्रवाई मजहब की बुनियाद पर की जा रही है. उन्होंने सवाल किया कि एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश में यह भेदभाव और अन्याय क्यों? जबकि संविधान ने सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर दिए हैं. मौलाना मदनी ने स्पष्ट किया कि यह सब एक विशेष विचारधारा के तहत किया जा रहा है ताकि बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों के बीच नफरत की खाई पैदा की जा सके, और बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों के खिलाफ खड़ा किया जा सके यह सत्ता हासिल करने की सोची-समझी साजिश है.
उन्होंने आगे कहा कि यह एक सेक्युलर देश है, और यहां धर्म की बुनियाद पर किसी एक समुदाय के साथ अन्याय नहीं किया जा सकता. मगर आज की सच्चाई यह है कि खुलेआम एक विशेष समुदाय को उसके धार्मिक आधार पर टारगेट किया जा रहा है और उसे यह एहसास दिलाने की कोशिश की जा रही है कि उसके नागरिक अधिकार खत्म कर दिए गए हैं. मदनी ने कहा कि हालात चाहे जैसे भी हों, हमें मायूस होने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि हौसले, ईमानदारी और अज़्म के साथ इन हालात का सामना करना होगा.
मदनी ने कहा कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने आजादी से पहले और उसके बाद देश में अमन, भाईचारे और एकता के लिए कोशिश की है साथ ही हर अन्याय और ज़ुल्म के खिलाफ संघर्ष किया है, आगे भी पूरी ताक़त से करती रहेगी. उन्होंने कहा कि हमारी लड़ाई सरकार से है, जनता से नहीं. उन्होंने कहा कि मदारिस-ए-इस्लामिया हमारी जीवन रेखा है, और अब एक साजिश के तहत हमारी इस जीवन रेखा को काटने की तैयारी हो रही है.
‘मदरसों की हिफाज़त धर्म की हिफाज़त’
मौलाना मदनी ने कहा कि गैरकानूनी बताकर मदरसों के खिलाफ की जा रही हालिया कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी अवमानना है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस साजिश के खिलाफ एक बार फिर अपनी कानूनी जद्दोजहद शुरू कर दी है, क्योंकि मदरसों की हिफाज़त दरअसल धर्म की हिफाज़त है. उन्होंने कहा कि हम लोकतंत्र, संविधान की सर्वोच्चता और मदरसों की रक्षा के लिए कानूनी और लोकतांत्रिक संघर्ष जारी रखेंगे. उन्होंने मदरसों के जिम्मेदारों को हौसला देते हुए कहा कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद आपके साथ है और हर तरह की मदद व कानूनी सहायता आपको प्रदान करेगी.
साथ ही उन्होंने बताया कि जमीयत उलमा उत्तर प्रदेश ने एक आर्किटेक्ट पैनल गठित कर दिया है जो मस्जिदों और मदरसों की निर्माण संबंधी जरूरतों, नक्शा पास कराने, और जमीन के दस्तावेज़ी समाधान में मदद करेगा.उन्होंने बताया कि जमीयत का लीगल पैनल पहले से हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक सैकड़ों केसों में सक्रिय है. मदनी ने सलाह दी कि मदरसों और मस्जिदों के निर्माण से पहले यह सुनिश्चित कर लिया जाए कि जिस ज़मीन पर निर्माण हो रहा है वह वैध और पूरी तरह सुरक्षित हो और बेहतर यह है कि वह जमीन वक्फ या बतौर हिबा (दान) मदरसे/मस्जिद के नाम हो. उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात से घबराने की ज़रूरत नहीं, बल्कि कानूनी और लोकतांत्रिक संघर्ष के ज़रिए उनका सामना करना होगा. अल्लाह हमारा मददगार हो.



