यूपी में टूट गया ‘माया’ जाल, जीरो पर आई BSP का बंटाधार 

लोकसभा चुनाव 2024 के परिणामों के बीच बहुजन समाज पार्टी ने अभी तक सबसे खराब प्रदर्शन किया है। ​बीएसपी के लिए एक भी सीट जीतना तो दूर...

4PM न्यूज़ नेटवर्क: लोकसभा चुनाव 2024 के परिणामों के बीच बहुजन समाज पार्टी ने अभी तक सबसे खराब प्रदर्शन किया है। ​बीएसपी के लिए एक भी सीट जीतना तो दूर, वह किसी भी सीट पर दूसरे नंबर पर नहीं रही। ऐसे में पार्टी का प्रदर्शन 1989 से बेहद खराब रहा। दरअसल, I.N.D.I.A. गठबंधन और NDA से दूरी बनाकर अकेले चुनाव मैदान में उतरना बसपा को बहुत भारी पड़ा। गलत निर्णय के कारण बसपा अपने अभी तक के सबसे खराब दौर में पहुंच गई। एक भी सीट जीतना तो दूर, वह किसी भी सीट पर दूसरे नंबर पर नहीं रही।

आपको बता दें कि BSP पार्टी का प्रदर्शन 1989 से भी खराब रहा, जब वह पहला चुनाव लड़ी थी। उस समय बसपा ने 9.90% वोट हासिल किए थे और दो सीटें भी जीती थीं। और इस चुनाव में BSP को एक भी सीट नहीं मिली और वोट प्रतिशत गिरकर 9.14% रह गया। इस तरह बसपा न तो कोई सीट जीत सकी और न साख बचा सकी।

यूपी में जीरो पर आई BSP

बताया जा रहा है कि बहुजन समाज पार्टी की इस ख़राब हालत की कई वजह सामने आईं हैं। इनमें एक प्रमुख वजह ये है कि वह हालात और परिस्थितियों को ठीक से समझ नहीं पाईं। इस चुनाव में राजनीति NDA और इंडिया गठबंधन दो धड़ों में बंट गई लेकिन बसपा इसको भांप नहीं सकी और अकेले लड़ने का निर्णय ले लिया। जबकि यह स्थिति पहले से साफ थी। क्योंकि इससे पहले 2014 का उदाहरण बसपा के सामने था। उस समय अकेले चुनाव लड़ने के बाद एक भी सीट नहीं ला सकी थी। जब 2019 में सपा से गठबंधन करके चुनाव लड़ा था तो 10 सीटें मिली थीं।

बसपा प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को इस लोकसभा चुनाव में जोर-शोर से उतारा। वह युवाओं के मुद्दे उठा रहे थे। उनसे युवा जुड़ भी रहे थे, लेकिन बीच चुनाव में ही उनको पद से हटा दिया। इससे युवाओं में यह संदेश गया कि पार्टी भाजपा के दबाव में काम कर रही है। इससे उसका अपना कोर वोटर भी छिटक गया। आकाश पर 27 अप्रैल को हरदोई में FIR हुई। उसके बाद उनकी रैलियां बंद कर दी गईं। वहीं इसके बाद में उनको 8 मई को मायावती ने अपने उत्तराधिकारी और को-ऑर्डिनेटर पद से हटा दिया गया। उसका असर लोकसभा चुनावी नतीजों में साफ दिख रहा है।

मायावती ने यूपी में 28 सभाएं कीं। आकाश ने 17 सभाएं कीं। ये सभाएं भी आचार संहिता लागू होने के बाद हुईं। लेकिन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कोई भी सक्रियता नजर नहीं आई। इसका सबसे बड़ा कारण चुनावी परिणाम में साफ नजर आ रहा है।

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