नये लोगों को पार्टी से जोड़ें: मायावती
- बोलीं-युवाओं व पिछड़ों को दें प्राथमिकता
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। बसपा प्रमुख मायावती ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपने कार्यकर्ताओं की चुड़ी कसनी शुरू कर दी है। इसी के तहत कुछ सीटों पर सोशल इंजीनियरिंग को ध्यान में रखते हुए सभी कोऑर्डिनेटरो से कहा कि नए लोगों को पार्टी में शामिल करें और ऐसी सीटों पर पिछड़े वर्ग के लोगों को प्राथमिकता दें। हालांकि लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों के मद्देनजर बसपा सुप्रीमो मायावती के युवाओं को जोडऩे के निर्देश के बावजूद नए लोग पार्टी से नहीं जुड़ पा रहे हैं।
दरअसल, नए लोगों के पार्टी में शामिल नहीं होने से टीम उस तरह से उत्साहित नहीं है जैसा पिछले चुनावों में रही है। हालांकि टीम को मजबूती देने के लिए मायावती पहले तीन माह लखनऊ फिर दिल्ली में बैठकें कर रही हैं। उधर मुस्लिमों को जोडऩे के लिए पूर्व विधायक इमरान मसूद को शामिल कर इसी क्रम को आगे बढ़ाने की तैयारी है। विधानसभा चुनाव में दलित मुस्लिम समीकरण पर दांव लगाने के बावजूद बसपा चारों खाने चित हो गई थी। बावजूद इसके पार्टी के रणनीतिकारों का अब भी यही मानना है कि दलित मुस्लिम समीकरण बसपा का सबसे अच्छा हथियार है। लोकसभा चुनाव में भी यही फार्मूला नैया पार लगाएगा। वहीं पूर्व सीएम ने ट्वीट कर कहा कि यूपी सहित देश के अधिकतर राज्यों में भारी बारिश व बाढ़ के कारण आम जनजीवन काफी प्रभावित है। काफी जान-माल व पशुधन की हानि हुई है। शहरों का बुरा हाल है किन्तु ग्रामीण इलाकों में लोगों के मकान गिरने व फसल की व्यापक बर्बादी आदि के कारण हालात काफी गंभीर व चिन्ताजनक है। ऐसे विकट हालात में सभी संबंधित राज्य सरकारें पीडि़तों हर प्रकार से मदद के लिए पूरी ईमानदारी के साथ अपनी जिम्मेवारी को निभाएं। केन्द्र की सरकार को भी आकलनों व बैठकों आदि से आगे बढक़र राज्यों की मदद के लिए तत्काल आगे आना जरूरी है। यह बसपा की मांग है।
गठबंधन करने पर विचार
भले ही मायावती यह कहती हों कि बसपा अपने दम पर चुनाव लड़ेगी, लेकिन रणनीतिकार गठबंधन के विकल्पों पर भी विचार कर रहे हैं। देखना यह है कि बसपा की कांग्रेस के साथ बात बनती है या फिर छोटे दलों को जोडक़र आगे बढ़ती है। पार्टी की निगाह ऐसे दलों पर भी है जो दूसरे दलों में बागी तेवर दिखा रहे हैं। बसपा ने बूथ कमेटियों को एक्टिव किया है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और रालोद के साथ बसपा ने 19.4 प्रतिशत मतों के साथ दस सीटें जीतीं थीं। 2014 में तो बसपा का खाता भी नहीं खुला था। ऐसे में यदि माकूल समीकरण नहीं बनें तो पार्टी को इस बार भी मुश्किल हो सकती है।