आरक्षण का बंटवारा कितना उचित? सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मायावती ने उठाए सवाल

लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी श्रेणियों में ही उप-वर्गीकरण (कोटे के अंदर कोटा) की वैधता पर फैसला सुनाया. कोर्ट ने राज्यों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में उप-वर्गीकरण यानी कोटे के अंदर कोटे की इजाजत दी. अदालत के इस फैसले पर अब बसपा प्रमुख मायावती ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि सामाजिक उत्पीडऩ की तुलना में राजनीतिक उत्पीडऩ कुछ भी नहीं है.
कोर्ट ने एससी-एसटी जातियों में भी सब-कैटेगरी को मंजूरी दी और कहा कि पिछड़ी जातियों में भी सब कैटेगरी कर कोटे के अंदर कोटा दिया जाए. साथ ही कई ऐसी जातियां हैं जो आज भी काफी पिछड़ी हुई है और कोटा के बावजूद वो आगे नहीं बढ़ पा रही है, जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने ये ऐतिहासिक फैसला सुनाया.
सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी श्रेणियों में ही सब-कैटेगरी (कोटे के अंदर कोटा) की वैधता पर फैसला सुना दिया. कोर्ट ने राज्यों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में सब-कैटेगरी यानी कोटे के अंदर कोटे की इजाजत दे दी है. जिसके बाद कोर्ट के इस फैसले से पूरे देश में हलचल मच गई है और सभी की प्रतिक्रिया सामने आने लगी है. इसी कड़ी में बसपा सुप्रीमो मायावती ने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर पोस्ट किया है.
जिसमें उन्होंने कहा है कि सामाजिक उत्पीडऩ की तुलना में राजनीतिक उत्पीडऩ कुछ भी नहीं. क्या देश के खासकर करोड़ों दलितों व आदिवासियों का जीवन द्वेष व भेदभाव-मुक्त आत्म-सम्मान व स्वाभिमान का हो पाया है. अगर नहीं तो फिर जाति के आधार पर तोड़े व पछाड़े गए इन वर्गों के बीच आरक्षण का बंटवारा कितना उचित?
सामाजिक उत्पीडऩ की तुलना में राजनीतिक़ उत्पीडऩ कुछ भी नहीं। क्या देश के ख़ासकर करोड़ों दलितों व आदिवासियों का जीवन द्वेष व भेदभाव-मुक्त आत्म-सम्मान व स्वाभिमान का हो पाया है। अगर नहीं तो फिर जाति के आधार पर तोड़े व पछाड़े गए इन वर्गों के बीच आरक्षण का बंटवारा कितना उचित?
उन्होंने एक पोस्ट में लिखा है कि देश के एससी, एसटी व ओबीसी बहुजनों के प्रति कांग्रेस व भाजपा दोनों ही पार्टियों/सरकारों का रवैया उदारवादी रहा है सुधारवादी नहीं, वे इनके सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति के पक्षधर नहीं वरना इन लोगों के आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालकर इसकी सुरक्षा जरूर की गयी होती.
सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली 7 जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने इस मामले की तीन दिनों तक सुनवाई करने के बाद इस साल 8 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था. सीजेआई चंद्रचूड ने कहा कि सात जजों की इस पीठ में 6 जजों की मत एक ही थी, वहीं एक जस्टिस बेला.एम त्रिवेदी इस फैसले के खिलाफ थीं.

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