नीतीश के सामने सरेंडर हुए मोदी-शाह, किसी की एक न चली
दोस्तों बिहार का मतलब नीतीश और नीतीश का मतलब बिहार कहा जाए तो शायद ये गलत नहीं होगा क्योंकि जिस तरह से वो दसवीं बार सीएम बने हैं और जिस तरह से न सिर्फ विपक्ष को जोर की पटखनी दी है बल्कि बीजेपी की गुजरात लॉबी को एक बार फिर से सरेंडर करने पर मजबूर किया है।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: दोस्तों बिहार का मतलब नीतीश और नीतीश का मतलब बिहार कहा जाए तो शायद ये गलत नहीं होगा क्योंकि जिस तरह से वो दसवीं बार सीएम बने हैं और जिस तरह से न सिर्फ विपक्ष को जोर की पटखनी दी है बल्कि बीजेपी की गुजरात लॉबी को एक बार फिर से सरेंडर करने पर मजबूर किया है।
तो ऐसे में साफ दिख रहा है कि वो साल 2005 वाले रोल में हैं जब नीतीश को सुशासन बाबू नाम मिला था और यही वजह है कि ये न सिर्फ बीजेपी के गुजरात लॉबी के लिए न सिर्फ खतरे की घंटी है बल्कि जदयू के अदंर पनपी गुजरात लॉबी के लिए भी जोर का झटका है। सवाल यह है कि आखिर नीतीश ने कैसे सिर्फ और सिर्फ तीन महीने में पूरे खेल को पलट दिया और बीमार कहे जाने वाले नीतीश कुमार ने कैसे न सिर्फ विपक्ष को हाराया बल्कि बीजेपी के चाणक्य को घुटनों पर ले आए ।
दोस्तों, नीतीश कुमार को अब से छह महीने पहले कैसे और किस रोल में थे आप सभी जानते हैं। कोई भी मंच हो ,कोई भी प्रेस कॉन्फ्रेंस हो या कहीं मीडिया से बातचीत हो, हर जगह नीतीश कुमार ये सफाई पेश करते हुए दिखते थे कि मैं अब कही नहीं जाउंगा, अब मैं मरते दम तक एनडीए में रहूंगा। मतलब कि नीतीश कुमार की हालत ये थी कि वो गहरे प्रेशर में लगते थे, एक तो उनकी सीटें कम थी और बीजेपी ने उनको सीएम बना दिया था तो सारा प्रेशर नीतीश कुमार पर ही था। भले से ही वो सीएम थे लेकिन अंदरखाने का यह सच है कि बहुत काम नीतीश की मर्जी के खिलाफ भी हो रहे थे।
हम ये नहीं कर रहे हैं कि सब लेकिन कुछ न कुछ होते थे और जो दूसरी सबसे बड़ी बात थी वो ये भी कि नीतीश कुमार की सेहत से लेकर मानसिक स्थिति को सही न होने का जबरदस्त आरोप लगता था और यह सच भी है कि 74 साल की उम्र आसान नहीं होती है। कई बार तो बीजेपी के डिप्टी सीएम उनको कई कार्यक्रम में रोकते टोकते नजर आते थे और कई बार नीतीश कुमार के कुछ ऐसे वीडियोज भी सामने आए- जैसे कि राष्ट्रगान के समय वो इशारे करते देखे गए, जिससे न सिर्फ जनता के मन में भ्रम पैदा हुआ बल्कि ये लगने लगा था कि अब शायद और शायद नीतीश कुमार के संन्यास का वक्त आ चुका है लेकिन तीन महीने पहले जैसे ही चुनाव का ऐलान हुआ अचानक सीन बदल गया और नीतीश कुमार ने अपना बिहारी वाला खेल शुरु कर दिया है।
आपको बता दें कि जैसा कि सभी जानते हैं कि जदयू पर गुजरात लॉबी हावी होती जा रही थी। हर स्तर पर ये प्रयास किया जा रहा था कि नीतीश कुमार को बीमार घोषित करके उनको घर बैठा दिया जाए और इसके लिए चुनाव प्रचार में भी कुछ लोग लगा दिए गए थे, जिनमें संजय झा और सम्राट चौधरी का नाम प्रमुख था लेकिन चुनाव के ऐलान के बाद जब नीतीश एक्टिव हुए तो उन्होंने सारी झंझट को एक ही झटके में खत्म कर दिया। दरअसल नीतीश कुमार ने एक सभा में एक महिला के माला पहनाए जाने पर संजय झा को रोकने पर न सिर्फ कड़ा ऐतराज जताया बल्कि लाइव कैमरों के सामने उनकी जमकर खिल्ली भी उड़ाई और सख्त हिदायत दी है।
कि अगर इस तरह की बातें और घटनाएं दोबारा हुई तो अच्छा नहीं होगा और इसके बाद नीतीश कुमार के साथ से संजय झा फुर्र हो गए और फिर पूरे चुनाव नीतीश कुमार ने नीतीश कुमार ने एक दो नहीं 84 बड़ी सभाएं करके न सिर्फ जदयू को खड़ा कर दिया बल्कि एनडीए को भी बड़ी जीत दिला दी और इन सबके बीच नीतीश कुमार का जीविका दीदी वाला फार्मूला सबसे हिट रहा है।
भले से ही 10-10 हजार रुपए महिलाओं के खाते में डाले गए लेकिन सबसे पहले महिलाओं को लेकर एक नई रणनीति नीतीश कुमार की ओर से ही आई और आखिर में यही रणनीति एनडीए के लिए सबसे कारगर भी साबित हुई लेंकिन पूरे मामले में नीतीश कुमार ने सबको पीछे छोड़ दिया और जो रिजल्ट भी आया, उसमें भी नीतीश कुमार के महिला वाले फार्मूले ने बिहार में एनडीए को बड़ी जीत दिलाई। लेकिन क्योंकि रिजल्ट में नीतीश कुमार की पार्टी को बीजेपी से चार सीटें कम मिली तो माना जा रहा था कि बीजेपी का ही सीएम होगा, और इसके लिए तो बाकायदा पीएम साहब और उनके चाणक्य जी पिछले चुनाव से ही सपना संजोये थे, लेकिन नीतीश ने पिछली बार बीजेपी के सीएम के नाम पर पलटी मार ली और इस बार तो वो बीजेपी के सीधे सवाल करने की पोजीशन में थे क्योंकि इस बार जदयू की सीटें बीजेपी से सिर्फ और सिर्फ चार कम थी और वोट प्रतिशत भी सिर्फ एक ही कम था।
ऐसे में नीतीश कुमार ने जैसे ही चुनाव खत्म हुआ अपनी लॉबी यानि कि मनीष वर्मा और विजय चौधरी समेत अन्य को एक्टिव कर दिया और पूरे बिहार में ये प्रचार शुरु होगा कि नीतीश कुमार ही सीएम होंगे और न सिर्फ पटना की दीवारों को- आ रही नीतीश सरकार -के पोस्टर से पाट दिया गया बल्कि इसको मनवाने के लिए पूरी नीतीश लॉबी एक्टिव भी हो गई । आपको बता दें कि नीतीश लॉबी पहले से ही चाहती कि बीच चुनाव में ही नीतीश को सीएम कैंडिडेट बना दिया जाए लेकिन क्योंकि उस समय पीएम साहब और उनके चाणक्य जी मन में अपने सीएम का ख्वाब चल रहा था तो ऐसे में जैसे ही नीतीश लॉबी ने इसकी डिमांड बढ़ाई तो पीएम साहब के चाणक्य जी मंचों पर ये ऐलान करना शुरु कर दिया कि चुनाव के बाद विधायक दल के नेता ही सीएम तय करेंगे।
दोस्तों आपको बता दें कि जब से देश की सत्ता पर पीएम साहब काबिज हुए हैं तब से बीजेपी में यह एक परंपरा चली आई है कि पर्ची वाला सीएम होता है यानि कि राज्यों में वहीं सीएम हो सकता है जो गुजरात लॉबी का करीबी हो। मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और दिल्ली इसकी जीती जगाती मिसाल है और शायद यही खेल बीजेपी बिहार में भी चाहती थी लेकिन उनका सारा खेल एक ही झटके में नीतीश कुमार ने खत्म कर दिया और साफ कर दिया कि उनकी पार्टी को सीएम का पद चाहिए।
पहले तो गुजरात लॉबी इस पर तैयार नहीं थी लेकिन क्योंकि नीतीश को सभी जानते हैं कि वो एक मिनट में ही पूरा गेम बदल सकते हैं और ऐसे में पीएम साहब और उनके चाणक्य जी को झुकना पड़ा क्योंकि नीतीश के पार्टी के पास 85 के जो आंकड़े हैं वो इंडिया गठबंधन से जुडने के बाद जादुई आंकड़े को छू लेते है और यह बात भी तय है कि नीतीश वहां भी जाएंगे तो उनका सीएम का पद तय ही है, ऐसे में पिछली बार की गलती पीएम साहब और उनके चाणक्य ने नहीं दोहराई और सीएम पद को दे दिया।
हालांकि नीतीश कुमार ने इस्तीफे वाला पेंच फंसा दिया था और 17 को कैबिनेट की बैठक के बाद राजभवन गए लेकिन इस्तीफा नहीं दिया। कई मीडिया चैनल और आमजन मानस में यह चर्चा रही कि नीतीश ने बीजेपी के पर्ची वाले गेम यानि कि विधायक दल का नेता चुने जाने में खेल के डर से ऐसा नहीं किया और साफ शर्त रख दी कि पहले एनडीए के विधायक दल का नेता चुनो फिर इस्तीफा होगा और आखिर में यही हुआ यानि कल 19 नंवबर को पहले नीतीश कुमार विधायक दल के नेता चुने गए और फिर उसके बाद वो राजभवन गए और न सिर्फ इस्तीफा दिया बल्कि नई सरकार बनाने का दावा भी पेश किया और अब वो शपथ लेकर सीएम बन चुके हैं।
आपको बता दें जब दूसरे राउंड की बात के लिए अमित शाह ने अचानक रातोंरात ललन सिंह और संजय झा को दिल्ली बुलाया और बातचीत की तो विभागों को लेकर फंसा पेंच था क्योंकि बीजेपी चाहती थी कि सीएम भले से ही नीतीश कुमार रहें लेकिन एजेंडे उनके लागू होते रहे। इसके लिए वो गृह और वित्त मंत्रालय चाहते थे लेकिन नीतीश ने यहां भी साफ कर दिया कि वो गृह तो किसी कीमत पर छोड़ने वाले नहीं है और अगर बीजेपी दो डिप्टी सीएम बनाती है तो उनको विधान सभा अध्यक्ष का पद उनको देना पड़ेगा।
आपको बता दें जब ललन सिंह और संजय झा दिल्ली से बात करके लौटे तो नीतीश कुमार ने इस प्रपोजल को इंकार कर दिया और बीजेपी की हालत इतनी खराब हो गई कि खुद अमितशाह को रातोंरात पटना आना पड़ा और विभागों के बंटवारे से लेकर विधान सभा अध्यक्ष की कुर्सी के लिए नीतीश खेमे से बात करनी पड़ी, हालांकि मान मनौव्वल के दौर में नीतीश कुमार आखिर में मान गए है और प्रेम कुमार के नाम पर स्पीकर को लेकर मोहर लग गई है लेकिन ऐेसे में एक बार पूरी तरह से साफ है कि जिस तरह से नीतीश कुमार ने न सिर्फ सीएम का पद लिया बल्कि बीजेपी के गृहमंत्रालय वाले प्रपोजल को खारिज कर दिया और आखिर में डिप्टी सीएम वाला पेंच फंसा कर खुद को साबित करवाया और इसके लिए पीएम साहब के चाणक्य को वापस आना पड़ा।
आपको बता दें कि बिहार में अभी एक पक्ष में यह चर्चा है कि नीतीश कुमार कुछ दिनों के सीएम है, यहां भी ऑपरेशन लोट्स होगा और नीतीश कुमार का हाल उद्धव ठाकरे वाला होना तय है लेकिन जिस तरीके से नीतीश कुमार ने तीन महीने में जोरदार वापसी की है, इससे कहीं नहीं ये लगता है कि नीतीश कुमार को हरा पाना इतना आसान होगा। क्योंकि इस बार नीतीश कमजोर नहीं हैं , उनके पास न सिर्फ 85 सीटें हैंं बल्कि वो 2005 वाले रोल में दिख रहे हैं।
यानि कि इस बार सरकार में नीतीश कुमार सुशासन बाबू वाले रोल में दिखाई देंगे और जो ऑपरेशन लोट्स और कुछ दिन के सीएम का खेल बताया जा रहा है वो बिहार में नीतीश के रहते आसान नहीं होगा, क्योंकि जिस तरह से नीतीश कुमार ने तीन महीने में न सिर्फ विपक्ष बल्कि गुजरात लॉबी को ठीक किया है ये साफ संदेश है कि बिहार का मतलब नीतीश और नीतीश का मतलब बिहार है और ये लगभग तय है कि कुछ भी हो सीएम नीतीश कुमार ही होंगे। पूरे मामले पर आपका क्या मानना है। क्या नीतीश कुमार ने न सिर्फ विपक्ष बल्कि चाण्क्य जी की चाणक्यगिरी की हवा निकाल दी है।



