पसमंदा मुस्लिमों पर मोदी की नजर

  • स्नेह यात्रा से घर-घर पहुंच कर बीजेपी से जोड़ने की हो रही पहल
  • 2024 चुनाव : फिर याद आए मुसलमान

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। 2024 चुनाव की तैयारी में जुटी भाजपा अब पसमंदा मुस्लिमों पर डोरा डालने में लग गई है। इसकी बानगी भाजपा के कार्यकारिणी बैठक में प्रधानमंत्री के भाषण में देखने को मिला। जिसमें उन्होंने कहा ‘मुस्लिम समुदाय के बोहरा, पसमांदा और पढ़े लिखे लोगों तक हमें सरकार की नीतियां लेकर जानी हैं। हमें समाज के सभी अंगों से जुडऩा है और उन्हें अपने साथ जोडऩा है। इससे करीब 6 महीने पहले 3 जुलाई 2022 को हैदराबाद में आयोजित बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पीएम मोदी ने पसमांदा मुस्लिमों के लिए स्नेह यात्रा की घोषणा की थी। इस यात्रा का मकसद पसमांदा मुस्लिमों के घर-घर पहुंच कर बीजेपी से जोडऩे की पहल करना था।
पसमांदा शब्द फारसी भाषा से लिया गया है, जिसका मतलब है- समाज में पीछे छूट गए लोग। भारत में पिछड़े और दलित मुस्लिमों को पसमांदा कहा जाता है। मुस्लिम मामलों के जानकार के अनुसार पसमांदा फारसी और उर्दू का शब्द है। उनका कहना है कि मुस्लिम समाज भी जातियों में बंटा है। जो मुस्लिम जातियां सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ी हैं, उन्हें पसमांदा मुस्लिम कहते हैं। इनमें वो जातियां भी शामिल हैं जिनसे छुआछूत होती है, लेकिन यह हिंदू दलितों की तरह अनूसूचित जातियों यानी एससी की सूची में शामिल नहीं हैं। अलग-अलग जातियों में बंटे पिछड़े मुस्लिमों को ‘जाति से जमात’ की नीति पर एकजुट करने के लिए पसमांदा शब्द की शुरुआत हुई थी। अब भारतीय मुस्लिमों में पसमांदा मुस्लिमों की आबादी 80 फीसद से ज्यादा है।
देश के किस हिस्से में कितनी मुस्लिम आबादी है, इससे हम देश में मौजूद पसमांदा मुस्लिमों की आबादी का अंदाजा लगा सकते हैं। पॉलिटिकल एक्सपर्ट बताते हैं कि भाजपा पसमांदा मुस्लिमों को साधने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। पसमांदा के लिए बीजेपी कई कार्यक्रम आयोजित करने के साथ ही ‘स्नेह यात्रा’ भी निकाल चुकी है। ऐसा इसलिए क्योंकि पसमांदा की एक शिकायत रही है कि अशराफ लोग सत्ता में रहते हैं। पसमांदा की इस शिकायत को दूर कर भाजपा इस समुदाय के कुछ लोगों को अपनी ओर खींच सकती है। ‘भाजपा औपचारिक तौर पर ‘स्नेह यात्रा’ निकालने के बजाय अगर ठोस राजनीतिक और आर्थिक कार्यक्रम लेकर पसमांदा के बीच जाएगी तो इसका फायदा मिल सकता है। अभी तक भाजपा शिया और बरेलवी वोटों पर काम करती रही है, लेकिन सुन्नियों पर भाजपा ने इस बार यह बड़ा प्रयोग किया है। गौरतलब हो कि एक वक्त था जब एनडीए बनाने के लिए भाजपा ने अनुच्छेद 370 और राम मंदिर जैसे मुद्दे को साइड कर दिया था, लेकिन सत्ता में आते ही सबसे पहले यही काम किया। ऐसे में बीजेपी को अगर दिखाई देगा कि उसे पसमांदा का थोड़ा बहुत भी वोट मिल सकता है तो लोगों को भाजपा का बदला रूप भी देखने को मिलेगा।

पसमांदा को साधने की वजह

उत्तर प्रदेश के 45 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाली रामपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव में भाजपा को 42 हजार वोटों से जीत मिली थी। मुस्लिमों के गढ़ माने जाने वाले आजमगढ़ उप-चुनाव में भी 13 साल बाद भाजपा कमल खिलाने में कामयाब रही है। प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने दावा किया था कि विधानसभा चुनाव में 8 फीसद पसमांदा का वोट भाजपा को मिला है। इसके अलावा सीएसडीएस लोकनीति सर्वे 2022 ने भी अपने रिपोर्ट में बताया है कि 8 प्रतिशत पसमांदा मुस्लिमों ने विधानसभा में भाजपा को वोट दिए। इसकी वजह से कई सीटों पर भाजपा की जीत में पसमांदा ने अहम भूमिका निभाई है। विधानसभा चुनाव 2022 में 34 मुस्लिम विधायक जीतकर लखनऊ पहुंचे हैं, जिनमें से 30 विधायक पसमांदा हैं। उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में पसमांदा मुस्लिम 18 प्रतिशत हैं। ऐसे में साफ है कि ‘स्नेह यात्रा’ के जरिए भाजपा न सिर्फ 80 लोकसभा वाले यूपी बल्कि बिहार, बंगाल, झारखंड जैसे राज्यों में भी राजनीति साधने की कोशिश कर रही है।

आजादी के बाद 400 मुस्लिम सांसद बने, इनमें सिर्फ 60 पसमांदा

2019 लोकसभा चुनाव के बाद पसमांदा मुस्लिमों के भारतीय राजनीति में हिस्सेदारी को लेकर सवाल खड़े होने लगे। एक रिपोर्ट के मुताबिक 1947 से लेकर 14वीं लोकसभा तक कुल 7,500 सांसद बने, जिनमें से 400 मुस्लिम थे। हैरानी की बात यह है कि इनमें से 340 सांसद अशरफ यानी उच्च मुस्लिम जाति के थे और सिर्फ 60 मुस्लिम सांसद पसमांदा समाज से रहे हैं।

विपक्षी दलों को कमजोर करना चाहती है भाजपा

छोटे दलों की मदद से भाजपा कैसे पसमांदा मुस्लिमों को साधना चाहती है, इस बात को बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम से समझा जा सकता है। 2010 में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार बिहार में दो-तिहाई से अधिक बहुमत के साथ बनी थी। नीतीश कुमार के सुशासन और माफिया को खत्म कर कानून-व्यवस्था को मजबूत करने के चुनावी नारे उन कई कारणों में से एक थे, जिनकी वजह से उनकी जीत हुई। इतना ही नहीं नीतीश कुमार ने जातिगत समीकरणों को काफी शानदार तरीके से साधा था, जिसके चलते पसमांदा मुसलमानों ने आरजेडी और एलजेपी के बजाय एनडीए को वोट दिया था। सूत्रों की मानें तो 2024 लोकसभा चुनाव में एनडीए के सहयोगी पार्टियां अन्नाद्रमुक, अपना दल, निषाद पार्टी, जेजेपी राष्ट्रीय लोजपा, बीपीएफ, एजीपी व आईपीएफटी आदि पसमांदा मुस्लिम समुदाय को जोडऩे के लिए अन्य छोटे सहयोगियों के माध्यम से अपने मास्टर प्लान को लागू करेंगे। यानी चुनाव में ये पार्टियां पसमांदा समुदाय के नेताओं को मुस्लिम बहुल सीटों पर उनके चुनाव चिह्न पर टिकट देंगी। भले ही ये पार्टी चुनाव न जीत सकें, लेकिन मुस्लिम वोटों को बांटने और विपक्षी दलों को कमजोर करने में अहम भूमिका निभाएगी।

5 राज्यों में 190 लोकसभा सीट यहीं सबसे ज्यादा पसमांदा

ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के संस्थापक अली अनवर अंसारी का कहना है कि वैसे तो देश के 18 राज्यों में जहां भी मुस्लिम आबादी है, हर जगह पसमांदा हैं, लेकिन 5 राज्यों यूपी, बिहार, झारखंड, बंगाल और असम में इनकी संख्या ज्यादा है। इन 5 में से 3 राज्यों में अभी बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की सरकार है, जबकि 2 राज्यों में से एक में टीएमसी और दूसरे में जेएमएम और कांग्रेस की सरकार है। 2011 जनगणना के मुताबिक इन 5 राज्यों में मुस्लिम आबादी की बात करें तो यूपी में 19.26फीसद, बिहार में 16.87फीसद , बंगाल में 27.01 फीसद, झारखंड में 14.53 फीसद और असम में 34.22 फीसद मुस्लिम हैं। इनमें ज्यादातर संख्या पसमांदा मुस्लिमों की है। इन राज्यों में 190 से ज्यादा लोकसभा की सीटें हैं। इसलिए बीजेपी 2024 को ध्यान में रखते हुए यहां पसमांदा को साधने में लगी है। इसके अलावा दक्षिण भारत के तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी पसमांदा मुस्लिमों की अच्छी-खासी तादाद है।

सच्चर कमेटी ने भी दलित पसमांदा को एससी में शामिल करने का दिया था सुझाव

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, 1936 में जब अंग्रेजों के सामने ये मामला गया तो एक इंपीरियल ऑर्डर के तहत सिख, बौद्ध, मुस्लिम और ईसाई दलितों को बतौर दलित मान्यता दी गई, लेकिन इन्हें हिंदू दलितों को मिलने वाले फायदे नहीं दिए गए। 1950 में आजाद भारत के संविधान में भी यही व्यवस्था रही। हालांकि 1956 में सिख दलितों और 1990 में नव-बौद्धों को दलितों में शामिल तो कर लिया गया पर मुस्लिम दलित जातियों को मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने के बाद ओबीसी लिस्ट में ही जगह मिल पाई। इसलिए कमीशन की रिपोर्ट में दलित पसमांदा मुस्लिमों को एससी में शामिल करने का सुझाव दिया गया।

 

 

 

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