नीतीश कुमार बनेंगे उप प्रधानमंत्री!

राजनीतिक गोटियां बिछना शुरू, बिहार में चुनाव से पहले बदलाव संभव

सुशासन बाबू से संतुलन बाबू तक बनने का नीतीश कुमार का सियासी सफर होगा पूरा
बीजेपी रणनीतिकारों ने मथी बिहार की राजनीति
नीतीश के लिए सत्ता ही सबसे बड़ा सत्य

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। देश की जनता को जल्द ही दो-दो शपथग्रहण देखने को मिलेंगे। एक शपथ ग्रहण केन्द्र की मोदी सरकार में होगा और दूसरा बिहार में। बिहार के सीएम नीतीश कुमार इस्तीफा देंगे और केन्द्र सरकार में उप-प्रधानमंत्री बनेंगे।
वही बिहार के सीएम के तौर विजय चौधरी और ललन सिंह का नाम बराबरी पर चल रहा है। दोनों में से किसी एक को नीतीश कुमार प्राक्सी मुख्यमंत्री बना कर खुद दिल्ली की राजनीति में ताकत हासिल करेंगे। विजय चौधरी मौजूदा सरकार में शिक्षा मंत्री है और नीतीश के बेहद करीबी माने जाते हैं वही ललन सिंह जदयू के पूर्व राष्ष्टï्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। ललन सिंह को बीजेपी पंसद नहीं करती है।


अश्विनी चौबे ने साफ कर दी तस्वीर

पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के ताजा बयान ने राजनीतिक परिदृष्य स्पष्ठ कर दिया है। उन्होंने कहा है कि नीतीश कुमार का उप-प्रधानमंत्री बनना बिहार के लिए गौरव का विषय होगा। उन्होंने कहा अगर उन्हें उप-प्रधानमंत्री बनाया जाता है तो यह बिहार को जगजीवन राम के बाद एक और बड़ा सम्मान मिलेगा जो राज्य के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकता है। इस बयान के जरिए जहां नीतीश कुमार के राजनीतिक कद को लेकर नई चर्चा शुरू हो गई है वहीं इसे भाजपा की रणनीतिक चाल भी माना जा रहा है।

4पीएम पहले ही बता चुका है

4 पीएम न्यूज नेटवर्क इस बात को पहले ही बता चुका है कि सर्वे इस बात की तस्दीक कर चुके हैं कि यदि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया गया तो एनडीए का डिब्बा बिहार चुनाव में गुल हो जाएगा। नीतीश की थक चुकी छवि और बार-बार पाला बदलने से लोग ऊब चुके हैं और वह नीतीश को बदलने के मूड में हैं। यह जो कुछ भी हो रहा है वह बिहार की जनता को लग्घी से चाय पिलाने जैसा है। वक्फ संशोधन बिल के पास होने के बाद नीतीश की छवि को धक्का लगा है और मुसलमान नाराज बताये जा रहे हैं। हालांकि यह भी सही है कि नीतीश को मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर 15 फीसदी तक वोट उस समय हासिल हुआ था जब वह एनडीए के संयोजक थे।

बिहार और बंगाल पर बीजेपी की नजर

देश के सिर्फ दो ऐस राज्य बचे हैं जहां बीजेपी पूरी ताकत के साथ सत्ता पर काबिज होने से अभी भी दूर है। एक बिहार है और दूसरा बंगाल। दोनो ही राज्यों में चुनाव होना है। बंगाल से पहले बिहार में चुनाव है और बीजेपी पूरी ताकत के साथ इन चुनावों में हिस्सा ले रही है। पूर्व में जो राजनीतिक गल्तियां बीजेपी से हुई हैं वह इस बार वह उन से परहेज कर रही है या फिर दूरी बना कर चल रही है।

दो नावों की सवारी में माहिर

नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति को हिंदुत्व और सेक्युलरिज़्म रूपी दो ध्रुवों में बांट रखा है और खुद बीच में खड़े होकर दोनों तरफ के वोट खींच लेते हैं। वे एनडीए में रहकर मुसलमानों को लिप-सर्विस देते हैं और राजद की विफलताओं की याद दिलाकर पिछड़े वर्ग को साधते हैं। नीतिश कुमार हर बार सत्ता परिवर्तन के पहले अपनी छवि को रिब्रांड करते हैं। 2005 के बिहार चुनाव में उन्होंने खुद को सुशासन बाबू के नाम पर पेश किया और 2010 आते-आते वह विकास पुरुष बन गये। 2015 में उन्होंने अपनी छवि संविधान रक्षक के तौर पर डेवलप की और 2020 के मुख्यमंत्री बनने से पहले उन्होंने खुद को अनिच्छुक मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया। 2025 के चुनाव में वह खुद को संघर्षशील बुजुर्ग नेता के तौर पर पेश कर रहे हैं।

नीतीश की पॉलिटिक्स

बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार एक ऐसा नाम हैं जो हमेशा सत्ता के समीकरणों में सबसे निर्णायक किरदार निभाता है। चाहे लालू प्रसाद यादव की सामाजिक न्याय की राजनीति हो या फिर नरेंद्र मोदी की न्यू इंडिया पॉलिटिक्स नीतीश दोनों ही जगह फिट बैठते हैं। वह सुशासन बाबू के नाम से जाने जाते हैं लेकिन उनका असली खेल सत्ता की गोटियों को बारीकी से बिछाना है। नीतीश कुमार की राजनीति का मूल मंत्र स्थिरता नहीं संतुलन है। नीतीश कुमार कभी भी किसी विचारधारा के पक्के समर्थक नहीं रहे। उनके लिए सत्ता ही सबसे बड़ा सत्य है। वे बीजेपी के साथ भी रहे आरजेडी के साथ भी रहे। यहां तक कि 2013 में बीजेपी से नाता तोडक़र 2015 में महागठबंधन बनाया और फिर 2017 में वापस बीजेपी के साथ आ गए।

तेजस्वी या नीतीश?

बिहार चुनाव की पिच तैयार है और बीजेपी 50—50 राजनीतिक पैटर्न पर चुनाव लडऩे जा रही है। यानि हिंदू—मुस्लमान, वक्फ संशोधन बिल और नीतीश को दिल्ली भेजने के बाद बीजेपी खुल कर चुनाव लड़ेगी। यानि कि यह चुनाव पूरी तरह से तेजस्वी और बीजेपी के बीच होने जा रहे हैं। ऐसे में पशुपति पारस, चिराग पासवान, साधू यादव, जीतन राम मांझी और पीके। यह सभी राजनीतिक चेहरे अति महत्वूपर्ण हो गये हैं। बीजेपी इस बार भी बांटो और राज करो के मूल—मंत्र को अपनाएगी। लेकिन इसके बरअक्स एक और पहलू है जो चल रहा है और वह यह है कि बिहार के युवा अब इमोशन नहीं इकोनॉमिक्स पर वोट कर रहा है। और बीजेपी की सियासी इक्नोमिक्स इस दिशा में फेल दिखायी दे रही है। बाढ़, रोजगार और पलायन जैसे मुददें तेजी से बिहार की हवा में घुल रहे हैं। राहुल गांधी की समझदार राजनीति और तेजस्वी की युवाओं को टारगेट कर बनाई गयी रणनीति ने बीजेपी की रातों की नींद उड़ा रखी है। और आज का जो सियासी अपडेट है वह उसी उड़ चुकी नींद की एक प्रतिक्रिया भर है।

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