अब सिसोदिया पर लटकी जेल जाने की तलवार

नई दिल्ली। दिल्ली में 2015 में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद सितंबर में दिल्ली सरकार ने एक फीडबैक यूनिट बनाई थी जिसका काम हर विभाग पर नजर रखना था। इसके गठन के पीछे सरकार ने तर्क दिया था कि इसके ज़रिए तमाम विभागों के भ्रष्टाचार पर नजर रखी जाएगी। लेकिन गठन के समय बाद ही केजरीवाल गर्वमेंट पर आरोप लगा कि इसके जरिए वो विपक्षी दलों के कामकाज पर नजर रख रही थी।
दरअसल, दिल्ली सरकार के विजिलेंस विभाग के एक अधिकारी की शिकायत पर सीबीआई ने मामले में प्रारंभिक जांच की। 2016 में एजेंसी की ओर से कहा गया कि एफबीयू ने सौंपे गए कामों के अलावा भी विपक्ष के नेताओं की जासूसी की थी। सीबीआई की पीई में दावा किया गया था कि महज 8 महीनों के भीतर स्नक्च ने 700 से ज्यादा मामलों की जांच की थी। इनमें से तकरीबन 60 प्रतिशत मामलों में राजनीतिक खुफिया जानकारी जुटाई गई थी।
सीबीआई ने फीडबैक यूनिट के मामले में आगे विस्तृत जांच की जरूरत बताते हुए मनीष सिसोदिया के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर केस चलाने की अनुमति मांगते हुए अपनी रिपोर्ट विजिलेंस विभाग को सौंपी थी। इसी रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली के एलजी विनय कुमार सक्सेना ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर गृहमंत्रालय के जरिए मनीष सिसोदिया पर केस चलाने की अनुमति देने की मांग की थी। जिसपर 17 फरवरी को केंद्र सरकार की ओर से केस चलाने की अनुमति दे दी गई।
आपको बता दें कि फीडबैक यूनिट मनीष सिसोदिया के ही अधीन काम कर रही थी। सीबीआई ने तत्कालीन सतर्कता निदेशक सुकेश कुमार जैन, स्नक्च के ज्वाइंट डायरेक्टर और मुख्यमंत्री के विशेष सलाहकार राकेश कुमार सिन्हा, एफबीयू के 2 सीनियर अधिकारियों प्रदीप कुमार पुंज और सतीश खेत्रपाल और गोपाल मोहन के खिलाफ मामला दर्ज करने की भी मंजूरी मांगी थी। गोपाल मोहन भ्रष्टाचार विरोधी मामलों में अरविंद केजरीवाल के सलाहकार के रूप में काम करते हैं।

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