सदन के बाद विपक्ष लड़ेगा सडक़ पर लड़ाई, एसआईआर पर राजनीति गरमाई
एसआईआर पर नहीं हो सकी चर्चा

ऑन लाइन गेमिंग और आपराधिक मामलों में निर्वाचित प्रतिनिधियों को हटाने के प्रावधान वाले विधेयक पेश
ऑपरेशन सिंदूर पर भी सरकार को खानी पड़ी मात
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। मानसून सत्र समाप्त हो चुका है लेकिन इसकी गूंज अब भी संसद से लेकर सडक़ों तक सुनाई दे रही है। यह सत्र जहाँ एक ओर सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर गया वहीं दूसरी ओर विपक्ष को नई ऊर्जा नई संजीवनी और जनता के बीच मुद्दे उठाने का मौका दे गया।
सरकार की सबसे बड़ी हार बिहार में चल रहे मतदाता पुनरिक्षण कार्यकम एसआईआर पर चर्चा नहीं होना बताई जा रही है। विपक्ष के जबर्दस्त मांग के बावजूद सरकार ने इस विषय पर चर्चा नहीं कराई। सरकार लगातार टालमटोल करती रही लेकिन विपक्ष ने इसे जनता के सामने सरकार की जवाबदेही से भागने का उदाहरण बना दिया।

फाउल कर बैठी सरकार
इसी बीच सरकार ने आन लाइन गेमिंग और आपराधिक मामलों में निर्वाचित प्रतिनिधियों को हटाने का प्रावधान वाले विधेयक पेश किए। देखने में यह सुधार लगे पर विपक्ष ने इसे लोकतंत्र पर हमला करार दिया। सवाल यह है कि क्या जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों को हटाने का अधिकार अदालत या चुनाव आयोग से छीनकर सरकार अपने पास रखना चाहती है। सबसे चुभने वाला मोर्चा बना ऑपरेशन सिंदूर। यहाँ सरकार को सीधे-सीधे हार का सामना करना पड़ा। विपक्ष ने इसे सत्ता की तानाशाही चाल करार दिया और जनता को समझाने में सफल रहा कि सरकार सत्ता की खातिर किसी भी हद तक जा सकती है।
जेपीसी को भेजा गया विधेयक
प्रस्तावित विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेज दिया गया है। जिसे अगले संसदीय सत्र के पहले दिन अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है। गृह मंत्री अमित शाह ने आश्वासन दिया है कि विपक्ष को आपत्तियां उठाने और समिति के समक्ष अपने विचार प्रस्तुत करने का पर्याप्त अवसर दिया जाएगा। अमित शाह ने तीन प्रमुख विधेयक पेश किए । केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक, 2025, संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025। प्रावधानों के अनुसार, कोई भी प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, या किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश का मंत्री अगर न्यूनतम पांच वर्ष की जेल की सजा वाले अपराधों के संबंध में गिरफ्तार किया जाता है और लगातार 30 दिनों तक हिरासत में रहता है तो उसे 31वें दिन तक इस्तीफा देना होगा।
नियंत्रण के लिए बनाया जा रहा कानून!
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपेश बघेल ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को हटाने के लिए लोकसभा में पेश किया गया यह विधेयक देश भर के मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों को नियंत्रित करने के लिए है। अगर आज ऐसा प्रावधान लागू हो जाता है तो आपको एक महीने नहीं बल्कि पांच महीने तक भी जमानत नहीं मिलेगी। यानी आप अपना मंत्री पद गंवा देंगे। वे नियंत्रण करने के लिए यह नया कानून बना रहे हैं।
बहुमत के नशे में मुद्दों को दबाया नहीं जा सकता
पूरे सत्र में जो दृश्य बना उसमें विपक्ष की एकजुटता स्पष्ट नजर आई। राहुल गांधी से लेकर क्षेत्रीय दलों तक ने सरकार की नीतियों को आड़े हाथों लिया। संसद के गलियारों में गूंजता विपक्ष का स्वर बाहर जनता तक भी पहुँचा। सत्र के अंत में तस्वीर साफ हो गयी कि लोकतंत्र अब विपक्ष के दम पर ही जिंदा है। सरकार बहुमत के बावजूद संवाद से भागती है तो विपक्ष सवालों के जरिए उसकी असलियत जनता तक पहुँचाता है। मानसून सत्र ने विपक्ष को राजनीतिक ऑक्सीजन दी है और सरकार को यह अहसास करा दिया है कि बहुमत के नशे में हर मुद्दे को दबाया नहीं जा सकता।
इंडिया गठबंधन के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार ने किया नामांकन
सोनिया, खरगे, प्रियंका व राहुल गांधी रहे मौजूद
उपराष्ट्रपति चुनाव भारत के विचार की पुष्टि का विषय : रेड्डी
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी ने गुरुवार को कांग्रेस के शीर्ष नेताओं मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी और राहुल गांधी की उपस्थिति में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। नामांकन दाखिल करने के बाद उन्होंने अहम टिप्पणी भी की। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि अगर वे उपराष्ट्रपति निर्वाचित किए जाते हैं तो क्या करेंगे।
नामांकन दाखिल करने के बाद बी. सुदर्शन रेड्डी ने कहा कि यह चुनाव महज एक व्यक्ति के बारे में नहीं है, बल्कि भारत के उस विचार की पुष्टि के बारे में है जहां संसद ईमानदारी से काम करती है। जहां असहमति का भी सम्मान किया जाता है और संस्थाएं स्वतंत्रता और निष्पक्षता के साथ लोगों की सेवा करती हैं। रेड्डी ने कहा कि आज मुझे विपक्षी दलों के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में भारत के उपराष्ट्रपति पद के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल करने का सम्मान मिला। मैंने यह काम विनम्रता, जिम्मेदारी और हमारे संविधान में निहित मूल्यों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता की गहरी भावना के साथ किया। उन्होंने कहा कि यह चुनाव केवल एक व्यक्ति के बारे में नहीं है। यह हमारे संस्थापकों द्वारा परिकल्पित भारत के विचार की पुष्टि करने के बारे में है। एक ऐसा भारत जहां संसद ईमानदारी से काम करे, जहां असहमति का सम्मान किया जाए और जहां संस्थाएं स्वतंत्रता और निष्पक्षता के साथ लोगों की सेवा करें।
निष्पक्षता के साथ निभाऊंगा उपराष्ट्रपति पद की भूमिका
उन्होंने कहा कि राज्यसभा के सभापति के रूप में उपराष्ट्रपति पर संसदीय लोकतंत्र की सर्वोच्च परंपराओं की रक्षा करने की जिम्मेदारी है। यदि मैं निर्वाचित होता हूं तो मैं निष्पक्षता, गरिमा तथा संवाद एवं शिष्टाचार के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता के साथ अपनी भूमिका निभाने का वचन देता हूं।
विपक्षी दलों के नेताओं के प्रति भी जताया गहरा आभार
इस दौरान विपक्षी उम्मीदवार रेड्डी ने विपक्षी दलों के नेताओं के प्रति भी गहरा आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि हमारे संविधान में विश्वास और हमारे लोगों में आशा के साथ मैं इस यात्रा पर निकल रहा हूं। हमारी लोकतांत्रिक भावना हम सभी का मार्गदर्शन करती रहे।
अन्य दलों के नेता भी रहे शामिल
इस दौरान कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, सांसद राहुल गांधी, समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव और संजय राउत समेत तमाम विपक्ष के नेता मौजूद रहे। नामांकन पत्र के चार सेट दाखिल किए गए हैं, जिन पर कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, द्रमुक के तिरुचि शिवा समेत 160 सांसदों ने बतौर प्रस्तावक व अनुमोदक हस्ताक्षर किए हैं. सुदर्शन रेड्डी उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और गोवा के लोकायुक्त रहे हैं।
राहुल गांधी की प्रशंसा की
बी सुदर्शन रेड्डी ने राहुल गांधी की तारीफ करते हुए कहा कि वह सडक़ों को शांत नहीं रहने देते हैं और उन्होंने सफलतापूर्वक सरकारों को कार्रवाई करने के लिए राजी किया है, जैसे कि तेलंगाना सरकार द्वारा व्यवस्थित जाति जनगणना कराना। उन्होंने बिहार में मौजूदा संकट पर भी चिंता व्यक्त की तथा कहा कि सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है, जो संविधान के लिए एक बड़ा खतरा है। मुझे लोहिया जी की कही एक बात याद आ गई, जब सडक़ खामोश होती है, सदन आवारा होता है। राहुल गांधी सडक़ों को खामोश नहीं रहने देते।



