शादी की उम्र पर कानून बनाने का अधिकार संसद को : सुप्रीम कोर्ट

महिलाओं के लिए शादी की न्यूनतम उम्र एक समान करने की मांग वाली याचिका खारिज

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। महिलाओं के अधिकारों को लेकर दशकों तक दिखे जूडिशल एक्टिविज्म के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने रुख में बदलाव किया है। सुप्रीम कोर्ट ने पुरुषों और महिलाओं के लिए शादी की न्यूनतम उम्र एक समान करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने साफ कहा कि कुछ मामले संसद के लिए होते हैं और अदालतें महिलाओं के शादी की उम्र पर कानून नहीं बना सकती हैं।
चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अदालत संसद को विधेयक पारित करने के लिए आदेश भी नहीं दे सकती है। इससे पहले वर्कप्लेस पर यौन शोषण से संबंधित विशाखा केस के बाद से ऐसा देखा गया था कि सुप्रीम कोर्ट महिलाओं के अधिकारों की बात करते हुए जुडिशल एक्टिविज्म की तरह पेश आ रहा था। अब उसने महिलाओं के मुद्दे पर ही दूरी बना ली। वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर पुरुषों और महिलाओं के लिए शादी की कानूनी उम्र सीमा एक समान करने की मांग की थी।

सरकार पर छोडऩा चाहिए

मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, ये ऐसे मामले हैं जिसे हमें संसद और सरकार पर छोडऩा चाहिए। हम संविधान के एकमात्र संरक्षक नहीं हैं। वैसे, महिला और पुरुष के शादी की एक समान उम्र होनी चाहिए लेकिन इसे विधायिका और सरकार के विवेक पर छोडऩा चाहिए। सुप्रीम कोर्ट न तो संसद को निर्देश दे सकती है और न ही कानून बना सकती है।

 

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