PM मोदी के आर्थिक सलाहकार ने कही संविधान में बदलाव की बात, विपक्ष ने घेरा

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन बिबेक देबरॉय के संविधान को लेकर लिखे एक लेख पर राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है। विपक्षी दल इस लेख को लेकर अब सरकार पर पूरी तरह से हमलावर हैं। जेडीयू और आरजेडी ने लेख को लेकर भाजपा पर हमला बोला है। जेडीयू के राष्ट्रीय सचिव राजीव रंजन ने कहा कि बिबेक देबरॉय ने जो कहा है उसने भाजपा, आरएसएस के घृणित सोच को फिर सामने ला दिया है।

जेडीयू-आरजेडी ने सरकार पर बोला हमला

जेडीयू के राष्ट्रीय सचिव राजीव रंजन ने कहा कि इस तरह की कोशिशों को भारत कभी स्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने भारत के संविधान को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ संविधान बताया और कहा कि बिबेक देबरॉय चाटुकारिता कर रहे हैं। वहीं, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता और राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा कि ये बिबेक देबरॉय की जुबान से बुलवाया गया है। ठहरे हुए पानी में कंकड़ डालो और अगर लहर पैदा हो रही तो और डालो और फिर कहो कि अरे ये मांग उठने लगी है। झा ने कहा, संवैधानिक मूल्य पूर्णतः अधिनायक वाद का लाइसेंस इन्हें नहीं दे रहा है इसलिए खटक रहा है। संशोधन और पूरा संविधान बदलने में अंतर हैं। आरजेडी नेता ने कहा, मोदी जी के देश में असामनता चरम पर है। विधान बदलने की ज़रूरत है संविधान बदलने की नहीं। झा ने आगे कहा कि ये चाहते हैं कि वैसा कानून बने, जहां के राजा के मुख से निकला शब्द ही कानून हो। माला डाल देने से विचार आत्मसात नहीं होते।

पूरा संविधान बदलने की कही बात

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने एक लेख में लिखा कि हमारा मौजूदा संविधान काफी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है। 2002 में संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए गठित एक आयोग द्वारा एक रिपोर्ट आई थी, लेकिन यह आधा-अधूरा प्रयास था। कानून में सुधार के कई पहलुओं की तरह यहां और दूसरे बदलाव से काम नहीं चलेगा। लेख में आगे कहा गया है कि हमें पहले सिद्धांतों से शुरुआत करनी चाहिए जैसा कि संविधान सभा की बहस में हुआ था। 2047 के लिए भारत को किस संविधान की जरूरत है? देबरॉय ने लिखा है कि कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा। हमें ड्राइंग बोर्ड पर वापस जाना चाहिए और पहले सिद्धांतों से शुरू करना चाहिए, यह पूछना चाहिए कि प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, न्याय, स्वतंत्रता और समानता जैसे शब्दों का अब क्या मतलब है। हम लोगों को, खुद को एक नया संविधान देना होगा।

Related Articles

Back to top button