मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में चढ़-उतर रहा सियासी तापमान
दोनों राज्यों में सत्ता परिवर्तन की जंग होगी तेज
- भाजपा व कांग्रेस ने अभी से शुरु की चुनावी तैयारी
- सपा,बसपा, आप व अन्य दल भी ठोकेंगे ताल
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
भोपाल। जैसै-जैसे मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव की आहट सुनाई दे रही है वैसे-वैसे वहां का सियासी तापमान घट-बढ़ रहा है। कभी भाजपा कांग्रेस को घेर रही है तो कभी बीजेपी कांग्रेस को खरी-खोटी सुना रही है। सीएम शिवराज सिंह चौहान, कमलनाथ व दिग्विजय को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। तो कांग्रेस भी कभी महालोक की मुर्तियों के गिरने के मामले को बीच-बीच में उठाकर भाजपा सरकार को आइना दिखाती रहती है। दोनों बड़ी पार्टियों के अतिरिक्त आम अदमी पार्टी, सपा, बसपा व बीआरएस व एआईएमआईएम जैसी पार्टियां भी वहां के चुनाव में ताल ठोंकने की तैयारी में है। ऐसे चर्चा ये भी है इन छोटे दलों के उतरने से बीजेपी व कांग्रेस को झटका लग सकता है। खैर आगे क्या होगा यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा।
इस साल के अंत में मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव भूचाल लाने वाले हो सकते हैं। हमेशा की तरह इस बार भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होगा। लेकिन एक मजबूत क्षेत्रीय राजनीतिक संगठन के अभाव में कुछ अन्य दल अपने क्षेत्रों का विस्तार करने का प्रयास करेंगे। पिछले साल कोयला नगरी सिंगरौली में मेयर पद जीतकर शानदार एंट्री करने वाली दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) इस साल पहली बार मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ेगी। जनवरी में आप ने राज्य की कार्यकारिणी को भंग कर दिया और दो महीने बाद सिंगरौली मेयर का चुनाव रानी अग्रवाल ने जीत लिया। पार्टी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के रूप में भी पदोन्नत किया। आम आदमी पार्टी ने मध्यप्रदेश की 230 सीटों पर चुनाव लडऩे की घोषणा की है। आप की घोषणा के बाद बीजेपी और कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। अरविंद केजरीवाल भोपाल में जनसभा को भी संबोधित कर चुके हैं। राज्य में इसी साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं।
मध्य प्रदेश में हिंदुत्व की राह पर कांग्रेस
साफ-साफ दिखाई दे रहा है कि भाजपा से लगातार चुनाव हारने वाली कांग्रेस ने अब भाजपा की हिंदुत्व वाली पिच पर ही खेलकर उसे हराने का मंसूबा बना लिया है। अविभाजित मध्य प्रदेश को आमतौर पर भाजपा के हिंदुत्व की प्रयोगशाला माना जाता रहा है। मध्य प्रदेश में 2018 में चुनाव जीतकर गांधी परिवार के आशीर्वाद से मुख्यमंत्री बनने वाले कमलनाथ को जल्द ही भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत की मदद से कुर्सी से हटा कर अपने शिवराज सिंह चौहान को फिर से राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया लेकिन इसके बाद पूरे प्रदेश में भ्रमण कर रहे कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी को जल्द ही हिंदुत्व की राजनीति की अहमियत का भी अहसास हो गया और इसके बाद कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में भी हिंदुत्व की राजनीति पर ही चलने का फैसला कर लिया। इसके बाद ही कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के फिलहाल सबसे बड़े और एकमात्र दावेदार नजर आ रहे कमलनाथ ने अपनी पूजा करती तस्वीरों को सार्वजनिक रूप से शेयर करना शुरू कर दिया, बजरंग सेना का कांग्रेस में विलय कराया और सबसे खास बात यह है कि किसानों, बेरोजगारों, हड़तालों और आदिवासियों सहित तमाम मुद्दों पर शिवराज सरकार को घेरने वाले कमलनाथ बहुत ही जोर-शोर से और प्रमुखता से उज्जैन के महाकाल में गिरी देव प्रतिमाओं का भी मुद्दा उठाकर हिंदू मतदाताओं को खास संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में बघेल राम नाम में रमे
2018 में कांग्रेस के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद गांधी परिवार के आशीर्वाद से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने भूपेश बघेल ने बहुत जल्द ही यह भांप लिया कि अगर छत्तीसगढ़ में निर्बाध रूप से सरकार चलानी है तो हिंदुत्व के रास्ते पर चलना होगा और उसके बाद लोगों ने देखा किस तरह से बघेल ने एक-एक कर राज्य भाजपा से हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों को छीनना शुरू कर दिया। ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनाव 2023 के लिए भाजपा और कांग्रेस में हिंदुत्ववादी राजनीति करने की होड़ लगी हुई है। इस बार दोनों पार्टियां हिंदुत्व को मुद्दा बनाकर चुनावी प्रचार कर रही है। दोनों पार्टियों में होड़ लगी है कि कौन-सी पार्टी हिंदुत्व की राजनीति में आगे निकलती है। गोबर योजना से लेकर, राम वन गमन परिपथ, रामायण प्रतियोगिता, हनुमान चालीसा का पाठ और गोधन न्याय योजना जैसी परियोजनाओं को अपना कर, घोषणाएं करके छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार राज्य के हिंदू मतदाताओं को पुरजोर तरीके से और लगातार लुभाने का प्रयास कर रही है।
उम्मीदवार का सिलेक्शन बिगाड़ सकता है खेल
एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, मध्य प्रदेश में आप उतनी सफल नहीं होगी जितना वह सोचती है। इसके पीछे तर्क यह है कि उसके कार्यकर्ता जनता के मुद्दों पर लडऩे के लिए सडक़ों पर नहीं थे। दूसरा, क्योंकि मुफ्त उपहारों की इसकी अवधारणा पहले से ही कांग्रेस और भाजपा ने अपना लिया है। तीसरा कारण यह है कि दिल्ली में अपने मंत्रियों के खिलाफ हुए भ्रष्टाचार ने आप को झटका दिया है। अगर इसका थोड़ा सा भी असर हुआ तो यह केवल उम्मीदवारों के कारण होगा, जिन्होंने अपनी खास सीटों पर अपना आधार बनाया है। या तो उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि के कारण या भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों के बीच की आंतरिक लड़ाई के कारण होगा।
आप डालेगी प्रभाव
मार्च में राज्य का दौरा करने के दौरान केजरीवाल ने सभी 230 विधानसभा सीटों पर चुनाव लडऩे के फैसले की घोषणा की थी। अपनी घोषणा में, उन्होंने मध्य प्रदेश में सत्ता में आने पर मुफ्त बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के लिए दिल्ली मॉडल की अवधारणा का हवाला दिया। आप ने अभी तक मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरे की घोषणा नहीं की है, लेकिन सूत्रों ने दावा किया है कि वह भाजपा और कांग्रेस दोनों के कुछ बड़े नेताओं के साथ बातचीत कर रही है। यह भी खबर सामने आ रही है कि कई नेता भाजपा और कांग्रेस से दूर हो गए हैं और राजनीति में आगे बढऩे के लिए आप में जगह पाने की जुगत में हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि कई कारणों से आप का मध्य प्रदेश में ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन यह भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों के लिए खेल बिगाड़ सकती है।
कमलनाथ से लेकर प्रियंका तक भाजपा को घेरने में जुटे
यहां तक कि राज्य में चुनावी अभियान का श्रीगणेश करने के लिए मध्य प्रदेश पहुंची प्रियंका गांधी ने भी पहले मां नर्मदा की पूजा अर्चना और आरती कर अपने इरादों को पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया। प्रियंका गांधी ने भाजपा सरकार पर व्यापम घोटाले, शिक्षक भर्ती घोटाले, पुलिस भर्ती घोटाले, खनन घोटाले और ई-टेंडर सहित कई घोटाले करने का आरोप लगाते हुए यहां तक कह डाला कि भाजपा की सरकार ने तो घोटालों के मामले में मां नर्मदा और महादेव के महाकाल कॉरिडोर तक नहीं छोड़ा।
राहुल का बढ़ सकता है आधार
कांग्रेस एक बार फिर से अपने सॉफ्ट हिंदुत्व के पुराने वाले दौर में लौटने की कोशिश करती नजर आएगी क्योंकि कांग्रेस में नेताओं के एक बड़े समूह का यह मानना है कि अगर हिंदू वोटों के बल पर कांग्रेस भाजपा को हराती नजर आएगी तो अल्पसंख्यक वोटर खासकर मुस्लिम वोटर भी कांग्रेस के पाले में वापस लौट आएगा और अगर ऐसा हुआ तो न केवल लोकसभा में कांग्रेस की सीटें बढ़ेंगी बल्कि विपक्षी दलों में कांग्रेस खासकर राहुल गांधी की स्वीकार्यता भी बढ़ जाएगी।
सपा-बसपा भी दिखाएंगी दम
इस बीच, उत्तर प्रदेश स्थित बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) काफी जनाधार गंवाने के बावजूद भी चुनाव लड़ेंगी। जहां सपा के एकमात्र मौजूदा विधायक राजेश शुक्ला (बिजावर) पिछले साल जनवरी में राष्ट्रपति चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे, वहीं बसपा के मौजूदा विधायक संजीव कुशवाहा भी भगवा पार्टी में शामिल हो गए हैं। हाल ही में रीवा की मनगवां सीट से बसपा की पूर्व विधायक शीला त्यागी कांग्रेस में शामिल हो गईं।
केसीआर की भी नजर
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चरशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने भी मध्य प्रदेश में विस्तार करना शुरू कर दिया है। हाल ही में दो प्रमुख चेहरों बुद्धसेन पटेल और व्यापम के व्हिसलब्लोअर आनंद राय को पार्टी में शामिल किया है। सूत्रों ने बताया कि बीआरएस जल्द ही महाराष्ट्र की तर्ज पर सभी छह जोन में अपना कार्यालय स्थापित करने की योजना बना रहा है।