न्यायपालिका पर राजनीति अनुचित परंपरा, कालेजियम को लेकर भाजपा कांग्रेस में ठनी

  • केंद्र की बीजेपी सरकार की मंशा कालेजियम में हो सरकारी प्रतिनिधि
  • कांग्रस से कहा-न्यायपालिका पर कब्जा करने की कोशिश
  • केजरीवाल ने बताया घातक

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। न्यायपालिका व सरकारों के बीच आपसी टकराव नई बात नहीं है। इन दोनों के टकराव में राजनीति होना भी लाजमी है। इन दोनों के टकराव में जहां विपक्षी दल सत्ता पक्ष के निणर्य को गलत बताते है वहीं सत्ता से जुड़े लोग उसे वाजिब बताने में लग जाते हैं। परंतु इन सबके बीच आमजन के साथ खासलोग भी यही चाहते हैं कि न्यायपालिका को राजनीति का अखाड़ा नहीं बनाना चाहिए। सरकारों को कोर्ट के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
गौरतलब हो कि पहले उपराष्ट्रपति धनखड़ के बयान पर उखड़ी कांग्रेस ने कानून मंत्री किरन रिजिजू के न्यायापालिका के संबंध में दिए सुझाव पर केंद्र सरकार पर न्यायपालिका पर कब्जा करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस का यह बयान कानून मंत्री के उस सुझाव के बाद आया जिसमे उन्होंने कहा था कि सरकार के प्रतिनिधियों को भी सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में शामिल किया जाना चाहिए। कांग्रेस पार्टी की ओर से यह प्रतिक्रिया तब आई है जब केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कथित तौर मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी वी चंद्रचूड़ को पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने सरकार के प्रतिनिधियों को भी सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में शामिल करने का सुझाव दिया है। रिजिजू ने यह भी कहा है कि राज्य के प्रतिनिधियों को भी हाईकोर्ट के कॉलेजियम का हिस्सा होना चाहिए। कानून मंत्री के मुताबिक, इससे न्यायाधीशों के चयन में पारदर्शिता और सार्वजनिक जवाबदेही लाने में मदद मिलेगी।
वहीं, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने इसको लेकर ट्वीट किया, उपराष्ट्रपति हमला करते हैं। कानून मंत्री हमला करते हैं। यह सब टकराव न्यायपालिका को डराने और उसके बाद पूरी तरह से कब्जा करने की योजना है। रमेश ने कहा, कॉलेजियम में सुधार की आवश्यकता है। लेकिन यह सरकारी पूरी तरह से कब्जा चाहती है। न्यायपालिका में सुधार इसके लिए (सरकार) जहर की गोली है। सीजेआई को लिखे पत्र को सही ठहराते हुए रिजिजू ने एक ट्वीट में कहा, माननीय मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र की सामग्री सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की टिप्पणियों और निर्देशों के अनुरूप है। कानून मंत्री ने कहा, सुविधाजनक राजनीति उचित नहीं है, खासकर न्यायपालिका के नाम पर। रिजिजू ने यह भी कहा कि संविधान सर्वोच्च है और कोई भी इससे ऊपर नहीं है। रिजिजू ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जवाब देते हुए कहा, मुझे उम्मीद है कि आप कोर्ट के निर्देश का सम्मान करेंगे। यह राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम (एनजेएसी) को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के निर्देश की एख सटीक अनुवर्ती कार्रवाई है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कॉलेजियम सिस्टम के एमओपी (मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर) को रिस्ट्रक्चर करने का निर्देश दिया था। केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में अपने नामितों को शामिल करने के सरकार के कदम को खतरनाक बताया था। केजरीवाल ने ट्विटर पर कहा था, यह बेहद खतरनाक है। न्यायिक नियुक्तियों में बिल्कुल भी सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। बीते साल नवंबर में रिजिजू ने कहा था कि न्यायिक नियुक्तियां करने का कॉलेजियम सिस्टम संविधान से अलग है। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी दावा किया है कि न्यायपालिका विधायिका की शक्तियों का अतिक्रमण कर रही है।

 

 

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