चुनाव से पहले BJP की वॉशिंग मशीन में धुले प्रफुल्ल पटेल, इस मामले में CBI ने दी क्लीन चिट
मुंबई। देश के अंदर चल रहे चुनावी मौसम के बीच विपक्ष लगातार सत्तारुढ़ दल भारतीय जनता पार्टी पर ये आरोप लगाता रहा है कि भाजपा वॉशिंग मशीन है। क्योंकि जो भी भाजपा में शामिल होता है और भाजपा का सदस्य या सहयोगी बन जाता है उसके सारे पाप, उस पर लगे सारे आरोप, भ्रष्टाचार के दाग सब साफ हो जाते हैं और भाजपा में जाते ही उस व्यक्ति को क्लीन चिट दे दी जाती है। सबसे बड़ी बात जो भाजपा नेता व खुद पीएम मोदी जिन्हें भ्रष्टाचारी व देश को लूटने वाला बताते रहते हैं। जब वो ही भाजपा की सदस्यता ले लेते हैं या बीजेपी के सहयोगी बन जाते हैं। तो वो भी पाक साफ और दूध के धुले हो जाते हैं। ऐसे लोगों की लिस्ट काफी लंबी है जो भाजपा में जाते ही पाक साफ हो गए और उन पर लगे सारे भ्रष्टाचार के दाग या आरोपों से वो बरी हो गए। अब इसी फेहरिस्त में एक और नाम जुड़ गया है अजित गुट वाली एनसीपी के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल का। क्योंकि प्रफुल्ल पटेल को सीबीआई से क्लीन चिट मिल गई है और अब वो भ्रष्टाचार के एक मामले में साफ सुथरे होकर निकल रहे हैं। बोले तो भाजपा के साथ जाते ही उसकी वॉशिंग मशीन में धुलकर पाक साफ हो गए हैं।
दरअसल, सीबीआई ने एयर इंडिया के लिए विमान पट्टे पर देने में कथित अनियमितताओं के मामले में क्लोजर रिपोर्ट दायर की है। जिसमें पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल सहित अन्य शामिल हैं। सबसे बड़ी बात कि इस मामले में सीबीआई का कहना है कि पर्याप्त सबूत ही नहीं हैं। पता चला है कि भ्रष्टाचार के आरोपों को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं मिलने के बाद एजेंसी ने 19 मार्च को एक अदालत में रिपोर्ट दायर की। अदालत ने मामले के जांच अधिकारी को सुनवाई की अगली तारीख 15 अप्रैल को तलब किया है। विशेष अदालत यह तय करेगी कि रिपोर्ट को स्वीकार किया जाए या एजेंसी को आगे की जांच करने का निर्देश दिया जाए। पिछले साल, पटेल ने अजीत पवार के साथ मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में विभाजन की योजना बनाई और महाराष्ट्र सरकार में शामिल हो गए। अजित गुट में शामिल होने के 8 महीने बाद ही अब प्रफुल्ल पटेल को सीबीआई ने क्लीन चिट दे दी है। यानी भाजपा के साथ जाते ही प्रफुल्ल पटेल बीजेपी की वॉशिंग मशीन में धुल गए और पाक साफ होकर निकल आए हैं। संभव है कि अगली तारीख में कोर्ट भी सीबीआई की इस रिपोर्ट को स्वीकार कर ही लेगा। इस तरह से सिर्फ आठ महीने में ही प्रफुल्ल पटेल भ्रष्टाचारी से एक पाक साफ छवि वाले व्यक्ति बन गए।
मामले की जड़ में जाएं तो पता चलता है कि मई 2017 में, सीबीआई ने प्रफुल्ल पटेल के तहत नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधिकारियों पर सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए दो मामले दर्ज किए थे। आरोप सरकार को नुकसान पहुंचाने से संबंधित थे और मामला सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दायर किया गया था। इसके बाद मई 2019 में ईडी ने एक विशेष अदालत को बताया था कि प्रफुल्ल पटेल बिचौलिए दीपक तलवार के प्रिय मित्र हैं। दीपक तलवार कथित तौर पर 2008-09 के दौरान निजी एयरलाइंस को लाभ कमाने वाले एयर इंडिया मार्गों को फैलाने में मदद की थी। मामले को शुरूआत से समझने का प्रयास करें तो यूपीए शासन काल में एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का विलय हुआ था। एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलय के बाद नेशनल एविएशन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनएसीआईएल) का गठन किया गया था। पट्टे पर विमान लिए जाने में कथित अनियमितताओं के आरोप लगे। आरोप लगे कि बड़ी संख्या में विमानों को पट्टे पर लिया गया। इसमें अनियमितताएं हुईं और जिसके कारण राष्ट्रीय विमानन कंपनी को भारी नुकसान हुआ और कुछ लोगों को फायदा हुआ। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि बड़े पैमाने पर विमानों की खरीद और कई उड़ानों, खासकर विदेशी उड़ानों में यात्रियों की संख्या कम होने होने के बाद भी नागर विमानन मंत्रालय तथा नेशनल एविएशन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनएसीआईएल) के अधिकारियों ने विमानों को पट्टे पर लेने के संबंध में फैसला किया। उस समय प्रफुल्ल पटेल नागर विमानन मंत्री थे।
इसके बाद 29 मई 2017 को मामले में दर्ज पहली प्राथमिकी में सीबीआई ने आरोपी कॉलम में नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अज्ञात अधिकारियों का उल्लेख किया और प्राथमिकी में प्रफुल्ल पटेल के नाम का उल्लेख किया। प्रफुल्ल पटेल ने आरोपों से इनकार करते हुए कहा था कि मामले में सभी निर्णय सामूहिक थे। पहली प्राथमिकी बोइंग से 111 विमानों की खरीद और अमेरिकी और भारतीय बैंकों से ऋण के माध्यम से इसके वित्तपोषण से संबंधित थी, जिसके कारण कंपनी की बैलेंस शीट पर कर्ज हो गया था। दूसरी प्राथमिकी में विमान को पट्टे पर देने में मंत्रालय के अधिकारियों और निजी कंपनियों के बीच साजिश के आरोपों को शामिल किया गया था। एजेंसी ने दूसरे मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की है। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि बड़े पैमाने पर विमान अधिग्रहण और कई उड़ानों, विशेष रूप से विदेशी उड़ानों के कारण बहुत कम भार के साथ चलने वाली एयरलाइनों के बावजूद 2006 में पटेल और भारतीय राष्ट्रीय विमानन निगम लिमिटेड (एनएसीआईएल) के तहत नागरिक उड्डयन मंत्रालय के लोक सेवकों ने यह लीजिंग की।
अब बता दें कि प्रफुल्ल पटेल के एक भ्रष्टाचारी और आरोपी होने से पाक साफ और दूध के धुले बनने की कहानी कहां से और कैसे शुरू हुई। दरअसल, पिछले साल जून में प्रफुल्ल पटेल ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार के साथ पटना में एक विपक्षी गुट की बैठक में भाग लिया था। कहा जा रहा था कि वह शरद पवार के साथ हैं। हालांकि, इसके एक ही महीने बाद वह शरद पवार से बगावत करके छह अन्य एनसीपी नेताओं के साथ अजित पवार गुट में आ गए और एनडीए का हिस्सा हो कर महाराष्ट्र सरकार में शामिल हो गए। अजित पवार खुद महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री हैं। प्रफुल्ल पटेल के भाजपा के साथ एनडीए में जाने पर उनके साथ वालों और अब विपक्ष की भूमिका में बैठे लोगों ने तब ये आरोप लगाया था कि सीबीआई जांच के चलते प्रफुल्ल पटेल बीजेपी गठबंधन में शामिल हुए हैं। उस समय तो इसे विपक्ष की भड़ास बताया जा रहा था। लेकिन अब जिस तरह से सीबीआई ने सिर्फ आठ महीनों के अंदर ही प्रफुल्ल पटेल को क्लीन चिट दे दी है। उससे विपक्ष के हमले व आरोप सही साबित होते हैं।
फिलहाल एक ओर जहां चुनाव से पहले प्रफुल्ल पटेल भाजपा की वॉशिंग मशीन में धुलकर पाकसाफ हो गए हैं। तो वहीं दूसरी ओर देश के अंदर सियासी तापमान बढ़ा हुआ है। क्योंकि देश में लोकसभा चुनावों के चलते चुनावी मौसम अपने चरम पर है। पहले चरण का मतदान आगामी 19 अप्रैल को ही होना है। इसलिए पूरे देश में चुनावी चर्चाएं जारी हैं। तो वहीं राजनीतिक दल भी लगातार अपनी-अपनी तैयारियों में जुटे हैं और अपनी-अपनी योजनाओं को अंतिम रूप देने का काम कर रहे हैं। इस बीच 48 लोकसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में भी सियासी हलचल काफी तेज है। ये हलचल तेज इसलिए भी है क्योंकि देश के अंदर दूसरे नंबर पर सबसे अधिक लोकसभा सीटों वाले राज्य महाराष्ट्र में अभी तक सत्ता पक्ष या विपक्ष कोई भी अपने सहयोगियों के साथ सीट शेयरिंग पर अपनी बात फाइनल नहीं कर पाया है। यही वजह है कि सीट बंटवारे पर अब तक औपचारिक रूप से कोई ऐलान हो ही नहीं सका है। हालांकि, इस बीच दोनों ही पक्षों की ओर से ये लगातार कहा जाता रहा है कि बात बिल्कुल फाइनल है बस औपचारिक ऐलान होना बाकी है। इस दौरान देश में जो कुछ भी हो रहा है उसे लोकसभा चुनावों से ही जोड़ कर देखा जा रहा है। चुनावी माहौल को लेकर महाराष्ट्र में भी सियासी हलचल तेज है। और सत्ता पक्ष व विपक्ष दोनों की ही ओर से अपने सहयोगियों के साथ सीट बंटवारे को लेकर जल्द ही औपचारिक ऐलान करने की बात भी कही जा रही है।
इस बीच महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन में भी सीट बंटवारे पर आपसी सहमति नहीं बन पाई है। उल्टा भाजपा के लिए ही आए दिन नई-नई परेशानियां खड़ी हो रही हैं। कुछ ऐसी ही परेशानी का सामना बीजेपी को प्रदेश की अमरावती लोकसभा सीट पर भी करना पड़ रहा है। दरअसल, बीजेपी ने अमरावती से निर्दलीय सांसद नवनीत राणा को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा है। बीजेपी के इस फैसले से शिंदे गुट के नेता और बीजेपी स्थानीय नेता नाराज हैं। इस बीच बच्चू कडू ने कहा कि वो नवनीत राणा के लिए चुनाव प्रचार नहीं करेंगे। दरअसल, अमरावती से निर्दलीय सांसद नवनीत राणा को पार्टी में शामिल करने और उन्हें चुनाव लड़ाने का बीजेपी का फैसला महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन से जुड़े कुछ नेताओं को रास नहीं आ रहा है। इसलिए उन्होंने इसे ‘राजनीतिक आत्महत्या’ करार दिया है।
यही वजह है कि अमरावती से बीजेपी ने निर्दलीय सांसद नवनीत राणा को टिकट देकर पार्टी में शामिल तो कर लिया है लेकिन नवनीत राणा के लिए लोकसभा की लड़ाई आसान नहीं रहने वाली है। नवनीत राणा को टिकट दिए जाने का विरोध बीजेपी के स्थानीय नेताओं ने किया है। प्रहार जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष और महायुति सरकार में मंत्री बच्चू कडू ने लोकसभा चुनाव 2024 में नवनीत राणा के लिए चुनाव प्रचार करने से इनकार कर दिया है। कडू ने राणा की उम्मीदवारी को ‘लोकतंत्र का पतन’ बताया और कहा कि उन्हें हराना होगा। अडसुल ने इस कदम को महायुति का ‘राजनीतिक आत्महत्या’ वाला कदम बताया और घोषणा की कि भले ही उनकी पार्टी उनका समर्थन नहीं करे, फिर भी वह राणा के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। नवनीत राणा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अमरावती से अविभाजित शिवसेना के तत्कालीन सांसद अडसुल को हराया था।
वहीं नवनीत राणा के उम्मीदवारी के बाद अमरावती से महाविकास अघाड़ी के तरफ से कांग्रेस उम्मीदवार बलवंत वानखेड़े का कहना है कि अमरावती में लड़ाई जनशक्ति बनाम धन शक्ति के बीच है। नवनीत राणा के काम से ना सिर्फ अमरावती की जनता बल्कि बीजेपी के स्थानीय नेताओं में भी नाराजगी है। एनडीए के सहयोगी दल भी नवनीत राणा से नाराज हैं। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए मैं अपनी जीत को लेकर कॉन्फिडेंट हूं। शिंदे गुट के नेता अभिजीत अडसुल भी अमरावती से नवनीत राणा को उम्मीदवार बनाए जाने से नाराज बताए जा रहे हैं।
फिलहाल जो भी हो, लेकिन लोकसभा चुनाव दिन पर दिन करीब आते जा रहे हैं। लेकिन अभी तक महाराष्ट्र में स्थिति साफ नहीं हो पाई है। और यही वजह है कि सिर्फ एक सीट पर ही नहीं बल्कि कई सीटों पर भाजपा नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन असंतोष देखने को मिल रहा है।इसी को लेकर भाजपा हाईकमान काफी परेशान है।