गुजरात इलेक्शन, अग्निपरीक्षा के लिए राहुल तैयार

  • डर कर नहीं बल्कि लड़कर चुनाव जीतने का संकल्प
  • गुजरात में राहुल गांधी ने डाला डेरा, 200 बड़े नेताओं की उतारी फौज
  • गुजरात कांग्रेस जिलाध्यक्ष सशक्तिकरण कार्यक्रम की शुरूआत से चुनावी शंखनाद

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
अहमदाबाद। गुजरात अब सिर्फ एक चुनाव नहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक युद्ध बन चुका है। और इस युद्ध के मोर्च पर राहुल गांधी गुजरात में जिलाध्यक्ष सशक्तिकरण कार्यक्रम की शुरूआत कर डट गये हैं। अंजाम क्या होगा, लड़ाई कैसी होगी? इन बातों से बेपरवाह राहुल गांधी ने अलग ही ताना-बाना बुना है। संसद के शीतकालीन सत्र में राहुल गांधी ने पीएम मोदी की आंख में आंख डाल कर कहा था कि सर इस बार गुजरात में जीत कर दिखाएंगे। बस इस जीत को हासिल करने के लिए राहुल गांधी गुजरात में महाप्रयोग करने जा रहे हैं। कांग्रेस ने 200 से अधिक नेताओं की चुनाव में ड्यूटी लगा दी है। इन नेताओं में बालासाहेब थोरात, बीके हरिप्रसाद, माणिकम टैगोर, हरीश चौधरी, गिरीश चोडणकर, मीनाक्षी नटराजन, अजय कुमार लल्लू, आर सी खूटियां, प्रणीति शिंदे, प्रकाश जोशी, सूरज हेगड़े, इमरान मसूद जैसे नाम उल्लेखनीय हैं।

आरएसएस और भाजपा में बेचैनी!

संघ ने इस बार गुजरात में ज़मीनी कार्यकर्ताओं की असामान्य मीटिंग्स शुरू की हैं। भाजपा के अंदर भी रणनीतिक बैठकों में कांग्रेस की इस आक्रामकता को लेकर चिंता जताई गई है। क्योंकि कांग्रेस अब डिफेंसिव नहीं रही वो संघ के कैडर मॉडल को उसके ही मैदान में चुनौती देने जा रही है। संघ जानता है कि यदि राहुल गुजरात में थोड़ी भी ज़मीन बना ले गए तो 2029 की योजना में दरार पड़ सकती है।

राहुल गांधी की प्लानिंग

गुजरात में बेरोजगारी का सवाल अब विकास की राजनीति के ऊपर भारी पडऩे लगा है। गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि संकट, सिंचाई की असमानता और कॉर्पोरेट मॉडल से उपजी असुरक्षा यह वह चीजें जो कांग्रेस को अपने नैरेटिव को पुख़्ता करने में मदद कर रही है। राहुल गांधी की टीम इस बार इन मुद््दों को लेकर जन संवाद और स्थानीय संवाद यात्रा का मॉडल ला रही है जो लोकलाइजेशन की दिशा में बड़ा कदम है। इस बार कांग्रेस गुजरात में सिर्फ संगठन के भरोसे चुनाव नहीं लडऩे जा रही बल्कि वह जनभावनाओं के साथ एक जज्बा पैदा कर चुनाव लडऩा चाहती है। इसके लिए उसने साफ्ट हिंदुत्तव से बाहर निकलकर सोशल जस्टिस और आर्थिक बराबरी जैसे मुददों को जन्म दिया है। सूत्रों की मानें, कांग्रेस इस बार माइक्रो-कैम्पेनिंग पर जोर दे रही है। हर जिले की भौगोलिक स्थितियों के मुताबिक अलग नैरेटिव सेट करने की प्लानिंग है। वह जातीय समूहों में गहन संवाद करना चाहती है। युवाओं और बेरोजगारों को अलग से टार्गेट करना उसकी रणीनति का अहम हिस्सा है। इन बातों के अलावा राहुल गांधी गुजराती अस्मिता को भाजपा के एकाधिकार से निकालकर साझा मंच बनाना चाहते हैं।

नये सिरे से चयन प्रक्रिया

गुजरात कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष शक्ति सिंह गोहिल ने बाकायदा हाईकमान से अपील कर जिला अध्यक्ष परियोजना के पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत गुजरात से किए जाने का प्रस्ताव रखा था। शक्ति सिंह गोहिल के मुताबिक मुझे खुशी है कि केंद्रीय नेतृत्व ने मेरी गुजारिश को मान लिया है। उल्लेखनीय है कि गुजरात के प्रभारी मुकुल वासनिक ने जिलाध्यक्षों के सशक्तिकरण पर बनी कमिटी की न सिर्फ अध्यक्षता की, बल्कि इसे लेकर अपनी रिपोर्ट व रूपरेखा भी दी थी। जिसे कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने स्वीकार कर लिया। हालांकि गुजरात में ज्यादातर जिलों में अध्यक्ष हैं, लेकिन फिर भी प्रदेश नेतृत्व नई भूमिका के लिए नई सिरे से जिलाध्यक्षों का चयन करना चाहती है।

ख्याली पुलाव नहीं जमीन की रोटी पकाने निकली है कांग्रेस

गुजरात, जहां भाजपा ने तीन दशकों से अपनी पकड़ लगभग लोहे की जकड़ की तरह मजबूत की है वहां कांग्रेस का क्रांतिकारी रुख न सिर्फ असामान्य है बल्कि संघ और भाजपा को चौंकाने वाला भी है। गुजरात की राजनीति अब व्यक्ति से ऊपर उठकर एक भावना बन चुकी है नहां लंबे समय से मोदी ब्रांड पर बीजेपी चुनाव जीत रही है। गुजरात में बीजेपी चुनाव नहीं लड़ती वो एक गौरव यात्रा निकालती है। 2002 के बाद से जिस तरह से पीएम मोदी ने खुद को विकास पुरुष और गुजरात के बेटे के रूप में पेश किया। जिस प्रकार से उन्होंने हर जातीय समीकरण वर्ग संघर्ष और राजनीतिक विरोध को कुंद कर दिया। उसके बरअक्स कांग्रेस इस बार वहां बदला हुआ गुजरात नारे के साथ चुनावी मैदान में कूदी है। जिसको देखकर लग रहा है कि कांग्रेस इस बार ख्याली पुलाव नहीं बल्कि जमीन की रोटी पकाने वाली है।

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