यूपी की राजनीति में सुलगती बगावती आग

  • कहीं आरक्षण की चिंगारी बन न जाए संकट का शोला
  • यूपी सरकार के कैबिनेट मिनिस्टर ने दागे अपनी ही सरकार पर सवाल!
  • 370 और राम मंदिर का मुद्दा हल हो सकता है तो फिर मझवार आरक्षण क्यों नहीं
  • ओम प्रकाश राजभर, निषाद पार्टी, अपना दल समेत सभी छोटे राजनीतिक दलों में है सरकार से नाराजगी

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। जो सवाल अबतक प्रमुख विपक्षी राजनीतिक दल बीजेपी सरकारों से पूछ रहे थे। अब वही सवाल सरकार में शामिल कैबिनेट मिनिस्टर उठा रहे हैं। सवाल यूपी में योगी सरकार में शामिल चर्चित मंत्री संजय निषाद ने उठाया है।
उन्होंने कहा है कि जब बीजेपी 370 से लेकर राम मंदिर निमार्ण का मुददा हल कर सकती है तो फिर वह निषाद समुदाय को अनुसूचित जाति में आरक्षण देने से पीछे क्यों हट रही है? उन्होंने सरकार से निषाद समुदाय की लंबित मांगों को चुनाव से पहले पूरी करने की अपनी मांग को दोहराया है। दरअस्ल यह संजय निषाद का सवाल नहीं बल्कि यूपी की सियासत में बदलती राजनीतिक करवट की आहट हैं जो ओबीसी ब्लास्ट की तरफ बढ़ती यूपी की राजनीति की तस्वीर दिखाने के लिए काफी है।

खुद राजभर के दल में फूट

सपा का साथ छोड़ कर सत्ता की नांव में बैठे ओम प्रकाश राजभर के राजनीतिक दल के भी हाल ठीक नहीं है। वहां भी सत्ता और पावर को लेकर आपसी खिंचातान जारी है। मीटिंग, रोड शो और सभाओं के बीच हंगामे ओर एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए वीडियो की भरमार है। वहीं संगठन के नेता शीर्ष नेतृत्व पर वंशवाद का सीधा आरोप लगा रहे हैं।

सभी छोटे दलों में बेचैनी

यूपी की राजनीति में छोटे राजनीतिक दल एक धुरी का काम कर रहे हैं। पटेल, निषाद, राजभर, पसमांदा,जाट व अन्य जातियों के राजनीतिक दलों की शक्ति ही सरकार बनवा और बिगाड़ रही है। राजनीतिक विश्लेषक ध्रुव कुमार के मुताबिक बीजेपी को अब सहयोगी दलों को सिर्फ प्रचारक नहीं बल्कि पार्टनर मानना होगा। वह कहते हैं कि ओबीसी राजनीति अब असहमति के मोड़ पर है जहाँ से वापसी मुश्किल हो रही है। उन्होंने कहा कि बीजेपी के साथ लंबे समय से सियासी पार्टनर अनुप्रिया पटले के अपना दल में भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। वहां भी इस मुददे को लेकर घमासान मचा हुआ है। वही कल ही ओमप्रकाश राजभर अपने बेटे अरूण राजभर के साथ सीएम योगी से? मिले हैं और उसी दिन संजय निषाद का यह बयान आया है जो राजनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं।

चुनाव नजदीक गठबंधन कमजोर

भाजपा की डबल इंजन सरकार क्या अब टूटते डिब्बों की ट्रेन बनती जा रही है। लगता कुछ ऐसा ही है। एक ओर जहां विपक्ष अखिलेश यादव, राहुल गांधी, पल्लवी पटेल जैसे नेताओं के साथ मिलकर पिछड़ा-दलित गठबंधन तैयार कर रहा है वहीं सत्ताधारी खेमे में सहयोगी दल खुद को भुलाया हुआ और उपेक्षित मान रहे हैं। इस पूरे घटनाक्रम का सबसे बड़ा संदेश यही है कि भाजपा को अब सिर्फ हिंदुत्व की धुन पर चुनाव जीतने की आदत को बदलना होगा। जातीय राजनीति, विशेषकर ओबीसी और दलित राजनीति, अब और जागरूक हो चुकी है। यदि बीजेपी ने आरक्षण के मुद्दे पर ठोस फैसला नहीं लिया तो 2027 में वही छोटे दल जिनके सहारे वो सत्ता तक पहुँची थी अब उसकी हार की पटकथा लिख सकते हैं।

पीडीए से डरी बीजेपी सरकार

समाजवादी पार्टी के पिछड़ा, दलित अल्पसंख्यक के राजनीतिक कॉकटेल से बीजेपी डरी हुई हैं। लोकसभा चुनाव में हार का मुह देखने के बाद पार्टी की तरफ से एक ही बात कही गयी कि पीडीए नारे को हम ठीक से टैगेल नहीं कर पाये। अब एक बार फिर यही नारा बदले हुए अंदाज में अपनी आवाज बुलंद कर रहा है। देखने वाली बात यही होगी कि नीति निर्धारक इसे किस प्रकार से हैंडल करते हैं। कही ऐसा न हो कि आरक्षण से निकली यह बगावत की चिंगारी अगर सही समय पर नहीं बुझाई गई तो यह? 2027 के चुनाव में योगी सरकार के लिए संकट का शोला बन जाए। राजनीतिक नफे-नुकसान की बात करें तो यह स्पष्ट है कि भाजपा को अब अपने सहयोगियों को भाई नहीं बराबरी के भागीदार की तरह देखना होगा वरना अगला चुनाव सिर्फ़ राम मंदिर या राष्ट्रवाद से नहीं जीता जा सकेगा। अब आरक्षण, प्रतिनिधित्व और सत्ता में हिस्सेदारी असली मुद्दा बन चुके हैं।

कम मिली है सत्ता में भागीदारी

आरक्षण अब सिर्फ एक नीतिगत विषय नहीं रह गया है यह उत्तर प्रदेश की सत्ता का सेंटर पॉइंट बनता जा रहा है। बीजेपी ने 2014 से लेकर अब तक ओबीसी वोट बैंकको संगठित किया लेकिन उसे सत्ता में हिस्सेदारी कम दी। आज वही ओबीसी वर्ग जो 52 प्रतिशत से भी ज़्यादा है अब सवाल कर रहा है कि हमें केवल वोट समझा जाएगा या सत्ता में भागीदारी भी मिलेगी।

मझवार आरक्षण जारी करो

योगी सरकार में मंत्री संजय निषाद के आवास के बाहर एक होर्डिंग लगाई गयी है जिसमें कहा गया है कि पिछड़ी से नाम खारिज करो मझवार आरक्षण जारी करो। यह कोई साधारण नाराजगी नहीं है बल्कि एक योजनाबद्ध संदेश है। जब कोई मंत्री अपनी ही सरकार के खिलाफ सार्वजनिक पोस्टर लगवाए तो संदेश साफ होता है कि भीतर कुछ ठीक नहीं चल रहा। निषाद समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जाति (एससी) में शामिल होने की मांग करता रहा है। मझवार, गोंड, खरवार जैसी उपजातियाँ पहले से एससी में हैं और निषादों की मांग है कि इन्हें भी उसमें शामिल किया जाए। 2017 और 2022 दोनों विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने इस मांग को सहमति के संकेतों के साथ टाला लेकिन कोई ठोस क़दम नहीं उठाया। अब जब निषाद पार्टी सत्ता में है तो उनके नेता संजय निषाद खुद ही सरकार की चुप्पी को निशाने पर ले रहे हैं।

Related Articles

Back to top button