इमरजेंसी के बाद संजय गाँधी को लगा था झटका

  • कांग्रेस को सत्ता से जनता ने किया बेदखल
  • कई दलों से मिलकर 1977 में बनाई सरकार
  • पांच सूत्री कार्यक्रम पर जोर

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। 1975 में इमरजेंसी खत्म हो गई थी। 1977 में देश में आम चुनावों का ऐलान कर दिया गया। कांग्रेस के खिलाफ जबर्दस्त लहर चल रही थी। कई पार्टियों और विचारधाराओं के लोगों ने मिलकर जनता पार्टी बनाई थी। इमरजेंसी की यातनाओं से पीडि़त लोग कांग्रेस को उसके किए की सजा देने के लिए आतुर थे। पिछले दो सालों तक सत्ता के अनधिकारिक केंद्र बन चुके संजय गांधी को फिर भी उम्मीद थी कि पूरा देश भले ही खिलाफ हो जाए, उनकी अमेठी के लोग उनका साथ नहीं छोड़ेंगे।
अमेठी कांग्रेस की सबसे सुरक्षित सीट थी और साल 1967 से अस्तित्व में आने के बाद कांग्रेस के टिकट पर लडऩे वाले हर शख्स ने यहां से चुना जीता था।
संजय गांधी के पांच सूत्री कार्यक्रम थे, जिनमें परिवार नियोजन में होने वाली प्रताडऩा की चर्चा आज तक की जाती है। इसके अलावा श्रमदान, वृक्षारोपण, प्रौढ़ शिक्षा और दहेज उन्मूलन जैसे कार्यक्रम भी उनकी योजना में शामिल थे। छोड़ो आराम जवानों के नारों के साथ अमेठी संजय गांधी के श्रमदान की प्रयोगशाला बना हुआ था। इसी दौरान अमेठी में नसबंदी का विरोध करने वाले लोगों पर गोलीबारी हुई। पुलिस की जांच में वहां 9 मौतों की पुष्टि हुई। इस छोटे से समयांतराल में संजय गांधी की छवि अमेठी में किसी विलेन की तरह की बन गई थी।

जनता से हाथ जोड़े मिले

साल 1977 में फिर से चुनावों की घोषणा हुई। जो संजय गांधी इमरजेंसी में हुकुम चला रहे थे, अब जनता के सामने हाथ जोडक़र वोट मांग रहे थे। सिर्फ वही नहीं, कांग्रेस की पूरी मशीनरी अपने नेता को चुनाव जितवाने के काम में लग गई थी। बाहुबली पहुंचे, प्रशासन कंट्रोल में था। संजय गांधी के पक्ष में प्रचार से पूरी इलाका पटा पड़ा था। कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता अमेठी पहुंचने लगे। संजय गाँधी के समर्थन के लिए और विपक्ष के प्रचार को कमजोर करने के लिए दारा सिंह को बुलाया गया।

संजय गांधी के खिलाफ लड़े थे रवींद्र प्रताप

दारा सिंह की जनसभा में ऐसा विरोध हुआ कि गुस्से में खुद उन्होंने किसी सिपाही की लाठी उठा ली थी। संजय गांधी के प्रति सहानुभूति बटोरने के लिए कई जतन किए गए। इन सारे यत्नों के बाद भी संजय गांधी के खिलाफ लोगों के मन में जो गुस्सा था वो शायद कम न हो पाया। कांग्रेस के इस कद्दावर नेता और प्रधानमंत्री के बेटे के खिलाफ खड़े थे, आपातकाल के विरोधी सेनानी रवींद्र प्रताप सिंह। वह जनसंघ के तेजतर्रार नेता थे और जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे।

मतगणना केंद्र से निराश निकले संजय

हालांकि, आपातकाल के बाद के इस चुनाव में किसी पार्टी से कोई मतलब नहीं था। लोगों ने एकमत होकर कांग्रेस विरोधी वोट डाले। संजय गांधी को सिर्फ 1 लाख 503 वोट मिले। कहा जाता है कि मतदान के दौरान बूथलूट की भी घटनाएं प्रकाश में आई थीं। संजय गांधी के प्रतिद्वंदी जनता पार्टी के उम्मीदवार रवींद्र प्रताप सिंह को 1 लाख 76 हजार वोट मिले। बताते हैं कि मतगणना के बीच से ही सुलतानपुर कलेक्ट्रेट से जब संजय गांधी बाहर निकले, उनके चेहरे पर हार की निराशा साफ झलक रही थी। अमेठी में ऐसा पहली बार हो रहा था, जब कांग्रेस के टिकट पर किसी उम्मीदवार की हार हो गई थी।

 

 

 

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