सत्यमेव जयते ‘सुप्रीम’ सुनवाई से पहले बैकफुट पर आई सरकार, 4PM की पाबंदी हटाई

4PM की पाबंदी हटाई

  • संजय शर्मा ने डिजिटल आपातकाल में योद्धा बन लिया मोर्चा
  • 4पीएम ने पहले ही कहा था कि हम होंगे कामयाब
  • लोकतंत्र व अभिव्यक्ति की आजादी की जीत

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। यह सत्य की जीत है, संघर्ष की जीत है और जिंदा रहने के साथ जिंदा दिखने की जीत है। जी हां सुप्रीम कोर्ट में सरकार को 4पीएम पर बैन लगाने का कारण बताना था और सिर्फ दो दिन का समय शेष रह गया था। सरकार को जब कुछ समझ में नही आया तो वह बैकफुट पर आई और बैन को हटा लिया गया। 4पीएम आजाद है, 4पीएम एक बार फिर जनता के हक में आवाज बुंलद करने के लिए तैयार है। जब 4पीएम के एडिटर संजय शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया तो मामला महज़ एक यूटयूब चैनल की स्वतंत्रता का नहीं था। बल्कि यह पूरे देश की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतीक बन गया। देश ही नहीं विदेशों से 4पीएम के हक में आवाजे बुलंद होने लगी। सोशल मीडिया प्लेटफार्म सरकारी फैसले के खिलाफ नारों से भर गये।

जीता 4पीएम, झुकी सरकार

यह जीत सिर्फ 4पीएम यूटयूब चैनल की नहीं है बल्कि हर उस व्यक्ति की है जो सच बोलने का साहस रखता है। यह जीत पत्रकारिता की है, यह जीत संवैधानिक अधिकारों की है, यह जीत उन नागरिकों की है जो डिजिटल युग में भी स्वतंत्र विचारों की मशाल को जलाए रखना चाहते हैं।

खुल गयी राहें, औरों को मिलेगी प्रेरणा

यह मामला सिर्फ 4पीएम तक सीमित नहीं है। हाल के वर्षों में भारत में सोशल मीडिया पर सरकार की सेंसरशिप तेजी से बढ़ी है। ट्विटर अकाउंट्स ब्लॉक किए जाते हैं, यूट्यूब वीडियोज हटाए जाते हैं, और स्वतंत्र मीडिया पोर्टल्स को विज्ञापन और सर्वर सपोर्ट से वंचित किया जाता है। यह नया डिजिटल आपातकाल है जिसमें सत्ता सिर्फ विरोध नहीं दबा रही बल्कि वैचारिक बहस और लोकतांत्रिक विमर्श को भी खत्म करना चाहती है। 4पीएम की आजादी दूसरे चैनल्स के लिए नजीर बनेगी और भविष्य में वह भी दबेगें नहीं बल्कि संघर्ष कर आजादी हासिल करेंगे।

संजय शर्मा ने दिखा दिया, सत्य कभी पराजित नहीं होता

संजय शर्मा ने दिखा दिया कि जब एक व्यक्ति सत्य के साथ खड़ा होता है, तो सत्ता कितनी भी बड़ी क्यों न हो, झुकना ही पड़ता है। उनका संघर्ष उस हर युवा पत्रकार के लिए प्रेरणा है जो सत्ता की मक्कारियों के बीच सच्चाई की खोज में हैं। उन्होंने ये भी बता दिया कि पत्रकारिता सिर्फ टीआरपी या प्रोपेगैंडा नहीं, बल्कि समाज का विवेक है।

संजय शर्मा सच्ची पत्रकारिता की मिसाल

लखनऊ बेस्ड डिजिटल न्यूज चैनल 4पीएम और इसके संस्थापक संजय शर्मा ने लंबे समय से सत्ता के अन्याय, भ्रष्टाचार और जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई है। यह न्यूज चैनल सत्ता के गलियारों में खटकने लगा क्योंकि वह उन मुद्दों को उठा रहा था जिन्हें मुख्यधारा की मीडिया अक्सर नजऱअंदाज़ कर देती है। संजय शर्मा ने न केवल पत्रकार के रूप में अपने कर्तव्यों को निभाया, बल्कि जब सरकार ने अचानक तकनीकी आधार पर वेबसाइट को ब्लॉक कर दिया तब वे एक योद्धा बनकर सामने आए। उन्होंने यह संघर्ष सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि उन तमाम आवाज़ों के लिए लड़ा जो सत्ता की चुप्पी में दबा दी जाती हैं।

4पीएम के बैन को पूरे देश ने बताया था गलत

देश के सबसे लोकप्रिय यूट्यूब चैनल 4 पीएम के बैन के दूसरे दिन भी उसके समर्थन में पूरे देश से आम लोगों के साथ खास ने भी आवाज बुलंद की। सपा, राजद, कांग्रेस, शिवसेना यूबीटी जैसे राजनीतिक दलों के साथ कई वरिष्ठïïजनों, शिक्षाविदों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चैनल पर बैन को गलत बताया । पत्रकार जगत के पुण्य प्रसून बाजपेई, रवीश कुमार व अजित अंजुम ने भी सरकार की कार्रवाई पर सवाल उठाया है। बता देंटीवी चैनलों और बड़े अखबारों पर पर बड़े कॉरपोरेट और सरकारी विज्ञापनों का प्रभाव होता है। यह लोग वही दिखाते और छापते हैं जिनको सरकार चाहती है। जबकि यूट्यूब जैसे डिजिटल मंच अपेक्षाकृत स्वतंत्र और जनोन्मुख होते हैं। ये मंच ऐसे सवाल उठाते हैं जो मुख्यधारा मीडिया अक्सर टाल देता है। दलितों पर अत्याचार, बेरोजगारी और महँगाई, सरकारी योजनाओं की असफलता, पुलिस और प्रशासन की लापरवाही इन विषयों पर बोलना सत्ता को असहज करता है इसलिए डिजिटल मंचों को राष्ट्रविरोधी ठप्पा देकर बंद किया जा रहा है।

क्या सवाल पूछना गुनाह है

सरकार ने दावा किया कि यह 4पीएम पर कार्रवाई तकनीकी कारणों से हुई है लेकिन यह दावा उतना ही खोखला साबित हुआ जितना किसी तानाशाही के दौर में राष्ट्रीय सुरक्षा का बहाना। न तो 4पीएम को कोई ठोस नोटिस दिया गया न ही किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन हुआ। यह सीधे तौर पर आईटी अधिनियम की धारा 69ए का दुरुपयोग था जो सरकार को वेबसाइट ब्लॉक करने की शक्ति देता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या कोई लोकतंत्र इस तरह बिना जवाबदेही के मीडिया प्लेटफॉर्म को बंद कर सकता है? क्या पत्रकारिता के दायरे में सरकार से सवाल पूछना गुनाह है?

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