शाह ने किया बड़ा इशारा, महाराष्ट्र में चुनाव से पहले बड़ा खेल होगा!

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है... 20 नवंबर को एक चरण में वोटिंग होगी.... और चुनाव परिणाम 23 को आएंगे....

4पीएम न्यूज नेटवर्कः महाराष्ट्र में मतदान की तारीखों का ऐलान होते ही सियासत और तेज हो गई है…. पिछले पांच वर्षों में महाराष्ट्र की राजनीति में अप्रत्याशित उथल-पुथल हुई है…. राज्य की जनता ने एक के बाद एक कई सियासी झटके देखे हैं…. लेकिन क्या जनता इन झटकों को पचा पाई, यह आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा…. बता दें कि मंगलवार को चुनावों की घोषणा के साथ राज्य में छह प्रमुख राजनीतिक दलों की परीक्षा सोलह अक्टूबर से शुरू होगी…. महाराष्ट्र में दो सौ अट्ठासी सीटों पर विधानसभा चुनाव हो रहे हैं…. दो हजार उन्नीस से दो हजार चौबीस तक पांच साल का कार्यकाल महाराष्ट्र की राजनीति में अप्रत्याशित घटनाओं का दौर रहा है…. वहीं चुनाव का ऐलान होते ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को संबोधित करते हुए…. एक ऐसा बयान दिया जिसको लेकर अटकलों का बाजार गर्म है….. एकनाथ शिंदे दोबारा सीएम पद के चेहरा होंगे या नहीं…. इस पर प्रश्नचिह्न लग गया है…. दूसरी तरफ शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के नेता संजय राउत ने पूरे मसले पर चुटकी ली है…. आपको बता दें कि अमित शाह ने सीएम एकनाथ शिंदे को संबोधित करते हुए कहा कि हमने हार मान ली, आपको प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया…. अब आपको जरूरी कदम उठाना चाहिए…. अमित शाह के इसी बयान पर महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में खूब चर्चा हो रही है….

आपको बता दें कि केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने ये भी कहा कि आपके लिए हमारे लोगों को बलिदान देना पड़ा….. अमित शाह का ये बयान महायुति यानी बीजेपी, शिवसेना शिंदे गुट और एनसीपी अजित पवार गुट के उम्मीदवारों की सूची आने से पहले सामने आया…. पिछले कुछ दिनों से महायुति गठबंधन में मुख्यमंत्री चेहरा को लेकर घमासान भी है…. केंद्रीय मंत्री अमित शाह महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को देखते हुए अपने गठबंधन के नेताओं के साथ लगातार अहम बैठकें कर रहे हैं…. जानकारी के मुताबिक इसी बैठक के दौरान अमित शाह ने यह बयान दिया है…. वहीं अमित शाह के इस बयान के आने के बाद शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के नेता संजय राउत ने तंज कसा है…. और उन्होंने कहा कि बीजेपी ने कोई बलिदान नहीं दिया है…. अमित शाह महाराष्ट्र से बदला लेना चाहते थे…. उनका मकसद शिवसेना को तोड़ना था… यह महाराष्ट्र के स्वाभिमान पर प्रहार था…. संजय राउत ने हमला बोला कि बीजेपी नेताओं को त्याग…. और बलिदान शब्द पसंद नहीं…. ऐसा कहना उन शब्दों का अपमान है…. वे केवल शरद पवार, उद्धव ठाकरे की पार्टियों को तोड़ना चाहते थे…. इसे त्याग नहीं, स्वार्थ कहते हैं….

वहीं महायुति के सीट फॉर्मूला के साथ-साथ उम्मीदवारों की सूची की घोषणा जल्द होने की संभावना है….. जिसको लेकर सवाल उठ रहे हैं क्या अमित शाह का बयान सीएम एकनाथ शिंदे की शिवसेना पर सीट फॉर्मूला को लेकर दबाव बनाने की रणनीति है….. सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या एकनाथ शिंदे को दोबारा मुख्यमंत्री पद दिया जाएगा या फिर मुख्यमंत्री पद के लिए कोई और चेहरा होगा…. फिलहाल अभी तक की जानकारी के मुताबिक महायुति गठबंधन में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी एक सौ पचास से एक सौ साठ सीटों पर चुनाव लड़ेगी….. शिवसेना शिंदे गुट को सत्तर सीटें मिलने की संभावना है…. जबकि अजित पवार की एनसीपी को पचास सीटें मिलने का अनुमान है…. हालांकि इस आंकड़े पर आधिकारिक मुहर लगना बाकी है….

आपको बता दें कि वर्तमान समय में महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना शिंदे गुट के पास चालीस विधायक हैं….. बीजेपी के पास एक सौ तीन विधायक और एनसीपी के अजित पवार गुट के पास चालीस विधायक हैं…. दूसरी ओर, महाविकास अघाड़ी में एनसीपी के शरद पवार गुट के पास तेरह विधायक, शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट के साथ पंद्रह विधायक और कांग्रेस के तैंतालीस विधायक हैं…. इसके अलावा राज्य में बहुजन विकास अघाड़ी के तीन तीन, समाजवादी पार्टी के दो, ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिम के दो, प्रहार जनशक्ति दो, एमएनएस के एक, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) एक, शेकांप एक, स्वाभिमानी पार्टी एक, राष्ट्रीय समाज पार्टी एक, महाराष्ट्र जनसुराज्य शक्ति पार्टी के एक, क्रांतिकारी शेतकारी पार्टी के एक और निर्दलीय तेरह विधायक हैं…. बता दें कि दो हजार उन्नीस का विधानसभा चुनाव शिवसेना…. और बीजेपी के गठबंधन ने मिलकर लड़ा था…. दूसरी ओर कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन ने भी साथ मिलकर चुनाव लड़ा था….

बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन को बहुमत तो मिल गया…. लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर गठबंधन टूट गया… इसके बाद लगातार कुछ दिनों तक महाराष्ट्र में राजनीतिक प्रयोग शुरू हो गए…. इन्हीं दिनों में से एक है तेइस नवंबर दो हजार उन्नीस…. उस दिन सुबह-सुबह बीजेपी ने अजित पवार के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिश की….. तेइस नवंबर दो हजार उन्नीस की सुबह देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार राजभवन पहुंचे…. और उन्होंने क्रमशः मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली…. हालांकि अगले कुछ घंटों में ही यह स्पष्ट हो गया कि प्रयोग विफल हो गया है…. क्योंकि एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और पार्टी विधायकों ने बाद में स्पष्ट किया कि वे बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे…. इसके बाद शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी साथ आए और महाविकास अघाड़ी का गठन किया…. इन दलों ने एक ‘न्यूनतम साझा कार्यक्रम’ बनाया…. और अट्टाइस नवंबर दो हजार उन्नीस को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली…. इसके बाद करीब ढाई साल तक राज्य में महाविकास अघाड़ी की सरकार रही….

इस बीच मार्च दो हजार बीस से दो हजार बाईस तक पूरी दुनिया में कोरोना संकट रहा…. उस समय तत्कालीन ठाकरे सरकार के प्रशासनिक कौशल की परीक्षा हुई थी…. वहीं कोविड की लहर कम हुई और एक बार फिर महाराष्ट्र में तीसरा राजनीतिक प्रयोग किया गया… बीस जून दो हजार बाइस को, एकनाथ शिंदे, जो महाविकास अघाड़ी में शहरी विकास मंत्री थे….. कुछ शिवसेना विधायकों के साथ ग़ायब हो गए और सीधे सूरत के लिए रवाना हो गए…. जाहिर तौर पर शिवसेना के चालीस विधायकों और लगभग दस निर्दलीय विधायकों ने एकनाथ शिंदे का समर्थन किया था…. इसी बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया….. और तीस जून दो हजार बाईस को राज्य में फिर से शिवसेना और बीजेपी की गठबंधन सरकार बनी… और एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली….वहीं इस तारीख तक राज्य में तीन सरकारें बन चुकी थी…. लेकिन सियासी ‘सर्कस’ यहीं नहीं रुका…. बल्कि इसके बाद शिवसेना में बागी गुट ने पार्टी के चुनाव चिह्न पर दावा ठोक दिया…. चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे की शिवसेना को पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह दे दिया…. वहीं दूसरी ओर, विधायकों की अयोग्यता का मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट, विधानसभा अध्यक्ष और फिर सुप्रीम कोर्ट में लंबित है…..

वहीं दो जुलाई दो हजार तेइस को एनसीपी नेता और शरद पवार के भतीजे अजित पवार पार्टी के नौ सदस्यों के साथ राजभवन पहुंचे…. और गठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली…. इसके बाद अजित पवार ने भी एकनाथ शिंदे के नक्शेकदम पर चलते हुए एनसीपी पार्टी पर दावा किया…. और घोषणा की कि वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं…. चुनाव आयोग ने शिवसेना की तरह अजित पवार को भी पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न दे दिया…. वहीं विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद से सियासत गरमा गई है… और इस बार भाजपी शिंदे की कुर्सी पर हाथ साफ करने वाली है…. ऐसा अमित शाह के बयान से साफ अंदाजा लगाया जा रहा है… आपको बता दें कि राज्यों में लगातार पार्टी और नेताओं को तोड़ने वाली बीजेपी कभी भी किसी की मददगार नहीं हो सकती है… बीजेपी अपनी स्वार्थ सिद्धि और चुनाव जीतने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकती है…

बता दें कि पिछले दो सालों में जहां तमाम राजनीतिक हलचलें चल रही थीं…. वहीं महाराष्ट्र में आरक्षण की बहस भी तेज हो गई है…. मराठवाड़ा से शुरू हुआ मराठा आरक्षण आंदोलन एक साल के भीतर ही राज्यव्यापी हो गया… और इतना ही नहीं इससे राजनीति में भी भूचाल आ गया…. मराठों के लिए ओबीसी के तहत आरक्षण देने की मांग ओबीसी समुदायों को नाराज कर रही है…. सरकार ने मराठा समुदाय के लिए दस फीसदी आरक्षण का ऐलान किया है… लेकिन कुनबी प्रमाणपत्र के लिए विवाद बना हुआ है…. ओबीसी नेताओं और समाज ने इस मांग का विरोध किया है…. वहीं लक्ष्मण हाके, मंत्री छगन भुजबल समेत कई ओबीसी नेताओं के आक्रामक रुख को देखते हुए मराठा समुदाय के लोगों को अलग से आरक्षण का ऐलान किया गया…. जानकारी के अनुसार ओबीसी समुदाय को लग रहा था कि कहीं सरकार उनके आरक्षण में मराठों को हिस्सेदारी न दे दे… लेकिन सरकार ने मराठों के लिए अलग से आरक्षण का ऐलान किया…. इसका असर हाल ही में हुए लोकसभा के नतीजों में भी देखने को मिला…

आपको बता दें कि मराठा और ओबीसी समुदायों के साथ-साथ धनगर समुदाय को आदिवासी दर्जा देकर आरक्षण देने की मांग एक बार फिर उठी है…. दूसरी ओर आदिवासी समुदाय ने धनगर समुदाय को एसटी वर्ग से आरक्षण देने का विरोध किया…. इस मुद्दे पर डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल समेत तेरह विधायकों ने मंत्रालय की तीसरी मंजिल से छलांग लगा दी थी…. दूसरी ओर मराठा आरक्षण आंदोलन को नेतृत्व देने वाले मनोज जरांगे पाटिल ने भी अपना राजनीतिक रुख़ साफ किया है…. इसका असर कई विधानसभा क्षेत्रों में दिख सकता है…. वहीं लोकसभा चुनाव में महायुति को जितनी सफलता की उम्मीद थी उतनी नहीं मिली…. इसके बाद विधानसभा में महायुति आक्रामक नजर आई…. पिछले कुछ दिनों में सरकार की ओर से कई बड़े ऐलान किए गए…. चाहे वह लड़की बहिन योजना हो या युवाओं को भत्ता देने की योजना…. कई माध्यमों से लोगों के बैंक खातों में पैसा आएगा…. इससे महाविकास अघाड़ी के सामने चुनौती भी बढ़ गई है…. लेकिन अब देखना यह है कि लोग पांच साल के राजनीतिक भूचाल, विचारधारा, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सूखा और राजनीति में नैतिकता के आधार पर वोट देंगे या फिर आरक्षण, जातीय समीकरण और नये गठबंधन को स्वीकार करेंगे….

 

 

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