शारदायै नमस्तुभ्यं, मम ह्रदय प्रवेशिनी…

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
हिन्दू धर्म में ऋ तुओं के आधार पर भी त्योहार मनाए जाते हैं। इन्हीं में से एक बसंत पंचमी पर्व भी है। शास्त्रों में बताया गया है कि माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि से बसंत ऋ तू का शुभारंभ हो जाता है। इस विशेष दिन पर देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग प्रकार से इस पर्व को मनाया जाता है। मां सरस्वती की आराधना का त्यौहार कहा जाने वाला बसंत पंचमी का त्यौहार, पूरे भारत वर्ष में यह बसंत के मौसम की शुरुआत और देवी सरस्वती के जन्म के दिन के रूप में मनाया जाता है। मां सरस्वती जो ज्ञान, शिक्षा और बुद्धि की देवी मानी जाती हैं, इस दिन इनकी पूजा करके आशीर्वाद मांगा जाता है। यह दिन होली के रंगीन त्यौहार के आगमन की भी घोषणा करता है। इस दिन मां सरस्वती के साथ-साथ सभी ग्रंथो, पुस्तकों और संगीत यंत्रों की भी पूजा की जाती हैं। बसंत पंचमी का त्यौहार केवल भारत में हिंदुओं द्वारा ही नहीं बल्कि नेपाल और बाली में भी मनाया जाता है।

मुहूर्त और तिथि

हिन्दू पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती हैं। इस दिन मौसम के राजा बसंत का आगमन होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार बसंत पंचमी ज्यादातर फरवरी माह में आती हैं। बसंत पंचमी का यह त्यौहार प्रकृति के बदलाव का प्रतीक हैं। प्रकृति के सभी प्राकृतिक बदलाव इस बसंत मौसम के आने के बाद शुरू होते हैं। 14 फरवरी, 2024, गुरुवार बसंत पंचमी तिथि, माघ माह, शुक्ल पक्ष पंचमी, विक्रम संवत् 2075, सुबह 07:00:50 बजे से दोपहर 12:35:33 तक। कुल समय 5 घंटे 34 मिनिट।

एतिहासिक कथा

बसंत पंचमी के दिन के लिए बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार ब्रह्मा ने जब ब्रह्मांड की रचना की थी तब सम्पूर्ण धरती पर चारों तरफ मौन था। ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल की एक बूंद झिडक़ कर मां सरस्वती की रचना की। इस तरह सरस्वती जी ब्रह्माजी की पुत्री कहलायी। मां सरस्वती के जन्म के साथ ही उनकी भुजाओं में वीणा, पुस्तक और आभूषण थे। जब माता सरस्वती से वीणा वादन का आग्रह किया गया। जैसे ही उन्होंने वीणा वादन शुरू किया। वीणा से उत्पन्न स्वर से पृथ्वी पर कम्पन्न हुआ और पृथ्वी का सूनापन समाप्त हुआ। इन स्वरों की वजह से ही मनुष्यों को वाणी की प्राप्ति हुई। पृथ्वी के चेतना के लिए आवश्यक तत्वों की उत्पत्ति मां सरस्वती ने ही की थी। एक और प्रचलित कथा के अनुसार जब प्रभु श्रीराम ने सीता माता की खोज में जब वह दंडकारण्य में पहुंचे थे। तब उन्होंने बसंत पंचमी के दिन ही शबरी के बेर खाकर समाज में एकात्मता का सन्देश दिया।

ऐसे करें मां सरस्वती को प्रसन्न

बसंत पमंची पर पीले, बसंती या सफेद वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पूजा की शुरुआत करें। मां सरस्वती को पीला वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित करें और रोली, केसर, हल्दी, चावल, पीले फूल, पीली मिठाई, मिश्री, दही, हलवा आदि प्रसाद के रूप में उनके पास रखें। देवी को श्वेत चंदन और पीले व सफेद पुष्प दाएं हाथ से अर्पण करें। केसर मिश्रित खीर अर्पित करना सर्वोत्तम होगा। हल्दी की माला से मां सरस्वती के मूल मंत्र? ऐं सरस्वत्यै नम: का जाप करें। शिक्षा की बाधा का योग है तो इस दिन विशेष पूजा करके उसको ठीक किया जा सकता है।

क्यों होती है मां सरस्वती की पूजा

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, ज्ञान देवी मां सरस्वती शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ही ब्रह्माजी के मुख से प्रकट हुई थीं। इसलिए बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन पूरे विधि विधान से मां सरस्वती की पूजा करने से वो प्रसन्न होती हैं और भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

बसंत पंचमी का वैज्ञानिक कारण

बसंत पंचमी से ठंड की अनुभूति कम होने लगती है और मौसम में संतुलन बना रहता है। इसके साथ बसंत पंचमी पर्व के दिन पीले रंग का प्रयोग सर्वाधिक किया जाता है। हिन्दू धर्म में इस रंग का महत्व बहुत अधिक है, किन्तु वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इस रंग को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस रंग को डिप्रेशन दूर करने में सबसे कारगर माना जाता है।

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