…तो केंद्र का एजेंडा चलाते हैं महामहिम!

गहराता जा रहा राज्यपालों व सरकारों में विवाद

  • ताजा मामला : तमिलनाडु में राज्यपाल आरएन रवि व दिल्ली में एलजी वीके सक्सेना से नाराज हैं सीएम

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
तमिलनाडु। तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि व स्टालिन सरकार के बीच राज्य के नाम को लेकर विवाद गहरा गया है। राज्य व राज्यपाल के बीच ये सबसे ताजा मामला है। ऐसा नहीं है कि ये विवाद पहली बार हो रहा है इससे पहले भी कई राज्यों में ये हो चुका है। ज्यादातर ये विवाद केंद्र में दूसरी पार्टी की सरकार व राज्य में दूसरे दल की सरकार की वजह से पैदा होते हैं। गैर-बीजेपी शासित राज्यों में सरकारों और राज्यपालों के बीच टकराव की स्थिति कोई नई बात नहीं है, बहुत समय से एक दूसरे के कामकाज में रोड़े अटकाए जाने का आरोप लगाया जाता रहा है।
तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, दिल्ली और पश्चिम बंगाल, इन सभी राज्यों में गैर-बीजेपी सरकार है और एक बात की समानता है, वो बात है राज्य सरकार का राज्यपाल के साथ विवाद। बीते कुछ समय से पांचों राज्यों में राज्यपाल बनाम राज्य सरकार देखने को मिल रहा है, सभी राज्यों में सरकारों और राज्यपालों के बीच बयानबाजी चलती रहती है और एक दूसरे के कामकाज में रोड़े अटकाए जाने का आरोप लगाया जाता है, हाल ही में गैर-भाजपा शासित तीन दक्षिणी राज्यों में राज्यपालों और सत्तारूढ़ सरकार के बीच टकराव काफी बढ़ गया। तमिलनाडु ने आरएन रवि को वापस बुलाने की मांग की, केरल ने राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति पद पर राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान की जगह शिक्षाविदों को नियुक्त करने के लिए अध्यादेश मार्ग प्रस्तावित किया और तमिलिसाई सुंदरराजन ने संदेह जताया कि तेलंगाना में उनका फोन टैप किया जा रहा है।
तमिलनाडु में राजनीति उफान पर है। समस्या राज्यपाल के अभिभाषण को लेकर है। उनके अभिभाषण पर इतना हंगामा हुआ कि राज्यपाल को भाषण अधूरा छोडक़र ही विधानसभा से जाना पड़ा। सवाल यह उठता है कि राज्यपाल ने ऐसा क्या कह दिया जो हंगामा इतना बढ़ गया। दरअसल, राज्यपाल ने तमिलनाडु राज्य का नाम ही बदलने को कह दिया। उन्होंने कहा इस राज्य का नाम तमिलनाडु की बजाय तमिझगम होना चाहिए। सत्तारूढ़ दल और कांग्रेस ने इस पर आपत्ति की। कहा कि राज्यपाल यहाँ भाजपा का एजेंडा चलाना चाहते हैं। ऐसा हम होने नहीं देंगे। तमिलनाडु में जब राज्यपाल का अभिभाषण चल रहा था, तभी सत्ताधारी दल के विधायक नारेबाजी करते हुए आसन के समीप पहुंच गए। तमिलनाडु में जब राज्यपाल का अभिभाषण चल रहा था, तभी सत्ताधारी दल के विधायक नारेबाजी करते हुए आसन के समीप पहुंच गए। इसके बाद तो राज्यपाल पर आरोपों की झड़ी लग गई। राजनीतिक दलों ने कहा कि राजभवन से भाजपा का एजेंडा चलाया जा रहा है। राज्यपाल कहते हैं कि पिछले पचास सालों में द्रविड दलों ने यहाँ के लोगों के साथ धोखा किया है। हम राज्यपाल से कहना चाहते हैं कि वे भाजपा के दूसरे प्रदेशाध्यक्ष के रूप में काम करना बंद कर दें। वैसे भी यह नगालैंड नहीं, प्राउड तमिलनाडु है। राज्यपाल आरएन रवि के पास नगालैंड का भी प्रभार है। इसलिए इन दलों ने कहा कि नगालैंड वाली चतुराई यहाँ नहीं चलेगी। दरअसल, राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर जब तक राजनीतिक नियुक्तियां या रिटायर्ड राजनेताओं को पदस्थ किया जाता रहेगा, झगड़े इसी तरह होते रहेंगे और महामहिम की इसी तरह छीछालेदर होती रहेगी। पहले इस पद पर किसी विषय विशेषज्ञ या वरिष्ठ विद्वान की नियुक्ति होती थी, लेकिन अब केंद्र में जिसकी सरकार हो, प्राय: उसी दल के किसी बुजुर्ग व्यक्ति को नियुक्त किया जाने लगा है, समस्या इसीलिए बढ़ गई है। राज्यपाल पद पर पहले कांग्रेस ने भी खूब राजनीतिक नियुक्तियाँ कीं, लेकिन तब समस्या इसलिए नहीं आती थी क्योंकि ज़्यादातर राज्यों में कांग्रेस की ही सरकार होती थी और उसी के राज्यपाल। अब ऐसा नहीं है। कई राज्यों में सरकार दूसरे दलों की है और राज्यपालों की नियुक्यिाँ दूसरे दलों ने की हैं। समस्या इसीलिए है। सरकार और राज्यपाल की विचारधारा समान नहीं होती, इसलिए विवाद होते रहते हैं। विवाद इसलिए भी होते हैं क्योंकि राज्यपाल केंद्र सरकार की विचारधारा चलाते हैं और दूसरे दल की राज्य सरकार इस विचारधारा से सहमत नहीं होती। तो फिर इलाज क्या है? इलाज एक ही है- राज्यपाल जैसे पदों पर निष्पक्ष व्यक्ति की नियुक्ति। जैसे राष्ट्रपति पद पर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की नियुक्ति की गई थी। ऐसा नहीं है कि देश में निष्पक्ष लोगों की कमी हो। मिलते हैं, लेकिन इसके लिए इच्छाशक्ति होनी चाहिए, जिसकी फ़िलहाल तो कमी साफ- साफ दिखाई दे रही है।

गवर्नर के अधिकार

भारतीय संविधान 1949 में अनुच्छेद 157 कहता है कि कोई भी व्यक्ति राज्यपाल के रूप में नियुक्ति के लिए तब तक पात्र नहीं होगा जब तक कि वह भारत का नागरिक न हो और पैंतीस वर्ष की आयु पूरी न कर चुका हो। राज्यपाल राज्य का मुख्य कार्यकारी प्रमुख भी होता है, जो संबंधित राज्य के मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार अपना कार्य करता है। इसके अलावा, राज्यपाल की दोहरी भूमिका होती है, क्योंकि वह केंद्र सरकार के एजेंट के रूप में भी कार्य करता है। अनुच्छेद 153 के तहत प्रत्येक राज्य का राज्यपाल होगा। राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी और इसका प्रयोग वह सीधे या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से करेगा। राज्य के राज्यपाल के पास कार्यकारी, विधायी, वित्तीय और न्यायिक शक्तियां होंगी, लेकिन उसके पास राजनयिक, सैन्य या आपातकालीन शक्तियां नहीं हैं जो भारत के राष्ट्रपति के पास हैं।

तेलंगान

तेलंगाना की राज्यपाल ने तेलंगाना राष्टï्र समिति शासित तेलंगाना में अलोकतांत्रिक स्थिति का दावा किया था। तमिलिसाई सुंदरराजन ने संदेह जताया कि तेलंगाना में उनका फोन टैप किया जा रहा थे, उनके इस बयान पर इस पर विवाद गहराता गया था। तेलंगाना सीपीआई के वरिष्ठ नेता के नारायण ने तो यहां तक कह दिया कि हमारे देश के लिए गवर्नर सिस्टम उपयोगी ही नहीं और सभी पीएम मोदी से आह्वान किया कि सभी राज्यपालों को तुरंत हटा देना चाहिए।

पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच संबंध कुछ अच्छे नहीं थे। दोनों ही एक दूसरे की सार्वजनिक रूप से आलोचना कर चुके हैं, ये विवाद शुरू हुआ कोरोना के कारण लॉकडाउन के बाद, जब राज्यपाल ने नियमित रूप से राज्य प्रशासन और पुलिस को लॉकडाउन को प्रभावी ढंग से लागू करने में उनकी विफलताओं के लिए खींच लिया। 15 अप्रैल, 2020 को उन्होंने ट्वीट किया, कोरोनावायरस को दूर करने के लिए लॉकडाउन प्रोटोकॉल को पूरी तरह से लागू करना होगा। इसके बाद, सितंबर 2020 में विवाद ने एक नया मोड़ ले लिया, क्योंकि सीएम ने राज्यपाल को नौ पन्नों का एक पत्र लिखा, जिसमें तत्कालीन पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) वीरेंद्र द्वारा बंगाल में कानून और व्यवस्था को संभालने पर सवाल उठाने के लिए उनकी आलोचना की गई थी। धनखड़ ने राज्य के पुलिस प्रमुख पर कानून-व्यवस्था की स्थिति के बारे में उनके सवालों का दो-पंक्ति जवाब भेजने के लिए फटकार लगाई और उन्हें तलब किया।

केरल

केरल में सत्तारूढ़ एलडीएफ का पूर्व में राज्यपाल खान के साथ कई बार टकराव हो चुका है। एलडीएफ ने कहा कि उसने राज्य के विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह प्रतिष्ठिïत शिक्षाविदों को कुलाधिपति बनाने के लिएअध्यादेश लाने का फैसला किया था, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) दोनों ने इस फैसले का विरोध किया था। मुख्यमंत्री कार्यालय के बयान के अनुसार मंत्रिमंडल की बैठक में फैसला किया गया था कि खान से अध्यादेश को मंजूरी देने की सिफारिश की जाएगी जो विश्वविद्यालय कानूनों में कुलापधिपति की नियुक्ति से संबंधित धारा को हटा देगा, इस धारा में कहा गया है कि राज्यपाल राज्य के 14 विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी होंगे।

दिल्ली

अभी हाल में एमसीडी चुनाव को लेकर दिल्ली सरकार व उपराज्यपाल में तकरार देखने को मिली। इससे पहले के भी वहां पर ये विवाद होते रीे हैं। दिल्ली में भी गैर-बीजेपी सरकार है, यहां उप-राज्यपाल तो बदल रहे हैं, लेकिन सरकार के साथ विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है, नजीब जंग के बाद अब केजरीवाल का विवाद वीके सक्सेना के साथ है। अरविंद केजरीवाल का आरोप है कि एलजी उनकी सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं की स्वीकृति में रोड़ा अटका रहे हैं तो वहीं एलजी का कहना है कि सरकार जनता के हित में काम नहीं कर रही है। एलजी इसको लेकर कई लेटर भी लिख चुके हैं। एलजी ये भी कह चुके हैं कि सीएम की तरह ही बाकी मंत्री भी उनकी बात नहीं सुनते हैं। अब हालात यह हैं कि एलजी ने दिल्ली सरकार की कई योजनाओं के लिए जांच समितियों का गठन कर दिया है।

 

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