सपा कर सकती है भाजपा को सफा

2024 लोस चुनाव : यूपी में बढ़ सकती हैं सीटें

  • 80 सीटों पर लड़ेगी चुनाव
  • बड़ी भूमिका में आ सकते हैं अखिलेश
  • कांग्रेस-भाजपा से अलग तीसरे मोर्चा बनाने पर जोर

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। आगामी लोक सभा चुनाव 2024 पर सबकी नजर है। सभी पार्टियां अपने-अपने किलों को मजबूत करने में लग गई हैं। सबसे बड़े प्रदेश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी भी किसी से पीछे नहीं है। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने राज्य की 80 लोकसभा सीटों पर कब्जे की तैयारी शुरू कर दी है। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा सुप्रीमो सिर्फ यूपी में ही नहीं दूसरे राज्यों में अपनी पार्टी को सीटें दिलवाना चाहते हैं। वह राष्ट्रीय  राजनीति में भी बड़ी भूमिका में आने को आतुर है। इसी के मद्देनजर वह कांग्रेस व भाजपा से अलग विचार वाले दलों के साथ जुडक़र तीसरे मोर्चे का गठन चाहते हैं ताकि अगले चुनावों में परिणाम आने के बाद अगर सत्ता के करीब पहुंचने का मौका मिला तो अपनी भूमिका महत्वपूर्ण करवा सकें।
हांलाकि जिस तरह से अखिलेश मेहनत कर रहे हैं उससे तो उम्मीद लग रही है कि आगामी चुनाव में उन्हें 2019 की अपेक्षा कई ज्यादा सीटें मिल सकती हैं। यूपी भाजपा को अगर कोई पटखनी दे सकता है तो वह है सपा। उधर 2024 के लोक सभा चुनाव में भाजपा का सुपड़ा साफ करने व सपा को भारी जीत के संकल्प के साथ सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक संपन्न हुई। दो दिन तक पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में चले अधिवेशन में सपा ने मोदी सरकार को घेरने की रणनीति पर भी चर्चा की साथ अध्यक्ष अखिलेश यदव ने कहा कि क्षेत्रीय दलों को एकजुट होकर तानाशाह सरकार के खिलाफ खड़ा होना होगा। सपा मुखिया ने कहा कि जिन बूथों पर अभी तक पार्टी को कम वोट मिलते रहे हैं, वहां पैठ बढ़ाई जाएगी। इसके लिए त्रिस्तरीय रणनीति होगी। हर माह कोई न कोई कार्यक्रम किया जाएगा। पार्टी भाजपा सरकार की नीतियों के खिलाफ सडक़ से लेकर सदन तक संघर्ष करेगी। पार्टी कार्यकर्ता ही नहीं आमजन के उत्पीडऩ को मुद्दा बनाते हुए निरंतर जनता के बीच में रहेगी। पार्टी के सभी विधायक और पदाधिकारी वोटबैंक को बढ़ाने के लिए क्षेत्रवार अभियान चलाएंगे। उधर बैठक के बाद शिवपाल यादव ने कहा कि लोकसभा चुनाव 2024 में पार्टी 50 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर कार्य कर रही है। इसके लिए पार्टी राज्य में जनता से जुड़े मुद्दों को जोरशोर से उठाकर सरकार को चैन से नहीं बैठने देगी।

1992 में गठित हुई सपा

अनुभवी नेता और पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव द्वारा लखनऊ में अक्टूबर 1992 में गठित सपा मूल संगठन जनता दल से अलग होने वाले कई राजनीतिक दलों में से एक थी। समाजवादी पार्टी के प्रगतिशील विचारक, लेखक और महान सांसद राम मनोहर लोहिया के पदचिन्हों पर अग्रसर है, जिन्हें सपा के कार्यकलापों के लिए मार्गदर्शक माना जाता है।मूल स्तर की राजनीति में शामिल होने के लिए लोहिया का लोकतांत्रिक दृष्टिकोण और लोकप्रियता, अहिंसक प्रदर्शनों और सत्याग्रह के उनके गांधीवादी सिद्धांतऔर देश में पूंजीवादी और सामंती प्रवृत्तियों के सभी रूपों को समाप्त करने में उनकी धारणा ने समाज के सबसे गरीब और सबसे दु:खी वर्गों, निचली जातियों और अन्य अल्पसंख्यकों तक पहुँच बनाने में मुलायम और समाजवादी पार्टी के अन्य सदस्यों को बहुत प्रेरित किया है।लोहिया की करो या मरो भावना पार्टी के लिए एक महान प्रेरणा है, जो देश के सामाजिक रूप से उपेक्षित लोगों के बीच आशा और आत्मविश्वास पैदा करती है। 16वीं लोकसभा में, समाजवादी पार्टी के वर्तमान में 5 सदस्य हैं। राज्यसभा में इस पार्टी के18 सदस्य हैं। राष्ट्रीय  स्तर परपार्टी, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का सदस्य न होने के बावजूद गठबंधन को बाहरी समर्थन प्रदान करती है। क्षेत्रीय स्तर परवर्ष 2012 के यूपी विधानसभा चुनावों में स्पष्ट बहुमत हासिल करते हुए और बसपा सरकार को हराते हुए सपा ने उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई। मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री थे। उसके बाद पार्टी ने अखिलेश यादव के नेतृत्व में 2017 में चुनाव लड़ा। आपसी विवादों और पारिवारिक फूट के कारण 2017 में पार्टी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा और पूर्ण बहुमत में सरकार बनाने वाली पार्टी सिर्फ 47 सीटों पर सिमट गई।

जातीय जनगणना को बनाएंगे मुद्दा

सपा आगामी दिनों में भी जातीय जनगणना को मुद्दा बनाएगी। पूरी पार्टी इस पर एक मत में दिखी। नेताओं का मानना था कि इसे मुद्दा बनाया जाए और लोगों तक लेकर जाया जाए। पार्टी के नेताओं ने शनिवार को कहा कि पार्टी के संगठन को और मजबूत किया जाए। संगठन जितना मजबूत होगा, पार्टी उतनी मजबूत होगी। बताया जा रहा है कि आगामी दिनों में पार्टी के संगठन को मजबूत करने के लिए कई अहम कदम उठाए जाएंगे।

सपा का आधार

समाजवादी पार्टी मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में सक्रिय है। वर्तमान समय में इसके समर्थन में बड़े पैमाने पर श्री राधे कृष्णा के पुजारी व कट्टर मेहनती व जुझारु पिछड़ी जातियाँ हैं। समाजवादी पार्टी ने लोकसभा और देश के अन्य राज्यो के विधानसभा चुनाव लड़ चुका है। हालांकि इसकी सफलता मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में ही है। 2003 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को 7 सीटें प्राप्त हुई। यह राज्य में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी थी। 16वीं लोकसभा में, 5 सदस्य है। 2005 में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बंगारप्पा समाजवादी पार्टी में शामिल होने के लिए भाजपा से इस्तीफा दे दिया। वह सफलतापूर्वक समाजवादी के टिकट पर अपने लोकसभा सीट, शिमोगा, से विजयी हुए। 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में सपा को केवल 96 सीटें मिली, जबकि 2002 में 146 सीटें जीती थी। परिणामस्वरूप, मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव अपने प्रतिद्वंद्वी मायावती, बसपा (जो 207 सीटों के बहुमत जीता) नेता, मुख्यमंत्री के रूप में में शपथ ग्रहण के साथ ही इस्तीफा देना पडा। 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में सपा को 224 सीटै मिली इसके राष्टीय अध्यक्ष श्री अखिलेश जी को पूरा उत्तर प्रदेश के लोग इनको प्यार से भईया जी कहते हैं!

यूपी में बीजेपी को होगा नुकसान

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पार्टी को राष्ट्रीय  पार्टी बनाने के संकल्प को दोहराया। इस बीच प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल सहित विभिन्न राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों ने अपनी कार्य योजना प्रस्तुत की। इसमें बताया गया कि भाजपा को केंद्रीय सत्ता से बेदखल करने का माद्दा उत्तर प्रदेश रखता है। यदि उत्तर प्रदेश में सपा ने भाजपा को मात दी तो इसका सीधा असर केंद्र पर पड़ेगा। अन्य क्षेत्रीय दल भी सपा की ओर देख रहे हैं। ऐसे में पार्टी की जिम्मेदारी ज्यादा है। कोलकाता से लौटते ही सभी पदाधिकारी 2024 चुनाव जीतने के लिए तत्पर हो जाएंगे।

दिग्गज नेताओं का रहा जुड़ाव

समाजवादी पार्टी राममनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह के आदर्शो में चलने में विश्वास रखती है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय नेता मुलायम सिंह भारत सरकार में रक्षा मंत्री रह चुके हैं और राष्ट्रीय राजनीति के सबसे बड़े समाजवादी नेता रहे जिनका सम्मान सभी अन्य पार्टी के नेता भी करते हैं। समाजवादी पार्टी संसद में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में एक राष्ट्रीय  स्तर पर कांग्रेस और भाजपा के बीच एक समान दूरी बनाए रखने की कोशिश करता है। तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने के लिए समाजवादी पार्टी की कोशिश जारी है। आम चुनाव, 2009 में समाजवादी पार्टी 23 सीटों के साथ तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी थी। जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 206 सीटें और भारतीय जनता पार्टी 116 सीटें जीती। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव विधान मंडल दल के नेता चुने गये तथा उन्हांने 15 मार्च 2012 केा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की। वर्तमान में समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश में 111, एवं महाराष्ट्र , मध्यप्रदेश व गुजरात में क्रमश: 2-1-1विधायक हैं।

अन्य राज्यों में है दबदबा

समाजवादी पार्टी (सपा), जो लगभग सामाजिक पार्टी के रूप में समझी जाती है, भारत की एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी है। इसका जन आधार मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश राज्य में है, हालांकि कर्नाटक, बिहार, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भी इसकी उपस्थिति है। इसकी राजनीतिक स्थिति केन्द्रीय है और यह लोकतांत्रिक समाजवाद, लोकप्रियता और सामाजिक राजनीतिक विचारधाराओं पर चलती है। उत्तर प्रदेश में मुख्यधारा के हासिए पर रहने वाले समाज के सामाजिक रूप से उत्पीडित वर्गों के लिए सपा अपनी पूर्ण निष्ठा और राजनीतिक संघर्ष का दावा करती है। दूसरे शब्दों में, लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी होने का दावा करते हुए समाजवादी पार्टी अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और मुसलमानों के उत्थान एवं आर्थिक प्रगति की बात करती है। पार्टी धर्मनिरपेक्षता के मार्गदर्शक सिद्धांतों पर भी काम करती हैऔर सभी सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ संघर्ष करती है।

वाम और कांग्रेस खुद तय करें

अखिलेश ने कहा, कांग्रेस और वाम मोर्चो दोनों ही बड़ी पार्टियां हैं। आने वाले समय में उनको खुद ही अपनी भूमिका तय करनी होगी। तीसरे मोर्चे में कौन होगा, इस पर बात हो चुकी है। कांग्रेस और वाम के इतर समान विचारधारा वाली राजनीतिक पार्टियों से बातचीत कर रहे हैं। क्षेत्रीय दलों की भूमिका अहम होने वाली है।सपा प्रमुख ने कहा कि इसबार अमेठी व रायबरेली में भी उम्मीदवार खड़ा कर सकते हैं।

केंद्र की सरकारी नीतियों का समय-समय पर किया विरोध

समाजवादी पार्टी ने कुछ ऐसे निणर्य भी लिए जिसके लिए उसकी आलोचना होती है पर पार्टी अपने सिद्धातों से कभी हटी नहीं। समाजवादी पार्टी 20वीं शताब्दी के आखिरी दशकों में महाराष्ट्र राज्य में शिवसेना द्वारा लक्षित भारतीयों के पक्ष में खड़ी होने वाली एकमात्र पार्टी थी। शिवसेना, जो क्षेत्रीय विशिष्टता की विचारधाराओं के आक्रामक समर्थन में विश्वास करती है, को समाजवादी पार्टी द्वारा सीधे चुनौती दी गई थी। पार्टी ने महाराष्ट्र के उत्तर भारतीय प्रवासियों के अधिकारों और विशेषाधिकारों का बचाव किया। समाजवादी पार्टी बाबरी मस्जिद विध्वंस का विरोध करने वालों के मजबूत समर्थकों में से एक है, क्योंकि यह सभी सांप्रदायिक ताकतों से लडऩे और देश में शांति और सद्भाव लाने में विश्वास रखती है। भाजपा निर्देशित बाबरी मस्जिद के विध्वंस की सपा ने गंभीर आलोचना की है। पार्टी हर साल देश के इतिहास में उस दिन को ब्लैक डे के रूप में मनाती है। सपा ने कांग्रेस द्वारा प्रेरित मूल्य वृद्धि, खुदरा क्षेत्र में एफडीआई और राज्य में कांग्रेस मंत्रियों के बीच प्रचलित भ्रष्टाचार के खिलाफ जोरदार विरोध किया है। किसानों और राज्य की अन्य निचली जातियों के हितों की रक्षा के लिए केंद्र द्वारा बुंदेलखंड को 7,266 करोड़ रुपये के फंड आवंटन के खिलाफ मुलायम ने यह कहते हुए विरोध किया, कि पैकेज इस क्षेत्र के उचित विकास के लिए अपर्याप्त था।

 

 

 

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