सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा बोर्ड को दी मंज़ूरी : यूपी सरकार के टूटे सपने

  • हाई कोर्ट का फैसला पलटा
  • शीर्ष कोर्ट ने सीएम योगी की दिया करारा झटका

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के सपने पर करारा वार किया है। दरअसल,यूपी मदरसा एक्ट वैध है या अवैध, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (5 नवंबर) को इस मामले पर बड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए यूपी मदरसा एक्ट को मान्यता दी। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट की संवैधानिकता को बरकरार रखा है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 22 मार्च को यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट को संविधान के मौलिक ढांचे के खिलाफ बताते हुए सभी छात्रों का दाखिला सामान्य स्कूलों में करवाने का आदेश दिया था। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन जस्टिस की बेंच ने कहा कि यह सही नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार शिक्षा को नियमित करने के लिए कानून बना सकती है। इसमें सिलेबस, छात्रों का स्वास्थ्य जैसे कई पहलू शामिल हैं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मदरसा मजहबी शिक्षा भी देते हैं, लेकिन उनका मुख्य उद्देश्य शिक्षा ही है।

‘हर निजी संपत्ति पर कब्जा नहीं कर सकती सरकार’

सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति विवाद में बड़ा फैसला सुनाया है। इस मामले में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सभी निजी संपत्ति समुदाय के भौतिक संसाधन नहीं। कुछ निजी संपत्ति समुदाय के भौतिक संसाधन हो सकती हैं, ये9 जजों के संविधान पीठ का फैसला है, जिसने 1978 से लेकर अभी तक के सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले पलट दिये हैं। सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूंड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की बेंच दशकों पुराने इस विवाद पर अपना फैसला सुनाया है. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस साल 1 मई को सुनवाई के बाद निजी संपत्ति मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिय था। मामले में फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, तीन जजमेंट हैं, मेरा और 6 जजों का, जस्टिस नागरत्ना का आंशिक सहमति वाला और जस्टिस धुलिया का असहमति वाला हम मानते हैं कि अनुच्छेद 31सी को केशवानंद भारती मामले में जिस हद तक बरकरार रखा गया था, वह बरकरार है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में साफ कर दिया है कि सरकार सभी निजी संपत्तियों की अधिग्रहण नहीं कर सकती।

ये था मामला

उत्तर प्रदेश में 2004 में मदरसा ऐक्ट बनाया गया था इसमें कहा गया कि सभी मदरसे सरकार के नियमों के अधीन होंगे यूपी में साढ़े 24 हजार मदरसे हैं, जिसमें आठ हजार रजिस्टर्ड नहीं हैं। बचे साढ़े 16 हजार मदरसे रजिस्टर्ड हैं और सरकारी नियम से चलते हैं 560 मदरसे ऐसे हैं जो राज्य सरकार के फंड से चलते हैं।

बोर्ड सरकार की सहमति बना सकता है व्यवस्था

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बोर्ड सरकार की सहमति से ऐसी व्यवस्था बना सकता है, जहां मदरसा के धार्मिक चरित्र को प्रभावित किए बिना सेक्युलर शिक्षा दे सके,5 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने 22 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

1978 के बाद के फैसलों पर पड़ेगा प्रभाव

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने 1978 के बाद के उन फैसलों को पलट दिया है, जिनमें समाजवादी विषय को अपनाया गया था और कहा गया था कि सरकार आम भलाई के लिए सभी निजी संपत्तियों को अपने कब्जे में ले सकती है। सीजेआई ने सात न्यायाधीशों का बहुमत का फैसला लिखते हुए कहा कि सभी निजी संपत्तियां भौतिक संसाधन नहीं हैं और इसलिए सरकारों द्वारा इन पर कब्ज़ा नहीं किया जा सकता।

हाईकार्ट के फैसले से 17 लाख छात्र होते प्रभावित

सुप्रीम कोर्ट ने कहा इससे 17 लाख छात्र प्रभावित होतेे, हमारा मानना है कि छात्रों को दूसरे स्कूलों में स्थानांतरित करने का निर्देश उचित नहीं था। उत्तर प्रदेश की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने कहा था कि राज्य सरकार ने अधिनियम का बचाव किया है, लेकिन उसने हाईकोर्ट के उस फैसले को स्वीकार कर लिया है, जिसमें कानून को रद्द कर दिया गया था। नटराज ने कहा, जब राज्य ने फैसले को स्वीकार कर लिया है, तो अब राज्य पर कानून के खर्च का बोझ नहीं डाला जा सकता। राज्य कानून को निरस्त करने में भी सक्षम है। अगर मामले पर विचार करने की जरूरत है, तो मैं इसमें बाधा नहीं डालूंगा। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा कोई भी मदरसा बंद नहीं किया जा रहा है। नटराज ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार मदरसों को सहायता देने के लिए हर साल 1,096 करोड़ रुपये का वित्तीय बोझ उठाती है। उच्च न्यायालय ने 22 मार्च को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला घोषित किया था और राज्य सरकार से छात्रों को औपचारिक स्कूली शिक्षा प्रणाली में समायोजित करने के लिए कहा था। उच्च न्यायालय ने अधिवक्ता अंशुमान सिंह राठौर द्वारा दायर एक रिट याचिका पर कानून को अधिकारहीन घोषित किया था।

मदरसों का है ये तर्क

1908 से मदरसे चल रहे हैंयूपी में साढ़े 16 हजार मदरसे हैं। ैंइनमें 17 लाख छात्र पढ़ रहे हैं। मदरसों में 10 हजार शिक्षक हैं मदरसे खत्म होंगे तो दीनी तालीम कैसे देंगे मदरसे सरकार के आदेश के तहत चल रहे हैं उनके सिलेबस को मदरसों में लागू किया जा रहा है।

मदरसों को डिग्री देने का अधिकार नहीं

यूपी मदरसा एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मदरसा एक्ट में मदरसा बोर्ड को फाजिल, कामिल जैसी डिग्री देने का अधिकार दिया गया है, यह यूजीसी एक्ट के खिलाफ है, इसे हटा देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डिग्री देना असंवैधानिक है, बाकी एक्ट संवैधानिक है, सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने ये फैसला दिया।

Related Articles

Back to top button