सुप्रीम कोर्ट ने मोदी को दिया डबल झटका, राहुल गांधी की बात सच हुई!

लोकसभा में मानसून के दौरान विपक्ष अपनी पूरी मजबूती के साथ सरकार के सामने जनता के मुद्दों को उजागर कर रहा है... और सत्र के दौरान जाति जनगणना और आरक्षण के मुद्दे को जोरों से उठा रहा है... देखिए खास रिपोर्ट...

4 पीएम न्यूज नेटवर्कः लोकसभा में मानसून के दौरान विपक्ष अपनी पूरी मजबूती के साथ सरकार के सामने जनता के मुद्दों को उजागर कर रहा है… और सत्र के दौरान जाति जनगणना और आरक्षण के मुद्दे को जोरों से उठा रहा है… वहीं जाति जनगणना और आरक्षण की बातें सत्ता पक्ष के दिल में तीर की तरह चुभती है… आपको

बता दें कि बीजेपी सरकार के ध्रुवीकरण की राजनीति पर सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी सरकार के मुंह पर जोर दार तमाचा मारा है…. और सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को एससी और एसटी… पिछडें और दलित को अतिरिक्त आरक्षण देने का फैसला दिया है… वहीं अब राज्य सरकार अपने सुविधानुसार पिछड़े दलितों का आरक्षण बढ़ा सकती है… इस पर केंद्र सरकार का कोई जोर नहीं चलेगा… बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद से केंद्र सरकार की परेशानी और बढ़ गई है… हमेशा से आरक्षण का विरोध करने वाली भाजपा को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा झटका दिया है… वहीं अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को काफी लाभ मिलेगा और उनके जीवन स्तर में सुधार आएगा… आपको बता दें कि दो हजार चौदह से केंद्र में काबिज मोदी सरकार ने जनता के साथ किसी भी प्रकार से कोई न्याय किया है…. और जनता को भ्रमित करने के लिए सिर्फ योजनाओं की पोटली खोली है… लेकिन धरातल पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है… जिससे गरीब और गरीब होता जा रहा है… और अमीर और अमीर होता जा रहा है…

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति…. और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला दिया है…. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने सात जजों की संवैधानिक पीठ ने गुरुवार को एससी और एसटी के लोगों के बीच समान प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारों को एससी-एसटी के आरक्षण को कोटा के भीतर कोटा बनाने की मंजूरी दे दी है…. वहीं अब देश की राज्य सरकारें अनुसूचित जाति…. और अनुसूचित जनजाति की श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं…. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सब कैटेगिरी का आधार उचित होना चाहिए…. वहीं देश के अलग-अलग राज्यों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के साथ ओबीसी वर्ग में सब कैटेगरी… और उनके आरक्षण के मुद्दे पर लंबे समय से बहस होती आ रही है…. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने एससी-एसटी आरक्षण को श्रेणी में बांटने का अधिकार राज्य सरकार को दे दिया है…. वहीं अब संवैधानिक फैसला राज्य के हक में आया है….. इसके बाद राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों में दलित…. और आदिवासी समुदाय को मिलने वाले आरक्षण को बांटने का अधिकार मिल गया है…. इसके साथ ही चार जजों ने एससी-एसटी में भी क्रीमी लेयर को लेकर टिप्पणी की है….

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पंजाब से लेकर उत्तर प्रदेश…. और महाराष्ट्र जैसे राज्य में दलित आरक्षण का बंटवारा होने का फैसला राज्य सरकारें ले पाएंगी तो राजस्थान… और छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय को मिलने वाले आरक्षण को वर्गीकरण करके बांट सकती है…. इसके साथ ही ओबीसी आरक्षण के बंटवारे का भी रास्ता सुप्रीम कोर्ट ने खोल दिया है…. वहीं बिहार से लेकर राजस्थान, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में ओबीसी आरक्षण को कोटा के भीतर कोटा बनाने की मांग लंबे समय से उठती रही है…. सर्वोच्च अदालत के फैसला का सियासी प्रभाव पड़ना लाजमी है…. आपको बता दें कि केंद्रीय स्तर पर अनुसूचित जाति को पंद्रह और अनुसूचित जनजाति को सात फीसदी आरक्षण का प्रावधान है….. वहीं तमाम रिपोर्ट में कहा गया है कि आरक्षण का लाभ लगातार वही ले रहे हैं….. जो ऊपर उठ चुके हैं और जो नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व हासिल कर चुके हैं….. ऐसे में दलित और आदिवासी समुदाय के तमाम जातियां अभी भी आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है…. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने निचले स्तर तक आरक्षण का लाभ पहुंचाने के मकसद से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के भीतर कोटा बनाने का फैसला राज्य सरकारों को दिया है….

वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बिहार में पासवान तो यूपी में जाटव और महाराष्ट्र में महार दलित समुदाय के बीच ऐसी जातियां हैं…. जिनके खिलाफ दलितों की दूसरी जातियों को गोलबंद कर राजनीतिक इस्तेमाल किया जाता है…. बता दें कि नीतीश कुमार बिहार में दो हजार सात में दलितों के बीच वर्गीकरण कर महादलित की राजनीति खड़ी कर चुके हैं…. आंध्र प्रदेश और पंजाब में भी दलितों को मिलने वाले आरक्षण को बांटने का फैसला हुआ था…. लेकिन मामला अदालत में जाने से कानूनी पेंच में फंस गया था…. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसला से दलित आरक्षण को बांटने का इन तमाम राज्यों में रास्ता साफ हो गया है…. वहीं उत्तर प्रदेश में लंबे समय अनुसूचित जाति को मिलने वाले आरक्षण को दो वर्गों में बांटने की बात की जा रही थी….. यूपी में अनुसूचित जाति के लिए बीस फीसदी आरक्षण मिलता है….. यूपी में सियासी तौर पर जाटव और गैर-जाटव के बीच दलित बंटा हुआ है….. कहा जाता है कि यूपी में अनुसूचित जाति को मिलने वाले आरक्षण का लाभ जाटव समुदाय को सबसे ज्यादा हुआ है… और उसके बाद धोबी, पासी और अन्य जातियों को मिली है…. लेकिन कोरी, कोल, बाल्मिकी जैसी अनुसूचित जातियां को आरक्षण वैसा नहीं मिला… जैसा जाटव समुदाय को मिला है….. जाटव समुदाय बसपा का कोर वोटबैंक माना जाता है…. ऐसे में बीजेपी और सपा गैर-जाटव वोटों को साधने के लिए दलित आरक्षण का वर्गीकरण का दांव चल सकती है….

आपको बता दें कि यूपी में दलित आरक्षण को दो हिस्सों में बांटने का फैसला होता है…. तो उसका सियासी प्रभाव भी पड़ेगा….. यूपी में दलित जाटव और गैर-जाटव के बीच बंटा हुआ है…. जिसमें बारह फीसदी जाटवों की संख्या है…. और दस फीसदी गैर-जाटव दलित हैं….. यूपी में दलितों की कुल छासठ उपजातियां हैं…. जिनमें पचपन ऐसी उपजातियां हैं, जिनका संख्या बल ज्यादा नहीं हैं…. इसमें मुसहर, बसोर, सपेरा और रंगरेज जैसी जातियां शामिल हैं…. दलित की कुल आबादी में छप्पन फीसदी जाटव के अलावा दलितों की अन्य जो उपजातियां हैं…. उनकी संख्या छियालीस फीसदी के करीब है…. पासी सोलह फीसदी, धोबी, कोरी और वाल्मीकि पंद्रह फीसदी और गोंड, धानुक और खटीक करीब पांच फीसदी हैं….. गैर-जाटव दलित में बाल्मीकि, खटीक, पासी, धोबी, कोरी सहित तमाम जातियों के विपक्षी राजनीतिक दल अपने-अपने पाले में लामबंद करने में जुटे हैं…. इस तरह अनुसूचित जाति के आरक्षण को देखना है… कि बांटने का दांव सरकार चलती हैं कि नहीं…. यह आने वाले समय में स्पष्ठ हो जाएगा…

बता दें कि महाराष्ट्र में दलित समुदाय के आरक्षण को लंबे समय से बांटने के लिए मांग उठती रही है…. महाराष्ट्र में दलित आबादी बारह प्रतिशत के बीच है…. जो दो हिस्सों में महार और गैर-महार में बंटी हुई है…. महार जाति महाराष्ट्र के दलितों में पचास फीसदी से थोड़ी ज्यादा थी…. बाबासाहब ने जब दलित आंदोलन शुरू किया तो उनकी जाति के ज्यादातर महार ही उनसे जुड़े…. इसके अलावा बाकी दलित जातियों में मांग, कोरी, खटीक, मातंग, भेड़, चमार,ढोर,डोम औलख, गोतराज हैं…. डा. अंबेडकर ने धर्मांतरण किया तब ज्यादातर महार ही बौद्ध बने…. ऐसे में महाराष्ट्र में दलित आरक्षण का ज्यादातर लाभ महार जाति के लोगों के उठाने का आरोप लगता रहा है…. जिसके चलते गैर-महार जाति के लिए अलग से कोटा बनाकर आरक्षण की मांग होती रही है…. ऐसा माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब राज्य की सरकार महाराष्ट्र में दलित आरक्षण को श्रेणी में बांटने का कदम उठाना आसान हो गया है….

वहीं देश में सबसे ज्यादा दलित समुदाय पंजाब में बत्तीस फीसदी के करीब है…. बता दें कि राज्य अनुसूचित जातियों में सबसे बड़ा छब्बीस दशमलव तीन तीन फीसदी मजहबी सिखों का है….. रामदासिया समाज की आबादी बीस दशमलव सात तीन  फीसदी है जबकि आधी धर्मियों की आबादी दस दशमल एक सात… और वाल्मीकियों की आबादी आठ दशमलव छः छः फीसदी है…. आपको बता दें कि  पंजाब सरकार ने साल दो हजार छः में दलित आरक्षण को तीन श्रेणी में बांटने का फैसला किया था…. जिसके बाद हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था…. जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में आया था…. और सर्वोच्च अदालत ने सात जजों की पीठ गठित कर दी थी… पंजाब सरकार ने मांग रखी थी कि अनुसूचित जाति के भीतर भी सब कैटेगरी की अनुमति दी जानी चाहिए… इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को एससी… और एसटी आरक्षण को श्रेणी में बांटने का फैसला दिया है….

आपको बता दें कि पंजाब सरकार अब दलित आरक्षण को बांटने का कदम उठा सकती है…. साल दो हजार छः में कैप्टन सरकार ने अनुसूजित जाति को मिलने वाले पच्चीस फीसदी आरक्षण को दो श्रेणियों में बराबर-बराबर विभाजित करने का कदम उठाया था….. इसमें एससी श्रेणी के लिए आधा आरक्षण वाल्मीकियों… और मजहबी सिखों को दी जानी थीं…. आरक्षित सीटों का दूसरा आधा हिस्सा एससी श्रेणी के भीतर शेष समूहों के लिए था… वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब पंजाब में दलित आरक्षण को दो हिस्सों में बांटने का रास्ता साफ हो गया है…. वहीं दलित आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने का प्लान भारत के संविधान के तहत अनुसूचित जाति…. और जनजाति को आरक्षण मिला है…. अनुसूचित जाति और जनजाति के कुछ-कुछ चेहरे और आवाजें जो आपको सुनाई दे रही हैं…. वो आरक्षण की वजह से हैं…. आपको बता दें कि एससी-एसटी समुदाय को बाइस दशमलव पांच प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है…. जबकि आरक्षण गरीबी उन्मूलन प्रोग्राम नहीं है… बल्कि प्रतिनिधित्व की व्यवस्था है…. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कम संख्या वाली दलित जातियों को ही नुकसान उठाना पड़ेगा…. इसलिए सब कोटा होने से बहुत ज्यादा खुश होने की जररूत नहीं है…. क्योंकि जिनकी संख्या ज्यादा होगी…. उनके लिए आरक्षण भी ज्यादा ही मिलेगा….

आपको बता दें कि एससी-एसटी समुदाय के बीच कोटा दर कोटा के मामले को सात जजों की बेंच पर भेजने का फैसला राजनीतिक रूप से भी काफी अहम हो जाता है…. आपको बता दें कि संवैधानिक पीठ ने अब अगर ईवी चिन्नाया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार के फैसले को पलट दिया है…. वह सुपीम कोर्ट के फैसले का हवाला देकर बहुत आसानी से न सिर्फ अनुसूचित जाति से यूपी के जाटव और बिहार के पासवान को अलग उपवर्ग में कर सकती है….. बल्कि ओबीसी की कुछ जातियों- मसलन अहिर, कुर्मी, लोध को अलग-थलग करने की मंशा पूरी हो सकती है….

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button