सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, गोधरा कांड के 6 आरोपी बरी
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगा से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाते हुए 6 आरोपियों को बरी कर दिया है...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः गुजरात के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद अध्याय, 2002 के गोधरा कांड….. और उसके बाद हुए दंगों के मामले में एक नया मोड़ आया है…… 21 मार्च 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में छह आरोपियों को बरी कर दिया…… जिससे यह घटना फिर से सुर्खियों में आ गई…… यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है…… बल्कि सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भी इसके गहरे प्रभाव देखे जा सकते हैं….. इस खबर ने गुजरात और पूरे देश में चर्चा का माहौल बना दिया है…… और लोग इस निर्णय के पीछे के तर्कों और इसके भविष्य के निहितार्थों पर विचार कर रहे हैं……
आपको बता दें कि 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन की एक बोगी में आग लगने की घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था…… इस घटना में 59 यात्रियों की मौत हो गई थी…… जिनमें ज्यादातर हिंदू कारसेवक थे, जो अयोध्या से लौट रहे थे….. इस घटना को एक सुनियोजित हमला माना गया…… और इसके बाद गुजरात में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे…… इन दंगों में सैकड़ों लोग मारे गए….. संपत्ति को भारी नुकसान हुआ, और सामाजिक ताना-बाना बुरी तरह प्रभावित हुआ…… इस मामले में कई लोगों पर मुकदमे चले, और कई को सजा भी हुई….. हालांकि, कुछ मामले अभी भी अदालतों में लंबित थे…… जिनमें से एक का फैसला अब सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया है…..
बता दें कि 21 मार्च 2025 को सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने इस मामले में छह आरोपियों को बरी करने का आदेश दिया…… इन आरोपियों पर दंगों के दौरान हिंसा भड़काने….. और आपराधिक कृत्यों में शामिल होने का आरोप था…… कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष इन आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत पेश करने में नाकाम रहा…… सबूतों की कमी और गवाहों के बयानों में विरोधाभास को इस फैसले का आधार बनाया गया…… कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि निचली अदालतों ने मामले की सुनवाई में जल्दबाजी दिखाई….. जिसके कारण न्याय के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ….. वहीं इस फैसले के बाद आरोपियों के परिवारों ने राहत की सांस ली….. जबकि पीड़ित पक्ष के लोगों में असंतोष देखा गया….. गुजरात सरकार ने इस फैसले पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है…… लेकिन माना जा रहा है कि राज्य सरकार इस मामले में आगे की कानूनी रणनीति पर विचार कर सकती है…..
वहीं यह फैसला गुजरात में सामाजिक ध्रुवीकरण को फिर से हवा दे सकता है….. 2002 के दंगे आज भी राज्य की सामाजिक स्मृति का एक संवेदनशील हिस्सा हैं….. इस घटना ने हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव को बढ़ाया था….. और इसके प्रभाव आज भी देखे जा सकते हैं….. सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय कुछ लोगों के लिए न्याय की जीत के रूप में देखा जा रहा है….. जबकि अन्य इसे पुराने घावों को फिर से कुरेदने वाला मान रहे हैं…… राजनीतिक दृष्टिकोण से, यह फैसला विपक्षी दलों के लिए एक बड़ा मुद्दा बन सकता है….. कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियाँ इसे भाजपा शासित गुजरात सरकार की नाकामी के रूप में पेश कर सकती हैं…… दूसरी ओर, भाजपा इसे कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा बताकर अपना बचाव कर सकती है….. आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी तेज होने की संभावना है…….
आपको बता दें कि दंगों के पीड़ितों के लिए यह फैसला एक झटके की तरह आया है…… कई पीड़ित परिवारों ने कहा कि उन्हें लगता है कि उनके साथ फिर से अन्याय हुआ है…… एक पीड़ित ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि हमने अपने अपनों को खोया…… और अब हमें लगता है कि हमें इंसाफ कभी नहीं मिलेगा…… दूसरी ओर, बरी हुए आरोपियों के समर्थकों ने इस फैसले का स्वागत किया….. और इसे लंबे समय से चली आ रही कानूनी लड़ाई का अंत बताया…. गुजरात के नागरिक समाज में भी इस फैसले को लेकर बहस छिड़ गई है…..। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह निर्णय सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा दे सकता है….. क्योंकि यह दिखाता है कि कानून सबूतों के आधार पर काम करता है…… न कि भावनाओं पर….. हालांकि, अन्य लोग इसे न्याय व्यवस्था की कमजोरी के रूप में देखते हैं….. जो संवेदनशील मामलों में ठोस नतीजे देने में असफल रही…..
वहीं इस फैसले के बाद कई सवाल उठ रहे हैं…… क्या यह अन्य लंबित मामलों को प्रभावित करेगा…… क्या गुजरात में फिर से तनाव बढ़ेगा….. विशेषज्ञों का मानना है कि यह इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार और समाज इसे कैसे संभालते हैं…… अगर इस फैसले का राजनीतिकरण होता है….. तो स्थिति जटिल हो सकती है….. वहीं, अगर इसे शांति और सौहार्द के साथ स्वीकार किया जाता है….. तो यह एक सकारात्मक उदाहरण बन सकता है….. कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला भविष्य में इस तरह के मामलों में सबूतों की मजबूती पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता को रेखांकित करता है….. यह भी संभव है कि इस मामले में अपील की मांग उठे, जिससे यह फिर से सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच सकता है….