बुलडोजर एक्शन पर चला ‘सुप्रीम’ चाबुक
- केंद्र व राज्य सरकार को लगाई फटकार
- शीर्ष अदालत बोली- अफसर जज नहीं बन सकते
- अधिकारी दोषी हुआ तो कराएगा निर्माण, देगा मुआवजा
- राज्यों की मनमानी पर लगाई लगाम
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर तीखा प्रहार करते हुए केंद्र की एनडीए व यूपी की योगी सरकार को फटकार लगाई है। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रशासन जज का काम ने करे। बता दें आरोपियों के खिलाफ बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बुधवार को कहा कि उसने संविधान में दिए गए उन अधिकारों को ध्यान में रखा है, जो राज्य की मनमानी कार्रवाई से लोगों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि कानून का शासन यह सुनिश्ति करता है कि लोगों को यह पता हो कि उनकी संपत्ति को बिना किसी उचित कारण के नहीं छीना जा सकता। अदालत ने कहा कि सभी पक्षों सुनने के बाद ही हम आदेश जारी कर रहे है, अदालत ने कहा कि हमने संविधान के तहत गारंटीकृत अधिकारों पर विचार किया है, यह व्यक्तियों को राज्य की मनमानी कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान करते हैं,अदालत ने कहा कि सत्ता के मनमाने प्रयोग की इजाजत नहीं दी जा सकती है। उधर इस फैसले के बाद सियासी दलों की मिली जुली प्रतिक्रिया भी आई है। विपक्षी दलों ने एनडीए सरकार को घेरा है। वहीं भाजपा इस पर कुछ बोलने से कतराती रही।
घर गिराना आखिरी रास्ता, यह साबित करना होगा : जस्टिस गवई
जस्टिस बीआर गवई बोले,एक आदमी हमेशा सपना देखता है कि उसका आशियाना कभी ना छीना जाए। हर एक का सपना होता है कि घर पर छत हो। क्या अधिकारी ऐसे आदमी की छत ले सकते हैं, जो किसी अपराध में आरोपी हो? आरोपी हो या फिर दोषी हो, क्या उसका घर बिना तय प्रक्रिया का पालन किए गिराया जा सकता है? जस्टिस गवई ने कहा,एक घर समाजिक-आर्थिक तानेबाने का मसला है। ये सिर्फ एक घर नहीं होता है, यह बरसों का संघर्ष है, यह सम्माना की भावना देता है। अगर घर गिराया जाता है तो अधिकारी को साबित करना होगा कि यही आखिरी रास्ता था। जब तक कोई दोषी करार नहीं दिया जाता है, तब तक वो निर्दोष है। ऐसे में उसका घर गिराना उसके पूरे परिवार को दंडित करना हुआ।
अधिकारियों की जवाबदेही तय हो
कोर्ट ने यह भी कहा कि उसने शक्ति के विभाजन पर विचार किया है और यह समझा है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका अपने-अपने कार्यक्षेत्र में कैसे काम करती हैं। न्यायिक कार्यों को न्यायपालिका को सौंपा गया है और न्यायपालिका की जगह पर कार्यपालिका को यह काम नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने आगे कहा, अगर कार्यपालिका किसी व्यक्ति का घर केवल इस वजह से तोड़ती है कि वह आरोपी है, तो यह शक्ति के विभाजन के सिद्धांत का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि जो सरकारी अधिकारी कानून को अपने हाथ में लेकर इस तरह के अत्याचार करते हैं, उन्हें जवाबदेही के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
कोर्ट का फैसला सरकार को जोरदार तमाचा : चंद्रशेखर
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आज़ाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चन्द्रशेखर आजाद ने कहा, ये भाजपा की उत्तर प्रदेश की सरकार को जोरदार तमाचा है कि बिना दोषी सिद्ध हुए या कोर्ट के निर्णय के आप किसी का घर नहीं गिरा सकते हैं। मैं इसके लिए सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद करता हूं।
दिल की गहराईयों से सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का स्वागत : अजय राय
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने कहा,निश्चित तौर पर सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का हम सब स्वागत करते हैं और इसके लिए हम उनका धन्यवाद भी देते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जैसा कहा कि दोषी साबित होने के बाद भी घर नहीं गिराया जा सकता है क्योंकि उस घर में रहने वाले अन्य परिजन दोषी नहीं हैं, हम दिल की गहराईयों से सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का स्वागत करते हैं।
कोर्ट ने दिखाया आइना : सुप्रिया श्रीनेत
फैसले पर कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आइना दिखाने का काम किया है. सर्वोच्च न्यायालय ने पूरी तरह से कानून को प्राथमिकता दी है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि दोषी और आरोपी को सजा दी जाए न कि उसके परिवार को, मैं आशा करती हूं कि उत्तर प्रदेश की और तमाम भाजपा की सरकारें इसका अनुसरण करते हुए ये कुकृत्य को बंद करेंगी।
जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने लगाई थी याचिका
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में लगातार बुलडोजर एक्शन के बाद जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। आरोप लगाया था कि बीजेपी शासित राज्यों में मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है और बुलडोजर एक्शन लिया जा रहा है। केंद्र सरकार ने दलील दी थी कि कोर्ट अपने फैसले से हमारे हाथ ना बांधे। किसी की भी प्रॉपर्टी इसलिए नहीं गिराई गई है, क्योंकि उसने अपराध किया है। आरोपी के अवैध अतिक्रमण पर कानून के तहत एक्शन लिया गया है।
संयुक्त राष्ट्र ने जताई थी आपत्ति
इससे पहले संयुक्त राष्ट्र के प्रतिवेदक (संयुक्त राष्ट्री मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ) ने सितंबर में शीर्ष से कहा था कि सजा के तौर पर किए जाने वाले विध्वंस को मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन माना जा सकता है। उन्होंने कहा था कि ऐसी कार्रवाइयां अल्पसंख्यक समुदायों के खिलफ अपमानजनक व्यवहार के रूप में हो सकती हैं और यह राज्य के हाथों जमीन हड़पने का एक तरीका बन सकती हैं।
किसी निर्दोष को घर से वंचित करना पूरी तरह असंवैधानिक
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका (सरकारी अधिकारी) किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहरा सकती और न ही वह जज बन सकती है, जो किसी आरोपी की संपत्ति तोडऩे पर फैसला करे। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी व्यक्ति को अपराध का दोषी ठहराने के बाद उसके घर को तोड़ा जाता है, तो यह भी गलत है, क्योंकि कार्यपालिका का ऐसा कदम उठाना अवैध होगा और कार्यपालिका अपने हाथों में कानून ले रही होगी। कोर्ट ने कहा कहा कि आवास का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और किसी निर्दोष व्यक्ति को इस अधिकार से वंचित करना पूरी तरह असंवैधानिक होगा।
15 दिन पहले जारी होना चाहिए नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि किसी भी संपत्ति का विध्वंस तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक उसके मालिक को पंद्रह दिन पहले नोटिस न दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि यह नोटिस मालिक को पंजीकृत डाक के जरिए से भेजा जाएगा और इसे निर्माण की बाहरी दीवार पर भी चिपकाया जाएगा। नोटिस में अवैध निर्माण की प्रकृति, उल्लंघन का विवरण और विध्वंस के कारण बताए जाएंगे। इसके अलावा, विध्वंस की प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी की जाएगी और अगर इन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन होता है तो यह कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आम नागरिक के लिए अपने घर का निर्माण कई वर्षों की मेहनत, सपने व आकांक्षाओं का परिणाम होता है।