राज ठाकरे को शामिल करने का ‘मास्टरस्ट्रोक’ BJP को पड़ गया भारी, हो गया बड़ा नुकसान

मुंबई। देश के अंदर लोकसभा चुनावों को लेकर सियासी तापमान चढ़ चुका है। सभी दल अपनी-अपनी रणनीतियों को अंजाम देने में लगे हुए हैं। कहीं प्रत्याशियों का ऐलान किया जा रहा है। तो कहीं सियासी दल अपने-अपने कुनबे को बढ़ाने में लगे हैं। इस दौरान नेताओं द्वारा एक दल से दूसरे दल में जाने का सिलसिला भी लगातार जारी है। इस बीच दूसरे नंबर पर सबसे अधिक लोकसभा सीटों वाले राज्य महाराष्ट्र में सियासी हलचल काफी तेज हो रखी है। यहां सियासी सरगर्मी बढ़ी हुई है और आए दिन सियास घटनाक्रम में बदलाव देखने को मिल रहा है। इस बीच भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन और एनडीए में राज ठाकरे के शामिल होने की चर्चाओं ने प्रदेश का सियासी पारा एक बार फिर काफी हाई कर दिया है।

सबसे बड़ी बात कि राज ठाकरे के बीजेपी के साथ आने की चर्चाओं से महायुति और एनडीए के सहयोगी दलों में ही काफी हलचल मच गई है। वहीं भाजपा राज ठाकरे को उद्धव ठाकरे के काट के तौर पर और प्रदेश में अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए शामिल करना चाह रही है। लेकिन इस दौरान शायद बीजेपी ये भूल रही है कि राज ठाकरे को अपने साथ लाने का उसका ये दांव उसे उल्टा भी पड़ सकता है। और कहीं ऐसा न हो कि राज ठाकरे को अपने साथ लाने से भाजपा को उल्टा महाराष्ट्र में नुकसान उठाना पड़ जाए। और जो अभी उसकी उम्मीदें हैं वो भी धूमिल हो जाएं। साथ ही उसके सहयोगी भी उससे दूरी बनाने लगें।

दरअसल, अमित शाह और राज ठाकरे की मुलाकात के बाद ये कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में राज ठाकरे की मनसे और बीजेपी के बीच चुनावी गठबंधन होने की कगार पर है। राज ठाकरे भी अब एनडीए और महायुति का हिस्सा बन जाएंगे। लेकिन मनसे और बीजेपी के बीच संभावित गठबंधन उत्तर भारतीय, गुजराती, राजस्थानी सहित अन्य गैर मराठियों के हलक के नीचे नहीं उतर रहा है। ऐसे में राज ठाकरे को अपने साथ लाने से अब बीजेपी की ही मंशा पर उंगली उठाई जा रही है। लोग आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि इस गठबंधन से बीजेपी का कोर उत्तर भारतीय मतदाता उनसे दूर हो जाएगा। सबसे बड़ी बात कि भाजपा को इसका खामियाजा मुंबई ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश और बिहार में भी भुगतना पड़ सकता है।

दरअसल, राज ठाकरे और उनकी मनसे का उत्तर भारतीयों को लेकर जो व्यवहार रहा है और जो सोच रही है। वो उत्तर भारतीयों को कभी नहीं भूल सकता। यही वजह है कि उत्तर भारतीय मतदाता आज भी मनसे के उस कृत्य को भूल नहीं पाया है। जिसमें राज के समर्थकों ने खुलेआम बीच सड़क पर उत्तर कर भारतीय हिंदी भाषी छात्रों की पिटाई की थी। मराठी नेमप्लेट के मुद्दे पर जिस तरह से मनसे ने उग्र आंदोलन किया, उसे मुंबई के व्यापारी भी अब तक भूल नहीं पाएं हैं। राज की मनसे की छवि हमेशा उत्तर भारतीय विरोधी रही है। मुंबई में परीक्षा देने के लिए आए उत्तर भारतीय छात्रों की पिटाई, फेरीवालों के खिलाफ आए दिन मारपीट, निजी क्षेत्रों में नौकरी करने वाले उत्तर भारतीयों का विरोध, ऑटो-टैक्सी वालों की पिटाई और कल्याण रेलवे स्टेशन पर उत्तर भारतीयों की पिटाई के मामले में मनसे वालों पर आरोप लगे हैं। इतना ही नहीं कई मौकों पर मनसे के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की ओर से उत्तर भारतीयों पर अत्याचार के मामले सामने आए हैं। उस वक्त बीजेपी के लोग मदद के लिए खुलकर सामने नहीं आए थे। बीजेपी के उत्तर भारतीय नेताओं ने तो मीडिया में बयान देकर महज खानापूर्ति कर ली थी। ऐसे में अब जब आज भाजपा राज ठाकरे से हाथ मिला रही है और उन्हें अपने दल में शामिल कर रही है। तो संभव है कि इसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ सकता है,।

इसी तरह, दुकानों के नाम के बोर्ड लेकर मनसे के लोगों ने कई दुकानों को नुकसान पहुंचाया। उसे लेकर व्यापारी समुदाय में मनसे के प्रति आज भी गुस्सा है। इन सबके चलते ज्यादातर गैर मराठी राज के विरोध में खड़ा है। मस्जिद से लाउडस्पीकर हटाने की जिस तरह से राज ने मुहिम चलाई, उससे राज की छवि मुस्लिम विरोधी भी है। आम तौर पर ऐसा माना जाता है कि राज को वोट देने वाले कट्टर मराठी समुदाय है, जो सिर्फ मराठी हितों की बात करता है। राज की पार्टी को उत्तर भारतीय, गुजराती, राजस्थानी सहित दूसरे प्रांत के लोग वोट नहीं देते, न ही प्रचार-प्रसार करते हैं। ऐसे में सवाल ये ही खड़ा होता है कि बीजेपी के साथ गठबंधन करने के बाद क्या मनसे से पीड़ित समाज बीजेपी के साथ खड़ा रहेगा? जिसकी संभावनाएं काफी कम दिखाई पड़ती हैं। ऐसी परिस्थिति में इन मतदाताओं को लुभाने के लिए अब कांग्रेस और उद्धव सेना के पास बहुत बेहतरीन अवसर माना जा रहा है। कांग्रेस और उद्धव के पास मौका है कि वो भाजपा के दांव को बीजेपी पर ही उल्टा डाल सकते हैं। और इसका लाभ उठा सकते हैं।

अब भाजपा के साथ गठबंधन के बाद मनसे के वही कार्यकर्ता, पदाधिकारी बीजेपी-शिवसेना उम्मीदवार के लिए वोट मांगने आएंगे। जिनकी उन्होंने कभी पिटाई की थी। उसी मनसे के लोगों के साथ उत्तर भारतीय नेता कैसे प्रचार करेंगे? मनसे नेताओं के साथ उत्तर भारतीय नेता कैसे मंच शेयर करेंगे? यह सब सवाल उत्तर भारतीय समाज में सर उठा रहे हैं। इन सभी सवालों पर बीजेपी के उत्तर भारतीय नेताओं के मुंह पर ताला लग गया है। छोटे-मोटे कार्यक्रमों का आयोजन कर, मंत्रियों और अधिकारियों से मुलाकात कर ज्ञापन देने वाले बीजेपी के उत्तर भारतीय नेता राज के साथ संभावित गठबंधन पर बोलने से मना कर रहे हैं। हालांकि, भाजपा नेता भी कहीं न कहीं ये मानते हैं कि उनके सामने एक बड़ी चुनौती है। क्योंकि जिन मनसे ने उत्तर भारतीयों की पिटाई की अब गठबंधन के बाद उसी मनसे के लिए वोट मांगना काफी मुश्किल है। और कहीं न कहीं इसका खामियाजा बीजेपी को ही उठाना पड़ सकता है।

यही वजह है कि राज ठाकरे के भाजपा के साथ आने की चर्चाओं के बाद से ही विपक्ष लगातार भाजपा पर हमलावर है और उसे घेर रहा है। महाराष्ट्र कांग्रेस के उपाध्यक्ष नसीम खान ने इस मामले पर भाजपा को निशाने पर लेते हुए कहा कि बीजेपी अवसरवादी पार्टी है। जिस मनसे ने उत्तर भारतीयों को मारा और अपमानित किया, उसी पार्टी के साथ बीजेपी गठबंधन कर उत्तर भारतीयों के साथ विश्वासघात कर रही है। उत्तर भारतीय समाज बीजेपी को कभी माफ नहीं करेगा।

जाहिर है कि इस गठबंधन के बाद जहां मनसे-बीजेपी गठबंधन पर बीजेपी नेता मौनी बाबा बन गए हैं, वहीं कांग्रेस सवाल पर सवाल कर रही है। महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रवक्ता अतुल लोंढे का कहना है कि यह गठबंधन तो उत्तर भारतीयों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रत्नेश सिंह का कहना है कि बीजेपी का असली चेहरा सामने आ गया है। क्योंकि इससे पहले वह राज को उत्तर भारतीयों की नाराजगी के नाम पर छुपे तौर से मदद करते थे। वहीं कांग्रेस के सुरेंद्र राजपूत ने सोशल मीडिया पर लिखा कि अमित शाह ने उसी राज के साथ हाथ मिला लिया, जो यूपी और बिहार के लोगों को मुंबई की सड़कों पर पटक-पटक कर पिटवाता है। मुंबई यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना है कि जिसने उत्तर भारतीयों की बेइज्जती की, उसके साथ बीजेपी हाथ मिला रही है। वोट की राजनीति करते समय बीजेपी सभी को भूल जाती है। मुंबई, महाराष्ट्र में बीजेपी कभी भी उत्तर भारतीयों की हितैषी नहीं रही है। उसे सिर्फ उत्तर भारतीयों का वोट चाहिए।

साफ है कि भाजपा ने राज ठाकरे को अपने साथ लाने का दांव विपक्षी खेमे पर दबाव बनाने के लिए और उद्धव ठाकरे के काट के तौर पर चला था। लेकिन यहां भाजपा ये भूल गई कि राज ठाकरे की छवि महाराष्ट्र समेत पूरे देश में क्या है। और उनकी मनसे ने महाराष्ट्र के उत्तर भारतीयों के साथ कैसा व्यवहार किया है। क्योंकि ये उत्तर भारतीय भाजपा का कोर वोट बैंक माना जाता रहा है। ऐसे में अब राज ठाकरे को अपने साथ लाकर भाजपा ने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है और उसके इस दांव से उसका अपना ही कोर वोटर नाराज हो सकता है। ऐसे में सवाल ये ही कि कहीं भाजपा को उसका ये बड़ा दांव उसी पर उल्टा न पड़ जाए और बीजेपी को लेने के देने पड़ सकते हैं। तो वहीं भाजपा ने अपने इस कदम से विपक्ष को भी बैठे बिठाए एक मुद्दा दे दिया है। देखना ये है कि अब विपक्ष इस मुद्दे का कितना लाभ उठा पाता है और भाजपा के लिए राज ठाकरे को अपने साथ लाने का दांव फायदेमंद साबित होता है या उल्टा पड़ता है।

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