मंथन में जुटी सूबे की योगी सरकार, निकाय चुनाव में विपक्ष को कड़ी चुनौती मिलने के आसार

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा सीट और खतौली व रामपुर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनावों के नतीजों ने नगर निकाय चुनावों में तीखे राजनीति घमासान होने के संकेत दे दिए हैं. इसकी वजह है योगी सरकार का उपचुनावों में मैनपुरी लोकसभा सीट पर डिंपल यादव को जीतने से न रोक पाना और खतौली की विधानसभा सीट को अपने पास से गंवा देना. योगी सरकार को मिली इन दो शिकस्त ने सूबे में समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) गठबंधन में नई जान फूंक दी है. ऐसे में अब सपा और रालोद का गठबंधन निकाय चुनावों में भाजपा को कदम-कदम पर चुनौती देगा. यही नहीं अखिलेश और जयंत ही नहीं अब मायावती और प्रियंका गांधी भी यूपी में योगी आदित्यनाथ की निकाय चुनाव में क्लीन स्वीप करने की मंशा में अवरोध खड़ा करेंगे. सीएम योगी के लिए ये नेता निकाय चुनाव में चुनौती बनेंगे.
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव जनवरी के पहले और दूसरे सप्ताह तक कराए जाएंगे. वर्ष 2017 के निकाय चुनाव के बाद कुछ निकायों में पहली बैठक 15 जनवरी तक होने के कारण राज्य निर्वाचन आयोग को 15 जनवरी तक चुनाव कराना है. ऐसे में प्रदेश में 545 नगर पंचायतों, 200 नगर पालिका परिषद और 17 नगर निगम सहित 762 नगरीय निकायों में चुनाव होना है. इस चुनावों को सभी दल बेहद गंभीरता से लेते हैं. लोकसभा चुनावों के पहले होने वाले ये चुनाव यूपी के राजनीतिक मिजाज का आइना बताए जा रहे हैं. ऐसे में इन चुनावों में चंद दिनों पहले हुए मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा सीट पर हुई पराजय सत्ताधारी योगी सरकार और भाजपा के लिए झटका मानी जा रही है. लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पांडेय यह मानते हैं.
उनका कहना है कि मैनपुरी और खतौली में मंत्री और पार्टी नेताओं की बड़ी फौज उतारने के बाद भी प्रदेश की भाजपा सरकार मैनपुरी लोकसभा सीट पर सपा प्रत्याशी डिंपल यादव को ऐतिहासिक जीत दर्ज करने से नहीं रोक पाई. यहीं नहीं पिछले दो बार से भाजपा के कब्जे में रही मुजफ्फरनगर की खतौली सीट भी हाथ से निकल गई. रामपुर की जीत ने उसके घाव पर मरहम लगाया है, लेकिन यह जीत कैसे मिली है, यह सब जानते हैं. राज्य में डबल इंजन की सरकार होने के बाद भी सपा-रालोद गठबंधन से दो सीटों पर मात खाना भाजपा के संकट को बढ़ाने वाला साबित हो सकता है. क्योंकि भाजपा ने जिस आक्रामक तेवर के साथ तीनों सीटों पर प्रचार किया था और तीनों ही सीटों पर सरकार और संगठन की पूरी ताकत झोंकी.
उसके चलते तीनों ही सीटों पर भाजपा को जितना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो अब उपचुनाव के नतीजों ने बताया है कि भाजपा को निकाय चुनाव के लिए उसे अपनी तैयारियों पर पुनर्विचार करना चाहिए. अन्यथा सपा गठबंधन को उपचुनाव में मिली जीत से जो उत्साह मिला है, वह निकाय चुनावों में क्लीन स्वीप करने की योगी सरकार की मंशा में अवरोध बनेगा और योगी सरकार का राज्य में ट्रिपल इंजन की सरकार बनाने का सपना पूरा नहीं होगा. इसलिए योगी सरकार और भाजपा को यह मंथन करना होगा कि वह किस खामियों की वजह से मैनपुरी और खतौली सीट पर जीत हासिल करने में सफल नहीं हुए.
यह मंथन इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की गैर मौजूदगी में हुए उपचुनाव के नतीजों ने अगड़ों, पिछड़ों के साथ दलितों को साधने की भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग की मुहिम पर भी सवालिया निशान लगाया है. वह भी तब मैनपुरी के अभेद्य सपाई गढ़ को ढहाने के लिए सीएम योगी और भाजपा संगठन ने अपना पूरा फायर पावर झोंक दिया था. यह माना जाने लगा था कि सपा के पास यादव और मुस्लिम वोट बैंक ही बचा है, लेकिन सपा मुखिया अखिलेश और शिवपाल सिंह यादव की एकता तथा सपा-रालोद गठबंधन की ओर से किसानों की समस्याओं और बेरोजगारी को लेकर उठाये गए जमीनी मुद्दों ने योगी सरकार की उम्मीदों को धूमिल कर दिया.

 

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