मगरमच्छ और घडिय़ाल में क्या होता है अंतर, कौन होता है ज्यादा खतरनाक
मगरमच्छ का नाम सुनते ही लोगों में खौफ आ जाता है। भारत में कई नदियां ऐसी हैं जहां मगरमच्छ या घडिय़ाल बहुत ज्यादा संख्या में होते हैं और लोग इन नदियों में जाने से डरते हैं। पर दोनों अलग अलग जानवर हैं पर कम लोग जानते हैं कि इनमें अंतर क्या होता है, किसे कैसे पहचान सकते हैं, कौन ज्यादा खतरनाक होता है भारत में किसी संख्या ज्यादा है। मगरमच्छ एक पानी और जमीन दोनों में ही पाया जाने वाला सरीसृप जानवर है। यह जानवर देखने में बड़ी छिपकली की तरह लगता है। लेकिन यह छिपकली से बहुत ही ज्यादा अलग होता है। बहुत से लोग मगरमच्छ की प्रजाति के अन्य जानवर, एलीगेटर या घडिय़ाल को भी मगरमच्छ कह देते हैं, वहीं कई लोग इन्हें मगरमच्छ प्रजातियां कह देते हैं। घडिय़ाल मगरमच्छ के जैसा जानवर होता है। इसका मुंह अंग्रेजी के यू अक्षर के आकार जैसा होता है। और ये साफ पानी का जानवर अपने उजले रंग की वजह से जाना जाता है। इसके शरीर का निचला हिस्सा सफेद रंग का होता है और इसका मुंह पतला और लंबा होता है। इसके नुथने फूले हुए दिखते हैं। घडिय़ाल और मगरमच्छ दोनों ही उभयचर होते हैं। यानी कि वे पानी और जमीन दोनों पर रहते हैं। दोनों की पीठ पर ऊबड-खाबड़ संरचना होती है जो कांटेदार दिखाई देती है। दोनों के पैर छोटे होते हैं, लेकिन पूंछ बहुत ताकतवर होती है। दोनों ही नमक के पानी में रह सकते हैं। घडिय़ाल और मगरमच्छ में सबसे बड़ा अंदर दोनों के मुंह का होता है। इन्हीं से इनकी पहचान भी हो सकती है। जहां मगरमच्छ का मुंह वी आकार का होता है घडिय़ाल का मुंह पतला, लंबा और यू आकार का होता है। इसके अलावा दोनों के बीच रंग से भी अंतर किया जा सकता है। मगरमच्छ का रंग मटमौला रंग का होता है, वहीं घडिय़ाल के रंग में पीलापन होता है और निचला हिस्सा सफेद होता है। कम लोग जानते हैं कि घडिय़ाल और एलीगेटर भी अलग अलग परिवार की मगरमच्छ प्रजाति होते हैं। इन दोनों को पहचानना भी आसान होता है। एलीगेटर का मुंह चौड़ा होता है। यह मुंह मगरमच्छ की तुलना में भी थोड़ा चौड़ा होता है। वहीं घडय़िाल का मुंह बहुत पतला होता है। वहीं एलीगेटर का रंग कुछ गहरा स्लेटी होता है, जबकि घडिय़ाल जैतूनी रंग का, यानी सफेद और पीला सा, होता है। भारत में घडिय़ाल अधिक संख्या में होते हैं। लेकिन ये केवल भारत में ही रह गए हैं और इन्हें भी संरक्षण की जरूरत है। ये गंगा और उसकी सहायक नदियों में सबसे ज्यादा मिलते हैं।
प्रमुख्य रूप से ये चंबल नदी में ज्यादा मिलते हैं। चंबल में तो घडिय़ालों के लिए विशेष संरक्षित इलाके को सेंचुरी तक में बदल दिया गया है जिसके बाद से इनकी संख्या बहुत बड़ी है। भारत में मगरमच्छ भी घडिय़ाल के साथ मिलते हैं। यानी वे भी गंगा और उसके आसपास की नदियों में देखने को मिल जाते हैं। लेकिन खारे पानी के मगरमच्छ ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडू और अंडमान और निकोबार द्वीपों के तटीय इलाकों में ज्यादा मिलते हैं। इसके अलावा चेन्नई में मगरमच्छ के संरक्षण के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। मगरमच्छ और घडय़िाल में से मगरमच्छ ज्यादा खतरनाक होते हैं। घडय़िाल तो इंसान को नहीं खाते हैं पर मगरमच्छ इंसान को भी खा सकते हैं। मगरमच्छ के जबड़े में भी घडय़िाल की तुलना में ज्यादा ताकत होती है। वह एलीगेटर और घडय़िाल दोनों के मुकाबले ज्यादा ताकत से चीजें चबा सकता है।
मगरमच्छ के आंसू की कहावत आपने जरूर सुनी होगी। तो क्या ये केवल कहावत है या मगरमच्छ के आंसू वाकई में निकलते हैं। तो इस सवाल का जवाब यही है कि मगरमच्छ के आंसू वाकई में निकलते हैं। मगरमच्छ जब खाना खाते हैं तो उनके शरीर में गर्मी बढ़ जाती है। ऐसे में पानी आंखों से बह कर इनकी गर्मी कम करने में मदद करता है।यानी मगरमच्छ के आंसू तो होते हैं, पर वे रोते नहीं है। इसीलिए कहावत बनी है कि मगरमच्छ के आंसू झूठे होते हैं।