राजस्थान का नया सीएम कौन? वसुंधरा, बालकनाथ या छुपे रुस्तम साबित होंगे मेघवाल?

जयपुर। राजस्थान में विधानसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को बड़ी जीत मिली है. 199 सीटों में से बीजेपी के खाते में 115 सीटें आई हैं और इसके साथ ही पार्टी ने बड़े बहुमत के साथ जीत हासिल कर ली है. अब सबकी नजर इस पर है कि पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री किसे बनाया जाता है. खास बात यह है कि इस बार पिछले चुनावों के इतर बीजेपी ने किसी भी चुनाव में मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान नहीं किया था. ऐसे में नए मुख्यमंत्री को लेकर सियासी चर्चा गरम हो चुकी है.
प्रदेश में पिछले 20 सालों में 2 चुनावों (2003 और 2013) में जीत के बाद जब भी बीजेपी को सरकार बनाने का मौका मिला तो उसने वसुंधरा राजे सिंधिया को चुना और मुख्यमंत्री बनाया. प्रदेश में वसुंधरा राजे पार्टी की कद्दावर नेता रही हैं और पार्टी के अंदर उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है. हालांकि इस बार वह सीएम के दावेदार पार्टी की ओर से घोषित नहीं की गईं. ऐसे में चुनाव जीतने के बाद सीएम का पद किसे मिलता है, इस पर सभी की नजर है. इस शीर्ष पद के लिए वसुंधरा राजे समेत कई नाम आगे चल रहे हैं.
शाही घराने से नाता रखने वाली वसुंधरा राजे सिंधिया 2 बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. 2003 में वह पहली बार सीएम बनीं फिर 2013 में दूसरी बार. वह पहले भी कई बार सांसद रह चुकी हैं. पार्टी ने इस बार वसुंधरा राजे को झालरापाटन सीट से उम्मीदवार के रूप में उतारा था, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं घोषित किया था. अब वह झालरापाटन सीट से 53 हजार से अधिक मतों से चुनाव जीत गई हैं. ऐसे में उनका नाम फिर से रेस में शामिल हो गया है. यही नहीं परिणाम आने से पहले ही वह सक्रिय हो गईं. हालांकि यह भी माना जाता है कि पार्टी नेतृत्व के साथ उनके रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे हैं, लेकिन उन्होंने चुनाव में कई सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों के लिए जमकर प्रचार किया. यह दावा भी किया जाता है कि राज्य में वसुंधरा के समर्थकों में से करीब कई दर्जन नेताओं ने चुनाव लड़ा और ज्यादातर को जीत भी मिली. ऐसे में अगर ये विधायक वसुंधरा का समर्थन करते हैं तो पार्टी को इनके नाम पर मुहर लगाना पड़ सकता है.
बाबा बालकनाथ भी मुख्यमंत्री की रेस में बने हुए हैं. प्रदेश की सियासत में बाबा बालकनाथ को उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ की तरह माना जाता है. वह रोहतक स्थित अस्थल बोहर नाथ आश्रम के आठवें महंत हैं. उन्होंने इस बार अलवर जिले की तिजारा सीट पर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए बड़ी जीत हासिल की है. उन्होंने कांग्रेस के इमरान खान को कड़े मुकाबले में हराया है. पिछले चुनाव में वह इमरान से हार गए थे.
वह ओबीसी बिरादरी से आते हैं और जाति से यादव हैं. बड़ी बात यह है कि उनके क्षेत्र में सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी प्रचार किया था. 2019 में बाबा बालकनाथ ने अलवर लोकसभा सीट से जीत हासिल की थी. प्रदेश की सियासत में वह तेजी से बड़ा नाम बनते दिख रहे हैं. उनके साथ अच्छी चीज यह है कि वह विवादों से परे हैं और व्यवहार से विनम्र भी बताए जाते हैं.
वसुंधरा राजे सिंधिया की तरह दीया कुमारी का नाता भी राजपरिवार से है. वह खुद को भगवान राम का वशंज भी बताती हैं. दीया भी लोकसभा सांसद के रूप में विधानसभा चुनाव लडऩे वाले 7 सांसदों में से एक रही हैं. राजस्थान में सिर्फ 4 सांसदों को जीत मिली जिसमें दीया भी शामिल रही हैं. पार्टी आलाकमान के बारे में कहा जाता है कि दीया कुमारी उनकी पसंदीदा नेता हैं.
दीया कुमारी साल 2013 में राजस्थान में चुनाव से ऐन पहले वसुंधरा राजे के सामने जयपुर में एक रैली के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में बीजेपी में शामिल हुई थीं. तब वह सवाई माधोपुर विधानसभा सीट से चुनाव में भी उतरीं और बीजेपी से तब बागी हुए डॉक्टर किरोड़ी लाल मीणा को हरा दिया था. यह जीत उनके लिए बड़ी जीत साबित हुई थी. वह वसुंधरा राजे की प्रतिद्वंद्वी मानी जाती हैं और प्रदेश की सियासत में तेजी से उभरता बड़ा चेहरा हैं.
केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पीएम नरेंद्र मोदी के करीबी नेताओं में गिने जाते हैं तो वह वसुंधरा राजे सिंधिया के धुर विरोधी भी माने जाते हैं. 2019 के आम चुनाव में गजेंद्र सिंह ने जोधपुर लोकसभा सीट से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव को हराकर सभी को चौंका दिया था, और इस जीत के बाद वह केंद्र में मंत्री बनाए गए.
प्रदेश की सियासत में गजेंद्र सिंह शेखावत भी बड़ा नाम बनकर उभर रहे हैं. उन्हें अशोक गहलोत सरकार से टकराने के लिए जाना जाता है. उन पर गहलोत सरकार को गिराने तक के आरोप लगे हैं. मुख्यमंत्री बनने के मामले में भी वह काफी समय से चाहत रखे हुए हैं. इस बार पार्टी ने जब मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान नहीं किया तो उनके लिए सभी तरह के विकल्प खुले हुए हैं.
मृदुभाषी और लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला भी मुख्यमंत्री पद की रेस में हैं और इस मामले में उनका नाम चौंका सकता है. कोटा से लोकसभा सांसद ओम बिड़ला को पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह का करीबी माना जाता है. साथ ही पार्टी के अंदर और आरएसएस के दिग्गज नेताओं के साथ उनके रिश्ते मधुर बताए जाते हैं.
ओम बिड़ला 2003 से 2008 तक वसुंधरा राजे के पहले मुख्यमंत्रीत्व काल के दौरान संसदीय सचिव रहे थे. उन्हें 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव जीत मिली है. फिर 2014 में वह लोकसभा चुनाव में उतरे. फिर में 2019 के चुनाव में भी जीतकर लोकसभा पहुंचे.
बीजेपी का दलित चेहरा माने जाने वाले अर्जुन राम मेघवाल भी इस रेस में बने हुए दिख रहे हैं और उनके नाम पर भी मुहर लग सकता है. कांग्रेस ने ओबीसी से नाता रखने वाले अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया है तो बीजेपी दलित नेता अर्जुन मेघवाल को मुख्यमंत्री बना सकती है.
बीकानेर से सांसद अर्जुन मेघवाल पूर्व आईएएस रहे हैं और अभी केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री हैं. उनके पक्ष में यह बात जाती है कि राजस्थान के दलितों में उनकी जाति के सबसे वोटर्स सबसे अधिक हैं. लोगों के बीच उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है. बीजेपी ने चुनाव से पहले एक दलित को मुख्य सूचना आयुक्त बनाया तो इसे चुनावी मुद्दा भी बनाया. बीजेपी ने आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्म को राष्ट्रपति बनाया और वह राजस्थान में दलित नेता को सीएम बनाकर दलित बिरादरी को बड़ा मैसेज दे सकती है. अगर यह सब चला तो मेघवाल सीएम बन सकते हैं.
इन सब नामों के अलावा कुछ और नाम भी मुख्यमंत्री की रेस में चल रहे हैं और ये लोगों को चौंका भी सकता है. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव भी इस रेस में बताए जा रहे हैं. वह पीएम मोदी के खास भी कहे जाते हैं. हालांकि चुनाव परिणाम आने से पहले नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ भी सीएम की रेस में थे. लेकिन 7 बार चुनाव में जीत हासिल करने वाले राजेंद्र सिंह राठौड़ के चुनाव में हार जाने के बाद उनकी संभावना खत्म सी हो गई है.

 

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