सावन में शिव पूजा के दौरान क्यों नहीं चढ़ाई जाती तुलसी? जानें धार्मिक मान्यता
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, तुलसी माता भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं, जबकि भगवान शिव की पूजा में इनका प्रयोग वर्जित है।

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क: सावन का महीना भगवान शिव की आराधना के लिए अत्यंत पावन माना जाता है। इस दौरान भक्त शिवलिंग पर बेलपत्र, जल, दूध, दही, घी, शहद आदि अर्पित कर महादेव को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। हालांकि, शिव पूजा में तुलसी के पत्तों का प्रयोग वर्जित माना गया है,और विशेष रूप से सावन के महीने में इसे अर्पित करना और भी अधिक निषिद्ध माना जाता है।
क्या है धार्मिक मान्यता?
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, तुलसी माता भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं, जबकि भगवान शिव की पूजा में इनका प्रयोग वर्जित है। धार्मिक मान्यता है कि एक बार असुर जालंधर की पत्नी वृंदा (जो तुलसी का रूप थीं) के पति को छलपूर्वक मारने में भगवान शिव ने अहम भूमिका निभाई थी। इससे वृंदा ने शिव से क्रोधित होकर उन्हें श्राप दिया कि वह उनकी पूजा में तुलसी कभी स्वीकार नहीं करेंगे।
इसलिए नहीं चढ़ाई जाती तुलसी इस कथा के आधार पर शिव पूजन में तुलसी को वर्जित माना गया है। यह मान्यता आज भी प्रचलित है और भक्त सावन के पावन माह में विशेष रूप से इस नियम का पालन करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, शिव को बेलपत्र, धतूरा, आक, और भस्म अत्यंत प्रिय हैं, जबकि तुलसी का प्रयोग केवल विष्णु या उनके अवतारों की पूजा में किया जाता है। इस प्रकार सावन में शिव भक्ति करते समय तुलसी का उपयोग नहीं करने की परंपरा धार्मिक मान्यताओं और पुराणों से जुड़ी हुई है।
जालंधर एक अत्यंत शक्तिशाली असुर था, जिसे स्वयं भगवान शिव ने अपनी योगशक्ति से उत्पन्न किया था। जालंधर की पत्नी वृंदा (जो बाद में तुलसी बनीं) एक परम पतिव्रता स्त्री थीं। उनकी तपस्या और पतिव्रता के प्रभाव से कोई भी देवता जालंधर को पराजित नहीं कर पा रहा था।
इस स्थिति से निकलने के लिए भगवान विष्णु ने एक योजना बनाई। उन्होंने जालंधर का रूप धारण किया और वृंदा के समक्ष उपस्थित हुए। वृंदा ने उन्हें अपना पति समझकर उनका पूजन और सेवा की, जिससे उनका पतिव्रता धर्म भंग हो गया। इसके फलस्वरूप जालंधर की शक्तियां क्षीण हो गईं और भगवान शिव ने उसका वध कर दिया।
वृंदा का श्राप और तुलसी रूप में परिवर्तन: जब वृंदा को सच्चाई का पता चला, तो उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया और बाद में स्वयं तुलसी के पौधे का रूप धारण कर लिया। इसी कारण से तुलसी को भगवान विष्णु को तो अर्पित किया जाता है, लेकिन भगवान शिव को नहीं।
वृंदा, जालंधर और विष्णु से जुड़ी कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, असुर जालंधर की पत्नी वृंदा एक परम पतिव्रता स्त्री थीं। जालंधर को भगवान शिव ने अपनी योगशक्ति से उत्पन्न किया था और उसकी शक्ति का स्त्रोत वृंदा का पतिव्रत धर्म था। देवताओं द्वारा जालंधर को पराजित करना असंभव हो गया था।
भगवान विष्णु ने जालंधर का वध करने के लिए उसकी पत्नी वृंदा की तपस्या भंग करने की योजना बनाई। उन्होंने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा को भ्रमित किया, जिससे उसका पतिव्रत धर्म भंग हो गया। इसके फलस्वरूप जालंधर की शक्ति क्षीण हो गई और भगवान शिव ने उसका वध कर दिया।
वृंदा का श्राप और सतीत्व
अपने पतिव्रत धर्म के भंग होने और पति के वध से क्रोधित होकर वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वे पत्थर बन जाएं, जो आगे चलकर शालिग्राम के रूप में पूजे जाने लगे। इसके बाद वृंदा सती हो गईं।
जहां वृंदा का शरीर भस्म हुआ, वहां तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। चूंकि तुलसी का जन्म जालंधर से जुड़े दुखद प्रसंग से हुआ और वह भगवान शिव द्वारा मारे गए असुर की पत्नी थीं, इसलिए तुलसी को शिव पूजन में अर्पित करना वर्जित माना गया।
एक अन्य मान्यता
एक अन्य मान्यता के अनुसार, वृंदा ने क्रोधवश भगवान शिव को यह शाप दिया था कि उनकी पूजा में तुलसी कभी स्वीकार नहीं की जाएगी। तभी से यह निषेध धार्मिक परंपरा का हिस्सा बन गया।
देवताओं की प्रिय वस्तुएं
हिंदू धर्म में प्रत्येक देवता को विशिष्ट वस्तुएं अर्पित की जाती हैं। तुलसी भगवान विष्णु और उनके अवतारों (विशेषकर श्रीकृष्ण) को प्रिय है, जबकि भगवान शिव को बिल्व पत्र (बेलपत्र) विशेष रूप से प्रिय माना जाता है।


