डेंगू से बचाव के लिए जरूरी उपाय क्यों नहीं

सर्दी जैसे-जैसे बढ़ रही है। वैसे-वैसे डेंगू भी पांव पसार रहा है। सर्दी के मौसम में डेंगू का बढ़ना फिलहाल खतरनाक संकेत है। स्वास्थ्य महकमे को इस पर सोचना होगा। क्योंकि डेंगू का प्रकोप एक बार फिर प्रदेश में बढ़ गया है। रोजाना काफी संख्या में लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। लखनऊ में अब तक आठ मौत हो चुकी है। वहीं दूसरी ओर न तो स्वास्थ्य विभाग न ही नगर निगम और पालिकाएं इसको लेकर गंभीर दिख रही हैं। सरकार के आदेश के बावजूद अस्पतालों में मरीजों को बेड और जरूरी दवाएं तक नहीं मिल रही हैं। लिहाजा आम आदमी इलाज के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल के चक्कर काट रहा है। सवाल यह है कि समय रहते डेंगू से बचाव के लिए जरूरी उपाय क्यों नहीं किए जाते हैं? मच्छरों से निपटने के लिए फॉगिंग और दवा का छिड़काव क्यों नहीं किया गया? हर साल लचर चिकित्सा व्यवस्था से लोगों को क्यों दो-चार होना पड़ता है? दवा और फॉगिंग आदि के लिए जारी होने वाला भारी-भरकम बजट कहां खर्च हो रहा है? क्या सरकार ऐसे ही बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराएगी? डेंगू से होने वाली मौतों के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने की छूट किसी को दी जा सकती है?
यूपी में हर साल बारिश के बाद और सर्दियों की दस्तक के साथ मच्छरजनित रोगों मसलन डेंगू का प्रकोप बढ़ जाता है। डेंगू एडीज मच्छर के काटने से फैलता है। इसकी रोकथाम की जिम्मेदारी नगर निगम नगर पालिकाओं व स्वास्थ्य विभाग के पास है लेकिन विभागीय लापरवाही के कारण अकेले लखनऊ में सैकड़ों लोग डेंगू की चपेट में आ चुके हैं। हैरानी की बात यह है कि बीमारी के प्रकोप के बावजूद प्रभावित और अन्य इलाकों में न तो फॉगिंग की जा रही है न ही दवा का छिड़काव ही किया जा रहा है। पुराने लखनऊ की हालत बेहद खराब हो चली है। यहा दर्जनों मरीज रोज डेंगू की चपेट में आ रहे हैं। पॉश कॉलोनियों में भी डेंगू का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। यह स्थिति तब है जब सरकार लगातार डेंगू की रोकथाम के लिए जरूरी कदम उठाने के निर्देश जारी कर रही है। स्वास्थ्य विभाग भी नोटिस-नोटिस खेल कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर रहा है। न तो घर-घर डेंगू के मच्छरों को चिन्हित करने का अभियान चलाया गया न ही दवा का छिड़काव ही किया गया। जागरूकता अभियान भी चलाने में संबंधित विभाग नाकाम रहे हैं। मरीजों की संख्या बढ़ने के कारण स्वास्थ्य सेवाएं भी औंधे मुंह आ गयी हैं। अस्पतालों में मरीज को भर्ती करने के लिए पर्याप्त बेड नहीं मिल रहे हैं। दवाओं का भी टोटा पड़ा हुआ है। इसके कारण आम आदमी की हालत पस्त हो गयी है। जाहिर है यदि डेंगू पर नियंत्रण लगाना है तो सरकार को इसकी जवाबदेही तय करनी होगी।

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