क्या देवगौड़ा को मिलेगा कर्नाटक में सत्ता का गिफ्ट!
पूरे जोरशोर से राज्य में जड़ जमाने में जुटी जेडीएस
- हो सकता है आखिरी विस चुनाव
- कुमार स्वामी घर-घर जाकर मांगेंगे वोट
आराध्य त्रिपाठी/4पीएम न्यूज़
बंगलुरू। कर्नाटक में बीजेपी फिर से बरकरार रहने की जुगत में लगी है तो कांग्रेस उसको सत्ता से उतारकर खुद कुर्सी पर काबिज होना चाहती है। इस दोनों को राजनैतिक लड़ाई के बीच में वहां की घरेलू पार्टी जनता दल सेक्यूलर अपनी साख बचाने की मशक्कत में लगी है। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी के लिए यह चुनाव इसलिए भी अहम है क्योंकि इसबार यह उनका आखिरी चुनाव हो सक ता है।
हलांकि देवगौड़ा के पुत्र कुमार स्वामी पूरे राज्य में पार्टी की मजबूती के लिए दौरे कर रह हैं। कर्नाटक में मई माह तक प्रदेश में चुनाव कराए जा सकते हैं, हो सकता कि अगले 15 से 20 दिनों में राज्य में चुनावी बिगुल आधिकारिक तौर पर बज सकता है। 2018 में चुनाव के बाद बनी कांग्रेस समर्थित सरकार में भी उस जेडीएसक का समर्थन था और मुख्यमंत्री भी उसी का था। हालांकि, बाद में ऑपरेशन लोटस के चलते सरकार गिर गई। लेकिन इस बार का चुनाव कुमार स्वामी के लिए बेहद ही खास और महत्वपूण है।
देश के पूर्व प्रधानमंत्री और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) की…. जेडीएस के लिए ये चुनाव इसलिए भी काफी अहम क्योंकि संभवत: ये चुनाव जेडीएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री 89 वर्षीय एचडी देवगौड़ा का अंतिम चुनाव हो सकता है। ऐसे में देवगौड़ा और जेडीएस इस चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने की हरसंभव कोशिश करेंगे।
ओल्ड मैसूर पर है नजर, 61 सीटों पर दबदबा
दरअसल, जेडीएस अध्यक्ष एचडी देवगौड़ा के 51 साल के राजनीतिक करियर में उनके फर्श से अर्श तक पहुंचने की सबसे बड़ी वजह उनका गढ़ ओल्ड मैसूर ही रहा। ऐसे में देवगौड़ा के लिए पुराना मैसूर काफी अहम है… वहीं इस बार के चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ओल्ड मैसूर में सेंध लगाने के लिए कई स्तर पर रणनीति तैयार कर ली है। जो देवगौड़ा के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकती है। 2019 में कांग्रेस समर्थित सरकार गिरने के बाद देवगौड़ा की जेडीएस इस बार अकेले ही चुनावी मैदान में उतर रही है। ऐसे में देवगौड़ा के लिए इस बार का चुनाव और भी मुश्किलों भरा रहने वाला है। देवगौड़ा और जेडीएस का गढ़ कहे जाने वाले पुराने मैसूर में कुल 61 विधानसभा सीटें हैं। 61 में से 45 सीटों पर वोक्कलिगा समुदाय का दबदबा है। ये वोटर्स हमेशा से देवगौड़ा का समर्थन करते आए है। यही वजह है कि जेडीएस हर चुनाव में 70 से 80 फीसदी सीटें इन्हीं इलाकों में जीतती रही है।
जनता के बीच फिर बनानी होगी पैठ
वहीं जेडीएस और देवगौड़ा के लिए इस बार एक मुसीबत ये भी है कि पार्टी धीरे-धीरे जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता खोती जा रही है। इसकी प्रमुख वजह पार्टी का स्थिर न रहना है, कभी उनकी पार्टी जेडीएस कांग्रेस के साथ जाती है, तो कभी भाजपा का समर्थन ले लेती है, पिछले 19 साल में देवगौड़ा की जनता दल सेक्युलर 3 बार पाला बदल चुकी है, इस बार भी गठबंधन की अटकलें लगाई जा रही थीं, लेकिन फिलहाल तो पार्टी अकेले ही मैदान में उतरी है। हालांकि, चुनाव के परिणाम आने के बाद क्या स्थिति बनती है, इस पर अभी से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है… लेकिन ये साफ है कि गठबंधन तोडऩे और जोडऩे की रणनीति की वजह से देवगौड़ा की विश्वसनीयता पर भी असर पड़ा है। इसके अलावा देवगौड़ा पार्टी में पूरे परिवार को शामिल कर लिए है। पार्टी के बड़े पद पर उनके परिवार के लोगों का ही कब्जा है। देवगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी विधायक दल के नेता हैं, तो वहीं दूसरे बेटे एचडी रेवन्ना कर्नाटक सरकार में मंत्री रह चुके हैं। रेवन्ना के बेटे प्रज्वल लोकसभा के सांसद हैं, कुमारस्वामी के बेटे निखिल जेडीएस युवा मोर्चा के अध्यक्ष है।
राह नहीं है आसान
वहीं दूसरी ओर देवगौड़ा और जेडीएस के लिए ये ही चुनाव सबसे मुश्किल भरा भी हो सकता है। क्योंकि इस बार भाजपा और कांग्रेस ने जेडीएस व देवगौड़ा के गढ़ पुराने मैसूर में भी काफी मेहनत की है और देवगौड़ा के लिए मुश्किलें पैदा करने का काम किया है। अभी 12 मार्च को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुराने मैसूर के मांड्या में अपना एक रोड शो किया था। इस रोड शो में भारी भरकम भीड़ जुटी थी। पुराना मैसूर हमेशा से ही देवगौड़ा और जेडीएस का मजबूत गढ़ रहा है, ऐसे में पीएम मोदी का इस क्षेत्र में रोड शो करना और उसमें भीड़ का जुटना देवगौड़ा और जेडीएस के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकता है। शायद यही वजह रही कि पीएम मोदी के जाते ही एचडी देवगौड़ा ने अपने आवास पर मंड्या के नेताओं के साथ बैठक कर इस रोड शो का फीडबैक लिया।
वोक्कलिगा समुदाय पर है कांग्रेस की निगाह
वहीं कांग्रेस भी पुराने मैसूर में बढ़त हासलि करने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार वोक्कलिगा समुदाय से ही आते हैं। इसलिए इन इलाकों की जिम्मेदारी पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष को ही दी है। शिवकुमार अपने भाषण में वोक्कालिगा समुदाय से मुख्यमंत्री बनाए जाने के लिए कांग्रेस को समर्थन देने की अपील भी करते रहते हैं। इसके अलावा कांग्रेस और शिवकुमार वोटों के ध्रुवीकरण के लिए भाजपा और जेडीएस के बीच मिलीभगत का भी आरोप भी लगाते हैं। कांग्रेस का कहना है कि देवगौड़ा और बीजेपी ने आंतरिक समझौता किया है।
भाजपा ने लगाई पूरी ताकत
लेकिन इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही यहां जेडीएस को घेरने की रणनीति बनाई है। भाजपा ने मैसूर में 200 से अधिक सीनियर नेताओं की तैनाती कर दी है। पार्टी पुराने मैसूर के शहरी इलाकों में विशेष फोकस कर रही है। पुराने मैसूर के मांड्या और हसन में मोदी और शाह लगातार रैलियां भी कर रहे हैं। इतना ही नहीं यहां के लोगों को लुभाने के लिए हाल ही में कर्नाटक सरकार ने पुराने मैसूर के लिए कई परियोजनाओं की शुरुआत भी की है। भाजपा इसलिए भी यहां इतनी मेहनत कर रही है क्योंकि पार्टी अब तक पुराने मैसूर में 10 से ज्यादा सीटें नहीं जीत पाई है।
पुराने नेताओं पर जेडीएस को करना होगा भरोसा
देवगौड़ा के लिए एक मुसीबत उनकी पार्टी के कई पुराने नेताओं का साथ छोडऩा भी है, पिछले 15 साल में देवगौड़ा की पार्टी से कई पुराने और दिग्गज नेता नाता तोड़ चुके हैं,इनमें प्रमोद माधवाराज, बीए जीविजया, सी चेंगियप्पा, सीटी प्रकाश और एच विश्वनाथ का नाम प्रमुख हैं। ये सभी नेता पुराने मैसूर से आते हैं और अब बीजेपी या कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। जमीनी नेताओं के सहारे ही देवगौड़ा पुराने मैसूर में लोगों से सीधे संपर्क में रहते थे। मांड्या और हसन में लोकल स्तर पर भी कई बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। हाल ही जेडीएस ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस उनकी पार्टी तोडऩे का काम कर रही है। वैसे अपने गठन के 23 साल में जनता दल सेक्युलर ने अब तक दो बार राज्य में अपनी सरकार बनाई है। सरकार बनाने के लिए देवगौड़ा की पार्टी ने भाजपा और कांग्रेस दोनों के ही साथ गठबंधन किया है। पार्टी को अब तक की अपनी सबसे बड़ी सफलता 2004 के चुनाव में मिली थी। इस दौरान पार्टी 220 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 58 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद कांग्रेस को समर्थन देकर जेडीएस सरकार का भी हिस्सा रही थी। हालांकि, यह गठबंधन 3 साल तक ही टिक पाया और देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी ने बीजेपी से समझौता कर लिया। इस समझौते के तहत कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बनाए गए यह समझौता भी ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया। इसके बाद 2018 के पिछले चुनाव में जेडीएस ने 37 सीटों पर जीत हासिल की थी… और एक बार फिर कांग्रेस के समर्थन के साथ सरकार में हिस्सेदार बनी… इस बार सरकार की कमान भी देवगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी ने ही संभाली… हालांकि, 2019 में ऑपरेशन लोटस की चपेट में कुमारस्वामी की सरकार गिर गई थी। उस वक्त जेडीएस और कांग्रेस के कई विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे।