हार कर जीतने वाले को बाज़ीगर कहते हैं, और आज के बाज़ीगर हैं, दूसरी बार बने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य

The one who wins after losing is called a juggler and today's juggler is the deputy CM keshav prasad maurya for the second time.

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क

लखनऊ। 10 मार्च को यूपी के रिजल्ट के बाद सबसे ज्यादा चर्चा इसी बात की थी कि केशव को इस बार योगी की कैबिनेट में रखेंगे या नहीं? क्योंकि वह खुद अपनी सीट सिराथू पर चुनाव हार गए थे। हालांकि, केशव 25 मार्च को बाज़ीगर की तरह उभरे और ‌‌डिप्टी सीएम की शपथ ली। 9 साल के केशव पढ़ने-लिखने में ठीक थे। मां-बाप के पास उसकी पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे। आठ लोगों के परिवार में जैसे-तैसे घर का खर्च चलता था।

उसने छोटी उम्र से ही पढ़ाई और परिवार का पेट पालने की जिम्मेदारी उठा ली। केशव सुबह 5 बजे उठते। सिराथू से 9 किलोमीटर दूर साइकिल से जाकर पेपर बेचते। घर आते ही स्कूल में पढ़ने चले जाते। इंटरवल में जब बाकी बच्चे खेल रहे होते तो केशव भागकर अपने पिता की गुमटी पहुंच जाते।

हाथ में केतली लिए सिराथू रेलवे स्टेशन के बाहर चाय बेचकर पिता की मदद करते। ट्रेन में सवार मुसाफिरों से लेकर गुमटी पर आने वाले ग्राहकों को भी अपने हाथ से बनी कड़क चाय पिलाते थे। बचपन से ही केशव का राष्ट्रीय सेवक संघ यानी आरएसएस से जुड़ाव था। धीरे-धीरे उनका पूरा दिन शाखा में ही बीतने लगा। अब वो चाय की गुमटी पर ज्यादा वक्त नहीं दे पाते थे।

साल 1983 में पिता ने काम न करने के लिए उन्हें फटकार लगाई

परिवार को उनका शाखा में जाना पसंद नहीं था। इसी बात से तंग आकर केशव 14 साल की उम्र में घर से भागकर प्रयागराज चले गए। तब उस जगह का नाम इलाहाबाद था। इलाहाबाद पहुंचकर केशव विश्व हिन्दू परिषद यानी वीएचपी के नेता अशोक सिंघल के पास पहुंचे। वो सिंघल के साथ ही रहने लगे। साल 1990, भारतीय राजनीति में 2 बड़े परिवर्तन आए। पहला, केंद्र में गठबंधन सरकारों का गठन हुआ। दूसरा, अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा गरमाने लगा। धर्म के लिए कुछ कर गुजरने के भाव केशव के मन में भी आने लगे। वह आधा दिन पढ़ाई करते और बाकी के वक्त में वीएचपी दफ्तर में आए लोगों की सेवा करते। कुल 12 साल बीत गए… वो ना घर वापस गए, ना परिवार से कोई रिश्ता रखा।

अशोक सिंघल कहने पर दोबारा परिवार से जुड़े

साल 1995, केशव की बहन की शादी तय हुई। परिवार चाहता था कि उनका बेटा भी शादी में शामिल हो। लेकिन इतने साल परिवार से दूर रहने के बाद भी केशव शादी में नहीं जानना चाहते थे। परिवार के बहुत कहने पर भी वो नहीं माने। जब अशोक सिंघल को पूरा मामला पता चला, उन्होंने केशव को शादी में जाने के लिए कहा। वो अपने राजनैतिक गुरु की बात नहीं टाल पाए। उनके कहने पर ही वो शादी में शामिल हुए और परिवार से दोबारा रिश्ता जोड़ा।

साल 2004- केशव ने पहली बार बाहुबली अतीक अहमद के दबदबे वाली इलाहाबाद पश्चिमी सीट से चुनाव लड़ा, हार गए। अतीक से टकराकर एक धाकड़ नेता की छवि बना ली।

साल 2007- दोबारा चुनाव लड़ा फिर से हार का सामना करना पड़ा।

साल 2012- वो कौशाम्बी की सिराथू सीट से चुनाव लड़े। इस सीट पर पहली बार भाजपा की जीत हुई।

साल 2014- फूलपुर से उन्हें लोकसभा का टिकट मिला और वो जीत गए।

साल 2016- उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया।

साल 2017- उन्हीं की अध्यक्षता में बीजेपी ने यूपी में इतिहास रच दिया।

साल 2017, यूपी में विधानसभा चुनाव में भाजपा को 312 सीटें मिलीं। जीत के बाद केशव के मुख्यमंत्री बनने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया। शपथ ग्रहण के एक दिन पहले दोपहर तक न्यूज चैनलों में केशव के ही सीएम बनने की हवा थी। 18 मार्च की शाम करीब 5.30 बजे विधायक दल की मीटिंग हुई। उसमें मुख्यमंत्री के लिए केशव की बजाए योगी आदित्यनाथ के नाम पर मोहर लगी। केशव यूपी के उपमुख्यमंत्री और पीडब्ल्यूडी मंत्री बनाए गए।

इस बार विधानसभा चुनाव में केशव सिराथू से मैदान में उतरे थे। 2012 से ही इस सीट पर केशव का दबदबा था। इलेक्शन के दौरान उन्होंने सिराथू में कई सभाएं की। खुद को वहां का बेटा बताते हुए वोट मांगे। 7337 वोटों से चुनाव हार गए। चुनाव हारने के बाद उनकी डिप्टी सीएम की कुर्सी पर खतरा मंडराने लगा। चर्चाएं हुईं कि उन्हें संगठन भेजा जा सकता है। उनका कद ना तो घटा ना बढ़ा। 25 मार्च 2022 को केशव प्रसाद मौर्य ने दोबारा डिप्टी सीएम पद की शपथ ली।

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