जहरीली शराब और लचर सिस्टम
सवाल यह है कि शहर से लेकर गांव तक जहरीली शराब का उत्पादन और वितरण रूक क्यों नहीं रहा है? क्या यह सारा खेल शराब माफिया, पुलिस और आबकारी विभाग की मिलीभगत से चल रहा है? मोटी कमाई के लिए लोगों की जान से खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है? क्या माफिया के सामने सरकारी तंत्र बौना साबित हो चुका है? आखिर आबकारी और पुलिस विभाग क्या कर रहा है?
पिछले दो दिनों में यूपी के बागपत और मेरठ में जहरीली शराब से सात लोगों की जान जा चुकी है। वहीं लखनऊ के चिनहट से अवैध शराब फैक्ट्री पकड़ी गई है। यहां से बरामद शराब की कीमत 75 लाख से अधिक की बताई जा रही है। ये घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं कि प्रदेश में जहरीली शराब बनाने का धंधा खूब फल-फूल रहा है और सरकारी सिस्टम इसे रोकने में पूरी तरह नाकाम है। सवाल यह है कि शहर से लेकर गांव तक जहरीली शराब का उत्पादन और वितरण रूक क्यों नहीं रहा है? क्या यह सारा खेल शराब माफिया, पुलिस और आबकारी विभाग की मिलीभगत से चल रहा है? मोटी कमाई के लिए लोगों की जान से खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है? क्या माफिया के सामने सरकारी तंत्र बौना साबित हो चुका है? आखिर आबकारी और पुलिस विभाग क्या कर रहा है? स्थानीय खुफिया तंत्र को गांवों में धधकती शराब की भट्ठियों की भनक क्यों नहीं लग पा रही है जबकि ग्रामीणों को इनका पता ठिकाना मालूम होता है? क्या केवल दिखावे के लिए कभी-कभी अवैध शराब की फैक्ट्रियों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है?
प्रदेश में जहरीली शराब का धंधा धड़ल्ले से चल रहा है। शराब माफिया अधिकतर शहर से सटे गांवों में डेरा जमाते हैं और वही इसका निर्माण किया जाता है। अवैध शराब को घातक रासायनों के मिश्रण से तैयार किया जाता है। नशे के लिए कुछ दवाओं का भी इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद शराब माफिया फर्जी लेबल लगाकर इसे सस्ते दामों में ठेकों में बेच देते हैं और इन ठेकों से यह शराब लोगों तक पहुंचती है। इसका सेवन जानलेवा साबित हो रहा है। इसमें दो राय नहीं कि यह धंधा बिना आबकारी और पुलिस कर्मियों की मिलीभगत के संभव नहीं है। आबकारी और पुलिस विभाग कभी-कभी दिखावे के लिए इन अवैध शराब फैक्टियों के खिलाफ कार्रवाई कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं। हैरानी की बात यह है कि स्थानीय लोगों को अवैध शराब की फैक्ट्रियों की जानकारी होती है लेकिन न तो आबकारी और न ही पुलिस विभाग को इसकी भनक लगती है। जाहिर है स्थितियां बदतर हो चुकी हैं। हकीकत यह है कि जब कोई बड़ा हादसा होता है तो आबकारी और पुलिस विभाग सक्रिय होता है और मामले के ठंडे बस्ते में जाते ही सबकुछ पूर्ववत चलने लगता है। साफ है कि यदि सरकार अवैध शराब के उत्पादन और वितरण पर शिकंजा कसना चाहती है तो वह संबंधित विभागों को जवाबदेह बनाए और लापरवाही बरतने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। यदि ऐसा नहीं हुआ तो भविष्य में स्थितियां बेहद विस्फोटक हो जाएंगी।